Water on Moon: चंद्रमा पर सूरज की रोशनी वाली सतह पर मिला पानी, जानिए ये खोज क्यों है खास?

Water on Moon: चंद्रमा पर सूरज की रोशनी वाली सतह पर मिला पानी, जानिए ये खोज क्यों है खास?

Bhaskar Hindi
Update: 2020-10-27 11:50 GMT
हाईलाइट
  • इन सवालों का जवाब ढूंढेंगे NASA वैज्ञानिक
  • चांद पर कैसे आया पानी
  • इंसानों के इस्तेमाल के कितना योग्य

डिजिटल डेस्क, वॉशिंगटन। अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की है। खास बात यह है कि पानी की मौजूदगी केवल ठंडी और छाया वाले स्थानों तक सीमित नहीं है। नासा को लगता है कि ये पानी चंद्र सतह पर फैला हुआ है जहां सूरज की रोशनी पड़ती है वहां भी। स्ट्रैटोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (SOFIA) टेलिस्कोप ने इसकी पुष्टि की।  SOFIA के ऑबजर्वेशन के रिजल्ट नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में दो पत्रों में प्रकाशित किए गए हैं। बता दें कि SOFIA नासा और जर्मन एयरोस्पेस सेंटर का जॉइंट प्रोजेक्ट है। यह एक 2.5m टेलिस्कोप है। ये दुनिया की सबसे बड़ी फ्लाइंग ऑब्जर्वेटरी है जो बोइंग 747-SP विमान पर करीब 45,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ती है।

ये टेलिस्कोप, फेंट ऑब्जेक्ट इन्फ्राएड कैमरा का उपयोग करता है। इसकी मदद से यह चंद्रमा की सतह से विशिष्ट वेवलेंथ के वॉटर मॉलिक्यूल को पिक कर सकता है। सोफिया ने चंद्रमा के दक्षिणी गोलार्ध स्थित और धरती से दिखाई देने वाले सबसे बड़े गड्ढों में से एक क्लेवियस क्रेटर में पानी के अणुओं (एच2ओ) का पता लगाया है। पिछले परीक्षणों के दौरान नासा ने चांद की सतह पर हाइड्रोजन के कंपाउंड मौजूद होने का खुलासा हुआ था लेकिन तब हाइड्रोजन और पानी के निर्माण के लिए जरूरी अवयव हाइड्रॉक्सिल (OH) की गुत्थी नहीं सुलझाई जा सकी थी। नेचर एस्ट्रोनॉमी के ताजा अंक में प्रकाशित अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक, चांद पर पानी की खोज वाले इलाके के डेटा से 100 से 412 पार्ट प्रति मिलियन की सांद्रता में पानी मिला है। तुलनात्मक रूप से देखें तो चंद्रमा की सतह पर जितनी पानी की खोज की गई है उसकी मात्रा अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में मौजूद पानी की तुलना में 100 गुना कम है।

शोधकर्ताओं को लगता है कि क्रेटर में पाया गया पानी छोटे उल्कापिंड की टक्कर से या फिर सन के इंजेक्ट किए गए एनर्जिटिक पार्टिकल के इंटरेक्शन से बना है। जब सोलर विंड चंद्र सतह तक हाइड्रोजन पहुंचाती हैं, तो हाइड्रोजन मिट्टी में ऑक्सीजन-बीयरिंग मिनरल के साथ रिएक्ट कर हाइड्रॉक्सिल बनाता है। तब शायद यह हाइड्रॉक्सिल पानी में तब्दील हो गया। इस बड़ी खोज से न केवल चंद्रमा पर भविष्य में होने वाले मानव मिशन को बड़ी ताकत मिलेगी। बल्कि, इनका उपयोग पीने और रॉकेट ईंधन उत्पादन के लिए भी किया जा सकेगा। नासा 2024 तक चांद पर एक बार फिर मानव मिशन भेजने की तैयारी कर रहा है। इस मिशन में पहली बार एक महिला एस्ट्रोनॉट को भी भेजा जाएगा। अगर वैज्ञानिक चंद्रमा पर मौजूद संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम हो जाते है तो अगले मिशनों में ज्यादा पानी नहीं ले जाना होगा जिससे वैज्ञानिक अपने साथ ज्यादा उपकरण ले जा सकेंगे।

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