सिसोदिया की जमानत: 17 महीने में लगाईं 27 याचिकाएं- जानिए जमानत की खातिर मनीष सिसोदिया के वकील ने क्या-क्या दीं दलीलें
- दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री को मिली बेल
- किन दलीलों के चलते मिली जमानत?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। सिसोदिया को 17 महीनों बाद अब जमानत मिल गई है। वहीं सीबीआई और ईडी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया की जमानत याचिका पर फैसला सुनाया है। साथ ही कई दलीलें सामने रखी हैं। आईए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने किन दलीलों के चलते सिसोदिया को जमानत दी है।
बिना सजा के जेल में रखना
मनीष सिसोदिया ने सीबीआई मामले में 13 और ईडी के मामले में 14 अर्जियां निचली अदालत में दाखिल की थीं। साथ ही उनको लंबे समय के लिए जेल में रखा गया था। बता दें कि किसी बिना सजा के चलते किसी को भी लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता है।
ईडी की आपत्ति से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम ईडी की प्रारंभिक आपत्ति को मनाने के इच्छुक नहीं कि ये याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।" 17 महीने की लंबी कैद और मुकदमा शुरू ना होने के चलते सिसोदिया को सुनवाई के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। साथ ही 400 से ज्यादा गवाहों को देखते हुए इसके जल्द ट्रायल पूरा होने की संभावना नहीं दिखती है।
अदालतों के चक्कर लगाना
सिसोदिया को निचली अदालत उसके बाद हाई कोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट बुलाया गया। बता दें कि उन्होंने दोनों अदालत में याचिका दाखिल की थी। वहीं पहले आदेश के अनुसार 6 से 8 महीने की समय सीमा बताई गई है।
ट्रिपल टेस्ट नहीं आएगा आड़े
हमने पिछले साल अक्टूबर के अपने आदेश में देरी के आधार पर जमानत की बात की थी। इस मामले में ट्रिपल टेस्ट आड़े नहीं आएगा। क्योंकि यहां मुद्दा ट्रायल शुरू होने में देरी का है।
ये न्याय का मजाक होगा
सुप्रीम कोर्ट का ये भी कहना है कि अगर सिसोदिया को वापस ट्रायल के लिए जाने को बोला जाता है तो ये न्याय का मजाक उड़ाना होगा। वहीं निचली अदालत ने राइट टू स्पीडी को ट्रायल को अनदेखा कर दिया और मेरिट के आधार पर जमानत दे दी।
ट्रायल नहीं होगा खत्म
जमानत नियम है और जेल अपवाद है। हमने लंबे समय तक कैद रखे जाने पर विचार किया है। इसलिए ट्रायल आने वाले समय में खत्म नहीं होगा।
इधर-उधर भागने पर मजबूर ना करना
अपीलकर्ता को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजना उसके साथ सांप-सीढ़ी का खेल खेलने जैसा होगा। साथ ही किसी भी आदमी को एक जगह से दूसरी जगह भागने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
सुनवाई में देरी का प्रूफ नहीं
आरोपी को जल्दी सुनवाई का अधिकार है। वहीं इस बात का कोई प्रूफ नहीं है कि याचिकाकर्ता ने सुनवाई में देरी की है।
स्वतंत्रता का अधिकार हमेशा जरूरी
एएसजी की सुप्रीम कोर्ट में सिसोदिया को दिल्ली के सीएम ऑफिस जाने से रोकने की दलील को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है। क्योंकि स्वतंत्रता का अधिकार हमेशा जरूरी रखता है।