जलवायु: 'अभूतपूर्व वैश्विक तापमान वृद्धि के लिये मानवीय गतिविधियाँ ज़िम्मेदार'
जलवायु और पर्यावरण जलवायु: 'अभूतपूर्व वैश्विक तापमान वृद्धि के लिये मानवीय गतिविधियाँ ज़िम्मेदार'
- जलवायु परिवर्तन पर UN की फिक्र
जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी पैनल (IPCC) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन व्यापक स्तर पर तेज़ी से हो रहा है और यह प्रक्रिया गहन रूप धारण कर रही है. आईपीसीसी द्वारा सोमवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिकृ मौजूदा समयावधि में, कुछ रुझानों की दिशा पलट पाना सम्भव नहीं होगा.
मानव-जनित जलवायु परिवर्तन, विश्व के हर क्षेत्र में मौसम व जलवायु को प्रभावित कर रहा है. वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की सम्पूर्ण जलवायु प्रणाली, वातावरण, महासागगर, बर्फ़ की तैरती चादर व भूमि में आए बदलाव को दर्ज किया है.
आईपीसीसी की छठी समीक्षा रिपोर्ट (sixth assessment report) बताती है कि इनमें से अनेक बदलाव अभूतपूर्व हैं. समुद्री जलस्तर के बढ़ने सहित अन्य कुछ परिवर्तन फ़िलहाल घटित हो रहे है.
कुछ बदलावों व रुझानों की दिशा बदल पाना सम्भव नहीं है, मगर अन्य की रफ़्तार को धीमा किया जा सकता है या रोका जा सकता है.
आईपीसीसी वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को अब भी सीमित रखा जा सकता है.
कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों में ठोस व निरन्तर कटौती के ज़रिये वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है.
इससे अगले 20 से 30 वर्षों में वैश्विक तापमान में स्थिरता ला पाने में सफलता मिल सकती है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कार्यकारी समूह की इस रिपोर्ट को मानवता के लिये बेहद चिन्ताजनक क़रार दिया है.
उन्होंने कहा कि ख़तरे की घण्टियाँ बहुत तेज़ आवाज़ में बज रही हैं और साक्ष्यों को ठुकराया नहीं जा सकता.
महासचिव गुटेरेश ने आगाह किया कि पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से पहले के वैश्विक तापमान के स्तर में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी की दहलीज ख़तरनाक ढंग से नज़दीक आ गई है, जिसके निकट भविष्य में ही छू जाने का जोखिम है.
उन्होंने कहा कि इस सीमा को पार करने से रोकने के लिये प्रयासों में तेज़ी लानी होगी और सबसे महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के मार्ग पर चलना होगा.
यूएन प्रमुख ने ताज़ा रिपोर्ट पर अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि समाधान स्पष्ट हैं.
“अगर हम एक जुटता व साहस के साथ, इस संकट पर जवाबी कार्रवाई करें, तो समावेशी व हरित अर्थव्यवस्थाएँ, समृद्धि, पहले से ज़्यादा स्वच्छ वायु और सभी के लिये बेहतर स्वास्थ्य सम्भव हैं.”
महासचिव गुटेरेश ने सभी देशों, विशेष रूप से जी20 देशों की अर्थव्यवस्थाओं से, इस वर्ष नवम्बर में ग्लासगो में होने वाले वार्षिक जलवायु सम्मेलन (COP26) से पहले, नैट शून्य कार्बन उत्सर्जन गठबन्धन का हिस्सा बनने की पुकार लगाई है.
इसके लिये विश्वसनीय, ठोस व पहले से बेहतर राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं का ख़ाका तैयार किये जाने पर बल दिया गया है.
मानवीय गतिविधियों का असर
आईपीसीसी की यह रिपोर्ट 66 देशों के 234 वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार की है. रिपोर्ट दर्शाती है कि मानवीय गतिविधियों के प्रभावों ने जलवायु को जिस रफ़्तार से गर्म किया है, वह पिछले दो हज़ार सालों में अभूतपूर्व है.
बताया गया है कि वर्ष 2019 में वातावरण में CO2 की सघनता पिछले 20 लाख वर्षों में सबसे अधिक है, और मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा पिछले आठ लाख वर्षों में सबसे ज़्यादा आँकी गई है.
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आइसलैण्ड के एक इलाक़े में बर्फ़ की परतें.
धरती की सतह का तापमान वर्ष 1970 से अब तक जिस तेज़ी से बढ़ा है, उतना किसी अन्य 50 वर्ष की अवधि में, पिछले दो हज़ार सालों में नहीं देखा गया.
इस बीच, समुद्री जलस्तर के वैश्विक औसत में आई बढ़ोत्तरी, वर्ष 1900 से, उससे पहले के तीन हज़ार सालों में सबसे अधिक है.
रिपोर्ट के अनुसार मानवीय गतिविधियों के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, वर्ष 1850-1900 के दौरान तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी के लिये ज़िम्मेदार है.
अगले 20 वर्षों में औसतन, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के 1.5 डिग्री सेल्सियस या उससे भी पार चले जाने की आशंका है.
समय बीता जा रहा है
आईपीसीसी वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि 21वीं सदी में वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी वास्तविकता बन सकती है.
उन्होंने स्पष्ट किया है कि कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य ग्रीनहाउस गैसों में त्वरित ढंग से ठोस कटौतियों के अभाव में, वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य हासिल कर पाना, पहुँच से दूर हो जाएगा.
जलवायु परिवर्तन पर गठित इस आयोग की समीक्षा, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के ऐतिहासिक रुझानों और मानव-जनित उत्सर्जनों के कारण जलवायु प्रणाली पर होने वाले असर की समीक्षा पर आधारित है.
