वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में गिद्धों के घोंसले, संरक्षण केंद्र बनाने का प्रस्ताव
बिहार वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में गिद्धों के घोंसले, संरक्षण केंद्र बनाने का प्रस्ताव
- घोंसले साबित करते हैं कि यहां गिद्धों का बसेरा है
डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार के वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क की तर्ज पर गिद्ध संरक्षण केंद्र स्थापित करने की कवायद प्रारंभ की गई है। इसके लिए वन विभाग के अधिकारियों ने बिहार सरकार को एक प्रस्ताव भी भेजा है। इसका उद्देश्य लुप्तप्राय गिद्धों को विलुप्त होने से बचाना है। पक्षी प्रेमी और पक्षी विशेषज्ञ भी इस कवायद को उचित बताते हैं। पश्चिमी चंपारण जिले के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीआरटी) के क्षेत्र निदेशक एच के राय ने बताया कि हाल के एक सर्वेक्षण के दौरान वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में कुछ स्थानों पर गिद्धों के घोंसले पाए गए हैं।
उन्होंने कहा कि ये घोंसले यह साबित करते हैं कि यहां गिद्धों का बसेरा है और यह क्षेत्र उन्हें पसंद आ रहा है। उन्होंने साफ लहजे में कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम वीटीआर में उनकी संख्या नहीं बढ़ा सकते। उन्होंने कहा कि हम गिद्धों की अन्य प्रजातियों के बीच हिमालयी ग्रिफॉन गिद्ध की इस क्षेत्र में संख्या बढाने और उन्हें आकर्षित करने के उपाय करने को लेकर योजना बनाई है। उन्होंने बताया गिद्ध संरक्षण केंद्र को लेकर एक प्रस्ताव भी बिहार सरकार को भेजा गया है।
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वीटीआर के मदनपुर, गोनौली, हरनाटांड और भिखनाथोरी क्षेत्रों में गिद्धों को घोंसला पाया गया है। ऐसे में यह तय माना जाना चाहिए कि यह स्थान गिद्धों के संरक्षण के लिए अनुकूल हैं। सर्वेक्षण से उत्साहित वन अधिकारियों ने उनकी आबादी की सुरक्षा और नियमित निगरानी के लिए गिद्ध ट्रैकर्स की तैनाती का अनुरोध किया है। भेजे गए प्रस्ताव में गिद्धों के संरक्षण के अन्य उपायों के अलावा, वाच टावर, बचाव उपकरण, दवाएं और गिद्ध के देखभाल की सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ ही जल संचयन संरचनाओं जैसे बांध, वाटरहोल और तालाबों के निर्माण की भी बात कही गई है।
राय ने एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में पशुओं की दर्द निवारक दवाओं में डाइक्लोफेनाक दिया जा रहा है, यह दर्द तो खत्म कर देता है, लेकिन पशु के टिश्यू में ही रह जाता है। मौत होने की स्थिति में शव अगर खुला रहता है और गिद्ध इन्हें खाते हैं, तो यह रसायन उनके शरीर में पहुंच जाता है। डाइक्लोफिनेक सोडियम इन पक्षियों के लिए टॉक्सिन का काम करता है और उनके लीवर पर असर डालता है, जिससे इनकी मौत हो जाती है। इस कारण भी गिद्धों की संख्या घट गई है।
इधर, पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा भी कहते हैं कि वन विभाग का यह प्रयास उत्साहित करने वाला है। उन्होंने कहा कि वीटीआर में गिद्ध संरक्षण केंद्र स्थापित होने के बाद हिमालय क्षेत्र के पक्षी भी यहां शरण लेंगे। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अभी भी कई प्रजाति के पक्षियों का बसेरा है। उन्होंने बताया कि गिद्ध प्रजाति लुप्तप्राय हो चुके है। यह इलाका जंगली क्षेत्र है, जिस कारण यहां पशुपालकों की संख्या भी कम है। उन्होंने कहा कि बिहार में जो गिद्ध बचे हैं, वे टाइगर रिजर्व में ही दिखाई पड़ते हैं। इसके अलावा इक्का-दुक्का ही दूसरे स्थानों पर दिखाई देते हैं। यह हाल सिर्फ बिहार की नहीं है बल्कि देश भर में 99 प्रतिशत गिद्ध विलुप्त हो चुके हैं।
(आईएएनएस)