जयंती : जब म्यूजिक वीडियो के लिए एक मंच पर आए थे अटल जी, शाहरुख और जगजीत
जयंती : जब म्यूजिक वीडियो के लिए एक मंच पर आए थे अटल जी, शाहरुख और जगजीत
- एलबम का शीर्षक "संवेदना" था और इसे जगजीत सिंह ने गाया और कंपोज किया था।
- 2002 में उनकी कविताओं में से एक "क्या खोया क्या पाया" को गजल गायक जगजीत सिंह ने एक गीत में बदला था।
- अटल बिहारी वाजपेयी एक शानदार कवि थे। एक उत्कृष्ट वक्ता होने के साथ
- उन्होंने कुछ दार्शनिक कविताओं को लिखा।
डिजिटल डेस्क, मुंबई। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक शानदार कवि थे। 25 जनवरी 1924 को ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स (ऑल इंडिया इस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) में अंतिम सांस ली थी। अटलजी के निधन के बाद उनकी पहली जयंती मंगलवार (25 दिसंबर 2018) को है। ये उनकी 94वीं जयंती है। आइए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ यादें...
एक उत्कृष्ट वक्ता होने के साथ, उन्होंने कुछ दार्शनिक कविताओं को लिखा। यह वर्ष 2002 का था जब उनकी कविताओं में से एक "क्या खोया क्या पाया" को गजल गायक जगजीत सिंह ने एक गीत में बदला था। एलबम का शीर्षक "संवेदना" था और इसे जगजीत सिंह ने गाया और कंपोज किया था। इस म्यूजिक वीडियो में शाहरुख खान को फीचर किया गया था। अमिताभ बच्चन ने इसकी प्रस्तावना को नैरेट किया था। वीडियो यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित किया गया था।
इस म्यूजिक वीडियो को करने से पहले शाहरुख खान ने कहा था कि वो सोच नहीं पा रहे थे कि एक गंभीर कविता पर अभिनय कैसे होगा। लेकिन जब उन्होंने इस कविता को पढ़ा और यश चोपड़ा और अटल जी से मुलाकात की तो उन्हें समझ आ गया कि अटल जी क्या चाहते हैं ? शाहरुख ने बताया था कि इस गीत में अभिनय से पहले उन्होंने अटल जी से सलाह ली थी। वहीं साल 2011 में जगजीत साहब ने गुलाम अली के साथ होने वाले एक रेडियो चैनल के लाइव कंसर्ट के दौरान एक किस्से को साझा किया था। उन्होंने बताया था कि जब इस वीडियो को बनाने की बात हुई तो वाजपेयी जी जैसे दिग्गज शख्सियत के साथ किसे खड़ा किया जाए सोचना मुश्किल था। इसके बाद उन्होंने शाहरुख खान का नाम सुझाया और फिर शाहरुख के बाद यश चोपड़ा और फिर अमिताभ इस एलबम से जुड़ गए।
इस म्यूजिक वीडियो की शुरुआत में जावेद अख्तर के लिखे ओपनिंग कमेंट्स में अमिताभ बच्चन कहते हैं – ज़िंदगी के शोर, राजनीति की आपाधापी, रिश्ते नातों की गलियों और क्या खोया क्या पाया के बाजारों से आगे। सोच की राह में एक ऐसा नुक्कड़ आता है जहां पहुंच कर इंसान एकाकी हो जाता है और तब जाग उठता है एक कवि।
अटल जी की लिखी कविता
क्या खोया क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिकायत,
यद्यपि छला गया पग-पग में,
एक दृष्टि बीती पर डालें,
यादों की पोटली टटोलें,
जन्म मरण का अविरत फेरा,
जीवन बंजारों का अविरत डेरा,
आज यहाँ कल वहाँ कूच है,
कौन जानता किधर सवेरा,
अंधियारा आकाश असीमित,
प्राणों के पखों को तौलें,
अपने ही मन से कुछ बोलें...
जन्म मरण का अविरत फेरा,
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ कल वहाँ कूच है,
कौन जानता किधर सवेरा
अँधियारा आकाश असीमित प्राणों के पंखों को खोले…
अपने ही मन से कुछ बोले
क्या खोया क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत,
यद्यपि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डाले यादों की पोटली टटोलें
अपने ही मन से कुछ बोले-अपने ही मन से कुछ बोले..
कविताओं के लिए मिली थी प्रशंसा
बता दें कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और अति लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी कविताओं के लिए भी प्रशंसा मिली थी। अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में महज 13 दिनों के लिए प्रधानमंत्री पद पर रहे और फिर 1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे।