Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि के छठवें दिन करें मां कात्यायनी की पूजा, हर मनोकामना होगी पूर्ण
- यजुर्वेद के आरण्यक में माता कात्यायनी का उल्लेख है
- स्कंद पुराण के मुताबिक माता कात्यायनी ईश्वर के क्रोध से उत्पन्न हुई हैं
- माता कात्यायनी का सच्चे मन से स्मरण करने से रोग और शोक का नाश होता है
डिजिटल डेस्क, भोपाल। नवरात्रि का छठवां दिन 14 अप्रैल अक्टूबर 2024 दिन शनिवार को है। ये दिन माता कात्यायनी को समर्पित होता है। माता कात्यायनी नवदुर्गा देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवां रूप है। यजुर्वेद के आरण्यक में इनका उल्लेख प्रथम दिया गया है। स्कंद पुराण में भी यह उल्लेख है कि ये ईश्वर के क्रोध से उत्पन्न हुई हैं। परंपरागत रूप से देवी दुर्गा की तरह ही माता कात्यायनी लाल रंग से जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि के पर्व में षष्ठी के दिन उनकी पूजा-साधना की जाती है।
इस दिन साधक का मन "आज्ञा" चक्र में स्थित होता है। ध्यान योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का बहुत ही उच्च स्थान है। इस आज्ञा चक्र में स्थित मन वाला साधक माता कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे साधक को सहज भाव से माता के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन !
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी !
माता कात्यायनी की कथा
सतयुग में एक कत नामक महर्षि थे। उनका एक पुत्र ऋषि कात्य हुआ। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने अनेक वर्षों तक मां भगवती की कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी माता जी स्वयं उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माता भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। जब कुछ समय पश्चात दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के वध के लिए महादेवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की जिस कारण से वह देवी माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
एक ऐसी भी कथा मिलती है कि महर्षि कात्यायन के घर मां भगवती पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी तिथि को असुर राज महिषासुर का वध किया था।
माता कात्यायनी अमोघ फलदायिनी देवी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए सभी ब्रज की गोपियों ने माता कात्यायनी की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। माता कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और प्रकाशमान है। माता की चार भुजाएं हैं। माताजी के दाहिने ओर का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुसज्जित है। माता जी का वाहन सिंह है।
माता कात्यायनी की साधना और उपासना द्वारा साधक को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव युक्त हो जाता है। नवरात्रि का छठा दिन माता कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनकी पूजा-साधना से अद्भुत शक्ति का संचार होता है और मनुष्य शत्रुओं को संहार करने में सक्षम हो जाता हैं।
माता कात्यायनी का ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक साधक के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति साधना पाने के लिए इस मंत्र को कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।
मन्त्र
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मन्त्र का अर्थ :- हे मां! सर्वत्र विराजमान और शक्ति- स्वरूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं। इसके अतिरिक्त जो भी कन्याओ के विवाह में विलम्ब हो रहा हो, उन्हें इस दिन माता कात्यायनी की साधना पूजा या जप अवश्य करना चाहिए। जिससे उन्हें अपने मनवान्छित वर की प्राप्ति हो और जीवन सुखी बने।
विवाह के लिये माता कात्यायनी मन्त्र
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि !
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम: !!
माता कात्यायनी को जो भी साधक अपने सच्चे मन से स्मरण करता है, उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि का नाश हो जाता है। जन्म-जन्मांतर के पापों का हनन करने के लिए माता की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।