विशेषज्ञों ने बताया कि मानव गतिविधियाँ, प्रमुख जलवायु प्रणालियों के सभी घटकों पर असर डालती हैं. इनमें से कुछ परिवर्तन दशकों में देखे जा सकते हैं, जबकि अन्य, सदियों में सामने आते हैं.
ताप लहरों, सूखे, चक्रवाती तूफ़ानों सहित चरम मौसम की घटनाओं में देखे गए बदलावों और मानवीय गतिविधियों से इन पर होने वाले असर में, आपसी सम्बन्ध पहले से मज़बूत हुआ है.
वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु प्रणाली में अनेक बदलाव, वैश्विक तापमान में हुई बढ़ोत्तरी की वजह से प्रत्यक्ष रूप से और ज़्यादा व्यापक हो गए हैं.
इनमे चरम स्तर को छूने वाली गर्मी की बढ़ती आवृत्ति व गहनता, समुद्री ताप लहरें, कुछ क्षेत्रों में कृषि व पारिस्थितिकी सूखा, ज़्यादा तीव्रता वाले तूफ़ान और आर्कटिक सागर में जमी बर्फ़ के स्तर में आई गिरावट है.
बदलाव की सदी
आईपीसीसी वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले दशकों में सभी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार बढ़ेगी. वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर ताप लहर घटनाओं की संख्या बढ़ेगी, गर्मी के मौसम लम्बे और शीत ऋतु की अवधि कम हो जाएगी.
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बिजली संयंत्रों से होने वाला वायु प्रदूषण वैश्विक तापमान में वृद्धि करता है.
2 डिग्री सेल्सियम की वृद्धि की स्थिति में, तापमान का स्तर इतना अधिक होने की आशंका है, जिसके मानवीय स्वास्थ्य और कृषि पर गम्भीर दुष्प्रभाव होंगे. मगर, यह केवल तापमान तक ही सीमित नहीं है.
उदाहरणस्वरूप, जलवायु परिवर्तन, जल के प्राकृतिक उत्पादन को गहन कर रहा है, जिससे मूसलाधार बारिश और उससे होने वाली बाढ़ की घटनाएँ होती हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों में सूखे की समस्या गहरी हो जाएगी.
मौजूदा हालात से वर्षा रुझानों पर भी असर पड़ रहा है. उच्च अक्षांश (high latitudes) वाले क्षेत्रों में, वातावरण में जल की सघनता बढ़ने, जबकि उप उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों (subtropics) में गिरावट आने की सम्भावना है.
मॉनसून वर्षा रुझानों में बदलाव आ सकते हैं, जिनमें क्षेत्रीय स्तर पर भिन्न-भिन्न प्रभाव देखे जाएंगे.
वहीं तटीय इलाक़ों में समुद्री जलस्तर में होने वाली वृद्धि 21वीं सदी में जारी रहने का अनुमान है, जिससे निचले तटीय इलाक़ों में बाढ़ की घटनाओं की संख्या बढ़ेगी और तटीय क्षरण भी होगा.
पहले कभी 100 वर्षों में एक बार होने वाली चरम समुद्री जलस्तर की घटना, इस सदी के अन्त तक हर वर्ष घटित हो सकती है.
रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक तापमान में और बढोत्तरी होने की स्थिति में, बर्फ़ से सदैव जमी रहने वाली ज़मीन के पिघलने की गति तेज़ होगी, ग्लेशियर व बर्फ़ की चादर गलने लगेगी और गर्मियों में आर्कटिक समुद्री बर्फ़ का नुक़सान होगा.
UNICEF/Sokhin
किरीबाती के अबेराओ गाँव में बाढ़ के दौरान पानी में तैरता युवक.
समुद्र में, तापमान में वृद्धि होने, समुद्री ताप लहरों की आवृत्ति बढ़ने, समुद्री अम्लीकरण बढ़ने जैसे बदलावों, और ऑक्सीजन का स्तर घटने से, महासागरों के पारिस्थितिकी तंत्रों व उन पर निर्भर समुदायों पर असर होगा.
विशेषज्ञों ने सचेत किया है कि जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभाव, शहरों पर अधिक हो सकते हैं, जिनमें गर्म मौसम, बाढ़ और तटीय शहरों पर समुद्री जलस्तर के बढ़ने से होने वाला नुक़सान शामिल है.
जलवायु परिवर्तन को सीमित रखना
आईपीसीसी कार्यकारी समूह के सहप्रमुख पानमाओ झाई ने बताया कि जलवायु को स्थिर बनाए रखने के लिये ग्रीनहाउस गैसों में मज़बूत, त्वरित और टिकाऊ ढंग से कटौती की जानी होगी.
साथ ही नैट शून्य कार्बन उत्सर्जन तक पहुँचना होगा.
ग्रीनहाउस गैसों, और मीथेन सहित वायु प्रदूषकों की मात्रा सीमित करके, उनसे जलवायु व स्वास्थ्य पर होने वाले असर को सीमित किया जा सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ मानव-जनित वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को सीमित रखने के लिये यह ज़रूरी है कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों में कमी लाते हुए, कम से कम नैट शून्य CO2 उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुँचा जाए, और साथ ही अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी लाई जाए.
AR6 Climate Change 2021: The Physical Science Basis, शीर्षक वाली यह रिपोर्ट, जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी पैनल ने तैयार की है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने यह पैनल, वर्ष 1988 में, जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित विज्ञान की समीक्षा, निहित जोखिमों और अनुकूलन व कार्बन उत्सर्जन में कटौती की रणनितियाँ पेश करने के लिये गठित किया था.
श्रेय- संयुक्त राष्ट्र समाचार