ओमिक्रॉन के कारण भारत में कोरोना की तीसरी लहर का खतरा बढ़ा
अलर्ट ओमिक्रॉन के कारण भारत में कोरोना की तीसरी लहर का खतरा बढ़ा
- कर्नाटक में ओमिक्रॉन के दो मामलों की पुष्टि
- केंद्र सरकार ने ओमिक्रॉन वैरिएंट से जुड़े सारे पहलुओं पर एक दस्तावेज जारी किया
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कर्नाटक में ओमिक्रॉन के दो मामलों की पुष्टि होने के बाद से, भारत सरकार सतर्क हो गयी है, क्योंकि पूरी दुनिया में कोरोना के इस नए वैरिएंट के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ओमिक्रॉन की पहचान सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने की थी। डब्लूएचओ (WHO) भी इसे "वैरिएंट ऑफ कंसर्न" की सूची में डाल चुका है।
भारत सरकार ओमिक्रॉन को लेकर एक्टिव हो गई है, इसलिए ही समय-समय पर इससे संबंधित गाइडलाइन जारी कर रही है। वैज्ञानिक और डॉक्टर्स भी इसकी पहचान करने, जीनोमिक सर्विलांस करने, वायरस के बारे में साक्ष्य जुटाने और इलाज के तरीके ढूढ़ने में जुट गए हैं।
केंद्र सरकार ने SARS-CoV-2 और ओमिक्रॉन वैरिएंट से जुड़े सारे पहलुओं पर एक दस्तावेज जारी किया है ताकि लोगों को इस नए वैरिएंट को समझने में ज्यादा मदद मिल सके।
क्या है ओमिक्रॉन और यह कैसे वेरिएंट ऑफ कंसर्न बन गया?
ओमिक्रॉन SARS-CoV-2 का नया वैरिएंट है जो सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में पाया गया था। 24 नवंबर को इसे B.1.1.529 यानि कि "ओमिक्रॉन" का नाम दिया गया। इस वैरिएंट में बहुत ज्यादा म्यूटेशन हैं, खासतौर से इसके वायरल स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक म्यूटेशन पाए गए हैं। ये इम्यून रिस्पॉन्स को निशाना बनाते हैं। ओमिक्रॉन के म्यूटेशन की संख्या, इसके संक्रामक दर, इम्यून से बचन निकलने की क्षमता और दक्षिण अफ्रीका में कोरोना के मामले में तेजी से हुई वृद्धि को देखते हुए WHO ने इसे वेरिएंट ऑफ कंसर्न की सूची में डाला है।
क्या तीसरी लहर आने की संभावना है?
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि दक्षिण अफ्रीका के बाहर के देशों से भी ओमिक्रॉन के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं और इसकी विशेषताओं को देखते हुए, इसकी भारत सहित बाकी देशों में भी फैलने की संभावना है। हालांकि बीमारी की गंभीरता अभी भी स्पष्ट नहीं है।
भारत में टीकाकरण की तेज गति और डेल्टा से ज्यादा संक्रमितों को मिली सीरोपॉजिविटी को देखते हुए इस वैरिएंट के कम गंभीर होने का अनुमान लगाया जा रहा है। हालांकि, वैज्ञानिक अभी भी साक्ष्य जुटा रहे है। अभी इसके अध्यन में दो से तीन हफ्तों का समय लग सकता है।
नए वेरिएंट के वायरस को पकड़ने में कितना असरदार है RT-PCR?
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि आरटी-पीसीआर टेस्ट वायरस की पुष्टि करने के लिए स्पाइक (एस), लिफाफा (ई), और न्यूक्लियोकैप्सिड (एन) जैसे विशिष्ट जीन का पता लगाते हैं। "हालांकि, ओमिक्रॉन के मामले में, चूंकि एस जीन भारी रूप से म्यूटेशन होता है, इसलिए कुछ प्राइमरों से एस जीन की अनुपस्थिति का संकेत मिलता है (जिसे एस जीन ड्रॉप आउट कहा जाता है)।
हालांकि, ओमिक्रॉन वैरिएंट के अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग जरूरी है।
हमें ओमिक्रॉन के बारे में कितना चिंतित होना चाहिए?
डब्लूएचओ किसी भी वैरिएंट को "वैरिएंट ऑफ कंसर्न" की श्रेणी में कुछ खास बातों का मूल्यांकन करने के बाद ही डालता है। ओमिक्रॉन को उसके म्यूटेशन, तेजी से बढ़ते ट्रांसमिशन, इम्यून को चकमा देने की क्षमता और री-इंफेक्शन जैसी बातों को ध्यान में रखकर "वैरिएंट ऑफ कंसर्न" की श्रेणी में डाला गया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने किन सावधानियों की सिफारिश की है?
ओमिक्रॉन से बचने के लिए जनता को पहले की तरह ही सावधानियां बरतनी होंगी। मास्क का इस्तेमाल करे, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और अगर अब तक वैक्सीन की दोनों डोज नहीं ली है तो इसे जल्द से जल्द लगवाएं। जहां भी रहें वहां अधिकतम वेंटिलेशन बनाए रखें।
मौजूदा वैक्सीन ओमिक्रॉन पर कितनी असरदार?
अभी तक, इस बात का कोई भी सबूत नहीं है कि मौजूदा वैक्सीन ओमिक्रॉन पर काम नहीं कर रही हैं या नहीं, हालांकि स्पाइक जीन के कुछ म्यूटेशन वैक्सीन की क्षमता को कुछ कम कर सकते हैं। वैक्सीन की सुरक्षा शरीर में बनी एंटीबॉडी या इम्यूनिटी द्वारा ही होती है, इसलिए वैक्सीन अभी भी गंभीर बीमार के प्रति सुरक्षा देती है।
कैसे बन रहे है वैरिएंट्स?
जब तक वायरस ट्रांसमिशन या इन्फेक्शन फैलाने में सक्षम रहेगा, वैरिएंट्स का विकास होता रहेगा और इससे वैरिएंट्स बनते रहेंगे। वैरिएंट्स को बनने से रोकने के लिए जरूरी है कि इंफेक्शन रेट को घटाया जाए।