भूराजनीतिक तनाव और चुनौती: चीन से भागने को तैयार अमेरिका की 40 फीसदी कंपनियां, दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत में कर सकती है निवेश
- अमेरिका -चीन में बढ़ा व्यपारिक तनाव
- चीन की आर्थिक ग्रोथ सबसे बड़ी चुनौती
- चीन ने अमेरिका से सभी ड्यूटीज हटाने की अपील करते हुए धमकी दी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चीन में अमेरिकी कंपनियों के कारोबार में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। अमेरिकी विदेशी निवेश चीन में 2023 में 14 फीसदी गिरकर 163 अरब डॉलर रह गया। एक सर्वे रिपोर्ट में दावा किया है कि चीन में आगामी पांच साल के आउटलुक में गिरावट महसूस की है। सर्वे अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स शंघाई की ओर से किया गया है। प्रॉफिट में कमी की वजह घरेलू मांग, महंगाई और भूराजनीतिक चिंताएं शामिल हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले दोनों देशों के रिश्तों में दरार और बढ़ गई है।
सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 1999 के बाद ये अबतक का सबसे कमजोर आउटलुक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में चीन में मौजूद अमेरिकी कंपनियों में से केवल 66 फीसदी को ही लाभ हुआ है। शंघाई के अमचैम के अनुसार ये ट्रेंड व्यापारिक नीतियों को प्रभावित कर रही है।
सर्वे में बताया गया है कि अब 40 फीसदी अमेरिकी कंपनियां निवेश को चीन से दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत की तरफ शिफ्ट करने पर विचार कर सकती हैं। अमचैम की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल की तरह इस साल भी 40 फीसदी कंपनियां चीन के बजाय दूसरे देशों में निवेश करने की प्लानिंग कर रही हैं। यूरोपीय चैंबर ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट में भी यही बात सामने आई है कि चीन में व्यापार करने की चुनौतियां प्रॉफिट पर ज्यादा भारी पड़ रही हैं। राजनीतिक दबाव, आर्थिक नीति और घरेलू प्रतिस्पर्धा के चलते अमेरिकी कंपनियां चीन में कारोबार करने में अपने भरोसे को कमजोर महसूस कर रही है। दोनों देशों के बीच की इस प्रतिस्पर्धा का सबसे बड़ा फायदा भारत को मिल सकता है।
निजी न्यूज चैनल आज तक ने सर्वे के हवाले से लिखा है कि सर्वे में शामिल कंपनियों में से 47 फीसदी अमेरिकी कंपनियां ही अब चीन में अगले 5 साल के लिए कारोबार करने को लेकर भरोसमंद हैं। ये पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी प्वाइंट्स की गिरावट है। भूराजनीतिक तनाव अमेरिकी कंपनियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।
सर्वे में 66 फीसदी कंपनियों ने दोनों देशों के बीच के रिश्तों को सबसे बड़ी चुनौती बताया है। 70 फीसदी ने चीन की आर्थिक ग्रोथ को सबसे बड़ी चुनौती माना है। वहीं 35 फीसदी कंपनियों ने चीन के नियामक माहौल को पारदर्शी बताया है। जबकि 60 फीसदी ने स्थानीय कंपनियों को ज्यादा महत्व देने की बात को स्वीकार किया है।