कौन हैं बिरसा मुंडा, जिसकी जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने आ रहे हैं पीएम मोदी
एक आवाज जाने कैसा बना एक नारा कौन हैं बिरसा मुंडा, जिसकी जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने आ रहे हैं पीएम मोदी
- क्रांतिकारी से भगवान तक बिरसा
डिजिटल डेस्क, भोपल। 15 नवंबर 1875 को झारखंड के रांची में जन्में बिरसा मुंडा अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की एक आवाज जो कुछ दिनों में ही एक नारा बन गई।
क्रांतिकारी बिरसा का अंग्रेजों के खिलाफ नारा था - “रानी का शासन खत्म करो और हमारा साम्राज्य स्थापित करो। देश के दिल में बसे मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लाखों जनजातीय लोगों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 नवंबर बिरसा जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने जा रहे हैं। इस ऐतिहासिक सम्मेलन में पीएम मोदी आदिवासियों से संबंधित कई योजनाओं की घोषणा कर आदिवासियों को कई सौगात भी दे सकते है।
संगठन और संघर्ष की एक बुलंद आवाज बिरसा
भारत को आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता आंदोलन में कई महान नायक पैदा हुए जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपनी कुरबानी दी। ऐसे महान नायकों में बिरसा मुंडा भी शामिल है। जिन्होंने ब्रिटिश हुकुमत का बिना डरे खुलकर डटकर सामना किया। बिरसा ने अपनी बुलंद आवाज से हजारों जनजातीय लोगों को इकट्ठा किया। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा बिरसा मुंडा नाम उस जीती जागती मिसाल का उदाहरण है जिसने तमाम सुविधाओं के अभाव में कठिन से कठिन परिस्थिति में ब्रिटिश हुकूमत की तानाशाही को अस्वीकार कर उनके खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। बिरसा मुंडा ने बिहार और झारखंड के विकास और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।
बिरसा क्रांतिकारी से भगवान तक
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बचपन से ही बिरसा मुंडा के मन में विद्रोह की भावना घर कर गई थी। आज भी लोग बिरसा मुंडा को उनके कार्यों और आंदोलन की वजह से भगवान की तरह पूजते हैं। 1895 तक बिरसा मुंडा एक सफल नेता के रुप में उभरने लगे वो लोगों में जागरुकता फैलाना चाहते थे। 1894 में आए अकाल के वक्त बिरसा मुंडा ने लोगों के लिए अंग्रेजों से लगान माफी की मांग के लिए आंदोलन किया। बिरसा मुण्डा ने मुण्डा विद्रोह पारम्परिक भू-व्यवस्था को जमींदारी व्यवस्था में बदलने के कारण किया। उन्होंने अपनी सुधारवादी प्रक्रिया के तहत सामाजिक जीवन में एक उच्च आदर्श प्रस्तुत किया। क्रांतिकारी बिरसा मुण्डा ने शुद्धता, आत्म-सुधार और एकेश्वकरवाद का उपदेश दिया। उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को अस्वीकारते हुए अपने अनुयायियों को सरकार को लगान न देने का आदेश दिया था। बिरसा और उनके सैकड़ों समर्थकों ने अकाल पीड़ित जनता की सहायता सेवा सहयोग करना ठाना। यही प्रमुख वजह की अपने जीवन काल में ही बिरसा एक महापुरुष का दर्जा प्राप्त कर चुके। जनजातीय समुदाय में बिरसा को लोग धरती बाबा कहते है जिनकी पूजा भी करते है। उनके प्रभाव झलक पूरे इलाके में देखने को मिलती है।
आंदोलन के चलते अंग्रेजों ने हजारों आदिवासियों को गिरफ्तार कर लिया जिसके व्यथित होकर खुद बिरसा 3 फरवरी, 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार हुए। जहां कुछ महीनों के बाद 9 जून, 1900 को रांची जेल में बिरसा ने अपनी अंतिम सांसें ली। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा भगवान की तरह पूजे जाते हैं।