राजीव गांधी चाहते तो अयोध्या समस्या का समाधान निकाला जा सकता था: गोडबोले

राजीव गांधी चाहते तो अयोध्या समस्या का समाधान निकाला जा सकता था: गोडबोले

Bhaskar Hindi
Update: 2019-11-04 17:56 GMT
राजीव गांधी चाहते तो अयोध्या समस्या का समाधान निकाला जा सकता था: गोडबोले

डिजिटल डेस्क, पुणे। अयोध्या में विवादित रामजन्म भूमि पर जल्द ही सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है। ऐसे में 1992 में बाबरी विध्वंस के समय केंद्रीय गृह सचिव रहे माधव गोडबोले ने खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी यदि चाहते तो कुछ कदम उठा सकते थे और समय रहते समस्या का समाधान निकाला जा सकता था।

चूंकि उस वक्त दोनों पक्षों की राजनीतिक स्थि​ति मजबूत नहीं थी। उस समय लेन-देन की संभावना थी और समाधान स्वीकार्य हो सकता था। गोडबोले 1992 में गृहसचिव के पद पर थे और उन्होंने "द बाबरी मस्जिद-राम मंदिर डिलेमा: एन एसिड टेस्ट फॉर इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन" नामक किताब लिखी है।

गोडबोले ने कहा कि राजीव बाबरी मस्जिद के ताले खोलने की सीमा तक गए और वहां मंदिर की आधारशिला रखी गई। यह काम तब हुआ, जब राजीव प्रधानमंत्री थे। मैं इसीलिए उन्हें इस आंदोलन का दूसरा कारसेवक कहता हूं, पहला कारसेवक उस समय अयोध्या का जिलाधिकारी था, जिसने यह सब होने दिया। ज्ञात हो कि 1986 में राजीव गांधी सरकार ने बाबरी के ताले खोलने के आदेश दिए थे।
 
नरसिंहाराव राष्ट्रपति शासन लगाने पर संशय में थे
उस समय की पस्थितियों का जिक्र करते हुए गोडबोले ने कहा कि हमने अनुच्छेद 355 लागू करने का प्रस्ताव रखा था, जिसके तहत उत्तर प्रदेश में केंद्रीय सुरक्षा बलों को मस्जिद की रक्षा के लिए भेजा जाता और फिर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता। हमने एक बेहद प्रासंगिक प्लान बनाया था, क्योंकि राज्य सरकार सहयोग नहीं करने वाली थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को शंका थी कि उन्हें ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाने का संवैधानिक अधिकार है या नहीं। वहीं एआईएमआईएम प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी ने पूर्व केंद्रीय गृह सचिव माधव गोडबोले की बात का समर्थन किया और राजीव गांधी को घेरा है।

कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
अयोध्या मामले पर 40 दिन की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने तब कहा था कि हम 23 दिन के भीतर फैसला सुनाएंगे। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान को मिले। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।
 

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