साढ़े तीन दशक से ज्यादा वक्त बीता, फिर भी नहीं भरे उस जख्म के निशान

भोपाल गैस त्रासदी साढ़े तीन दशक से ज्यादा वक्त बीता, फिर भी नहीं भरे उस जख्म के निशान

Bhaskar Hindi
Update: 2021-11-30 09:56 GMT
साढ़े तीन दशक से ज्यादा वक्त बीता, फिर भी नहीं भरे उस जख्म के निशान
हाईलाइट
  • दूषित पानी पीने के लिए मजबूर लोग
  • भ्रष्टाचार के अड्डे बने गैस राहत के अस्पताल
  • लोगों के हेल्थ पर पड़ रहा बुरा प्रभाव

डिजिटल डेस्क,भोपाल। 3 दिसम्बर 1984 इतिहास में दर्ज वो काला दिन जिसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया और भारत के दिल मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को दहला दिया। इस घटना के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन की 29 सितंबर 2014 को मौत हो गई।

काली परेड के यूनियन कार्बाइड कारखाने से इस दिन  कीड़े मकोड़ों को मारने वाला कीटनाशक मिथाइल आइसोसायनाइड का रिसाव हुआ। रिसाव इतना खौफनाक था कि जिसकी पीड़ा आज भी जिंदा है। दुर्घटना गैर जिम्मेदारी, लापरवाही, लोभ, लालच और अनदेखी के नतीजे का परिणाम थी। जिसका खामियाजा निर्दोष नागरिकों बच्चों और महिलाओं को भुगतना पड़ा।  पीड़ा का यह सिलसिला आज भी जारी है। 

जहरीली गैस का खौफनाक लीकेज भोपाल में जहरीले बादल के रूप में  छा गया। जिसका प्रभाव लोग आज भी भुगत रहे है। परेशानी दुर्घटना के समय तक ही सीमित नहीं थी। बल्कि  उसका असर अभी तक पड़ रहा है। कई लोगों ने दर्द भरी पीड़ा के कारण खुदकुशी का मार्ग अपना लिया। आज भी पैदा होने वाले बच्चों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं  देखने को मिल रही है। भोपाल गैस कांड ने तालाबों के शहर को अस्पतालों और मरीजों का शहर बना दिया।

गैस पीड़ा से प्रभावित लोगों के स्वास्थ्य पर इलाज का क्या प्रभाव पड़ रहा है इसकी सटीक जानकारी आज भी जिम्मेदारों के पास नहीं है। भ्रष्टाचार के अड्डे बने गैस राहत के अस्पतालों में हांफते - कांपते मरीजों की लंबी लाइन आज भी देखने को मिल जाती है। गैस कांड से प्रभावित इलाके में स्वच्छ पानी प्रदान करने के लिए साल  2004 साल में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश किया लेकिन आज भी लोग दूषित पानी  पीने के लिए मजबूर है। जिससे लोगों को घुटन, आंखों में जलन ,उल्टी ,पेट फूलना ,सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में  पानी भर जाना जैसी आदि समस्याएं देखने को मिल रही है।

फैक्ट्री में जमा कचरा हवा, पानी, जमीन को प्रदूषित कर रहा है। यूनियन कार्बाइड प्लांट में पड़े घातक रसायनों को अब तक ठिकाने नहीं लगाया गया, इन रसायनों ने कारखानों के आसपास हवा, पानी ,मिट्टी में जहर घोल दिया है। जिसका असर 37 सालों बाद आज भी देखने को मिल रहा है। प्रभावित लोगों को अब साफ स्वच्छ पानी, बेहतर स्वास्थ्य सेवा के साथ  कचरे से मुक्ति का इंतजार है।

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