तीन तलाक बिल बना कानून, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी मंजूरी
तीन तलाक बिल बना कानून, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी मंजूरी
- तीन तलाक पर बना कानून 19 सिंतबर से 2019 से होगा प्रभावी
- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बिल पर किए हस्ताक्षर
डिजिटल डेस्क, दिल्ली। लोकसभा-राज्यसभा में पास होने के बाद तीन तलाक बिल अब कानून बन गया है। कल बुधवार देर रात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुस्लिम महिलाओं से एक साथ तीन तलाक को अपराध करार देने वाले ऐतिहासिक विधेयक पर हस्ताक्षकर कर दिए हैं। अब विधेयक पूरी तरह कानून का रुप ले चुका है। इस कानून को 19 सितंबर 2019 से लागू माना जाएगा।
बता दें कि तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) की प्रथा पर रोक लगाने वाला बिल (मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019) मंगलवार को राज्यसभा में पास हुआ था। इस बिल का पास होना मोदी सरकार के लिए बड़ी कामयाबी माना गया है। बिल के पक्ष में 99 वोट पड़े जबकि विरोध में 84। कई पार्टियों ने सदन से वॉकआउट भी किया जिस कारण सरकार पर्याप्त संख्या बल न होने के बावजूद इस बिल को पास कराने में कामयाब हुई।
कई पार्टियों ने किया था वॉकआउट
बिल के पास होने से पहले राज्यसभा में लंबी बहस चली। बहस के बाद बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजे जाने की विपक्ष की मांग पर वोटिंग हुई। इस वोटिंग में सरकार को जीत मिली। सत्तारूढ़ एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू और एआईएडीएमके ने तीन तलाक बिल का विरोध किया और दोनों पार्टी ने सदन से वॉकआउट किया। इसके अलावा टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस और बीएसपी ने भी सदन से वॉक आउट किया। विपक्ष के कई सांसद भी सदन में अनुपस्थित रहे।
बता दें कि ट्रिपल तालाक बिल, पिछले 19 महीनों में लोकसभा से तीन बार पारित किया गया, लेकिन राज्यसभा में हर बार अटक जाता था। आखिरकार सरकार को ये बिल पास कराने में कामयाबी मिल गई। लोकसभा ने पिछले हफ्ते 303 वोटों के साथ ट्रिपल तलाक विधेयक पारित किया था। विरोध में 82 वोट पड़े थे।
तीन तलाक बिल में क्या हैं प्रावधान?
- बिल में तलाक-ए-बिद्दत को रद्द और गैर कानूनी बनाया गया है
- तीन तलाक देने वाले पुरुष को पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं।
- मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकते हैं।
- जमानत तभी दी जाएगी, जब पीड़ित महिला का पक्ष सुन लिया जाए।
- बिल में तीन साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
- पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट समझौते की अनुमति दे सकते हैं।
- पीड़ित महिला पति से गुज़ारा भत्ते का दावा कर सकती है।
- गुजारा भत्ते की रकम तय करने का अधिकार मजिस्ट्रेट के पास होगा।
- पीड़ित महिला नाबालिग बच्चों को अपने पास रख सकती है।