JuH का अयोध्या में मस्जिद के लिए जमीन लेने से इनकार, कहा- विकल्प स्वीकार नहीं
JuH का अयोध्या में मस्जिद के लिए जमीन लेने से इनकार, कहा- विकल्प स्वीकार नहीं
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। जमीयत उलमा-ए-हिंद (JuH) ने अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन स्वीकार करने से मना कर दिया है। हाल ही में अपने सर्वसम्मत फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया, जबकि केंद्र को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन आवंटित करने का निर्देश दिया था।
दिल्ली में अपनी कार्यसमिति की बैठक के बाद, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने कहा कि एक मस्जिद के लिए "विकल्प" के रूप में कुछ भी स्वीकार्य नहीं होगा, चाहे वह धन हो या जमीन। एक अन्य बड़े फैसले में, JuH ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की समीक्षा के लिए रिव्यू पिटीशन की संभावना से भी इनकार नहीं किया। अपने अध्यक्ष अरशद मदानी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय तथ्य-खोज समिति, इस मुद्दे पर कानूनी राय लेगी।
JuH के यूपी प्रमुख मौलाना अशहद रशीदी ने कहा, "कार्य समिति की बैठक में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। एक मस्जिद के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक भूमि से संबंधित और एक समीक्षा याचिका दायर करने से संबंधित। कार्य समिति ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि दुनिया की किसी भी चीज़ को मस्जिद के लिए विकल्प के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। न तो पैसा और न ही जमीन।
समीक्षा याचिका के सवाल पर, मौलाना रशीदी ने कहा, "अरशद मदानी की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की एक समिति कुछ दिनों में कोर्ट के दस्तावेजों का अध्यन करेगी और अगला कदम उठाने से पहले अपने और सुप्रीम कोर्ट के वकीलों से कानूनी राय लेगी।
1919 में स्थापित, जमीयत उलमा-ए-हिंद देश के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम संगठनों में से एक है जिसने भारत में 100 साल पूरे किए। यह विभाजन का विरोध करते हुए खिलाफत आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम का एक सक्रिय सदस्य था।
बता दें कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन स्वीकार करने का फैसला 26 नवंबर को होने वाली बैठक में लेगी। यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ज़फर फारूकी ने कहा था कि 26 नवंबर को बोर्ड की आम सभा की बैठक में यह तय किया जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार 5 एकड़ जमीन ली जाए या नहीं।"
उन्होंने कहा था, "मुझे जमीन लेने पर अलग-अलग विचार मिल रहे हैं लेकिन मुझे लगता है कि नकारात्मकता को सकारात्मकता के साथ ही जीता जा सकता है।"