1948 में आजाद होने के बाद पहली बार आर्थिक कुप्रबंधन की मिसाल बना श्रीलंका

श्रीलंका 1948 में आजाद होने के बाद पहली बार आर्थिक कुप्रबंधन की मिसाल बना श्रीलंका

Bhaskar Hindi
Update: 2022-04-11 11:30 GMT
1948 में आजाद होने के बाद पहली बार आर्थिक कुप्रबंधन की मिसाल बना श्रीलंका
हाईलाइट
  • त्रासदी की जिम्मेदार खुद सरकार

डिजिटल डेस्क, कोलंबो। ब्रिटिश शासन से साल 1948 में आजाद होने के बाद पहली बार श्रीलंका इतने गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। श्रीलंका जरूरी दवाओं, ईंधन, बिजली आदि की भारी कमी से जूझ रहा है।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका की इस आर्थिक त्रासदी की जिम्मेदार खुद सरकार है, जिसने ऐसे फैसलों की झड़ी लगा दी, जो देश के आर्थिक हित में नहीं थे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम है कि विदेशी कर्ज का भुगतान करना असंभव हो गया है। आर्थिक संकट के कारण महंगाई चरम पर पहुंच गयी है, ईंधन का आयात नहीं किया जा सकता है क्योंकि सरकार के पास आयात बिल चुकाने के लायक विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है।

लोगों को हर चीज के लिये लंबी लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है। अस्पतालों ने जरूरी दवाओं की किल्लत की बात करनी शुरू कर दी है। दुकानें बंद करनी पड़ रही हैं क्योंकि बिजली न होने के कारण फ्रीज, पंखे बंद हैं। देश का निर्यात भी ठप हो गया है और यहां के कपड़ा उद्योग को मिलने वाले विदेशी ऑर्डर पड़ोसी देशों को मिलने लगे हैं। ऑर्डर पूरा करने के लिये कारखानों को बिजली की जरूरत होती है, जिसकी यहां अभी घनघोर कमी है।

रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका की यह हालत सरकार के फैसलों के साथ-साथ प्राकृतिक कारणों से भी हुई है। सरकार इसके लिये कारोना महामारी को दोषी ठहराती है, जिसके कारण यहां का पर्यटन उद्योग ठप हो गया है। पर्यटन उद्योग यहां विदेशी मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण स्रोत है। लेकिन यह बात बिल्कुल सही नहीं है क्योंकि श्रीलंका के आर्थिक संकट की कहानी 2020 से पहले ही लिखी जाने लगी थी।

इससे पहले साल 2019 में ईस्टर डे बम हमले में कई लोग मारे गये थे, जिससे यह देश पर्यटकों के लिये सुरक्षित नहीं माने जाने लगा। उससे पहले 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री को बर्खास्त करके एक तरह से देश में संवैधानिक संकट उत्पन्न कर दिया था। श्रीलंका अपनी विशाल परियोजनाओं को पूरा करने के लिये विदेशी ऋण लेता गया। श्रीलंका दरअसल जब 2009 में गृह युद्ध की समाप्ति से उबरा तो सरकार ने विदेशी बाजार की जगह घरेलू बाजार पर अधिक ध्यान दिया।

विदेशी बाजार पर अधिक ध्यान न देने के कारण श्रीलंका का निर्यात सीमित रहा, जबकि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये वह आयात पर निर्भर होता चला गया। इस तरह विदेशी मुद्रा भंडार अर्जित करने के एक महत्वपूर्ण स्रोत पर श्रीलंकाई सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया। इसकी रही सही कसर यूक्रेन युद्ध ने निकाल दी। यूक्रेन श्रीलंका की चाय का एक बड़ा आयातक था लेकिन युद्ध शुरू होने के कारण यह बाजार भी श्रीलंका से छीन गया।

चीन ने यहां बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के तहत ऐसी परियोजनाओं शुरू किया, जिन पर निवेश तो भारी भरकम हुआ लेकिन उनकी उपयोगिता नदारद रही। साल 2019 में श्रीलंका के पास 7.6 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जो मार्च 2020 तक घटकर मात्र 2.3 अरब डॉलर रह गया। महिंदा राजपक्षे की सरकार जब 2019 में सत्ता में आयी तो उसने कर में कटौती की घोषणा की लेकिन यह उपाय भी सरकारी खजाने को खाली करने वाला ही साबित हुआ।

वर्ष 2021 में जब करेंसी की कमी से देश गुजरने लगा तो सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के आयात पर पूर्ण पाबंदी लगाने के साथ किसानों को आर्गेनिक खेती करने के लिये कहा। बिना किसी प्रोत्साहन के और वैज्ञानिक पद्धति के आर्गेनिक खेती करने से देश में खाद्य संकट भी उत्पन्न हो गया। उर्वरकों का इस्तेमाल न होने से फसल के उत्पादन में भारी गिरावट आ गयी। इस खाद्य संकट से उबरने के लिये सरकार को खाद्यान का आयात करना पड़ा, जिससे उसके विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

 

(आईएएनएस)

Tags:    

Similar News