उत्पन्ना एकादशी 2023: इस दिन श्रीहिर को लगाएं फलाहार का भोग, जानें पूजा विधि और व्रत कथा
इस व्रत से जीवन में व्याप्त दुख और संकट भी दूर होते हैं
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में एकादशी तिथि का एक अलग स्थान है। इन दिन को लेकर लोगों की मान्यता और महत्व भी काफी है। वैसे तो एकादशी सालभर में 24 आती हैं, लेकिन अलग अलग तिथि के अनुसार, अलग अलग नाम से जानी जाती है। फिलहाल, मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी आने वाली है। इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह एकादशी 08 दिसंबर, शुक्रवार को पड़ रही है। बता दें कि, इस व्रत में केवल फलाहार का ही भोग लगाया जाता है।
माना जाता है कि, यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। अतः श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही व्रत-उपवास भी रखा जाता है। एकादशी तिथि पर तुलसी जी की पूजा करने से सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है। इसके अलावा, जीवन में व्याप्त दुख और संकट भी दूर हो जाते हैं। आइए जानते हैं पूजा विधि और मुहूर्त...
तिथि और मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ: 8 दिसंबर 2023 सुबह 5 बजकर 6 मिनट से
एकादशी तिथि समापन: 9 दिसंबर 2023 सुबह 6 बजकर 31 मिनट तक
पारण का समय: 9 दिसंबर 2023 दोपहर 1:16 बजे से 3:20 मिनट पर
पूजा विधि
सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
घर में मंदिर में सफाई करें और फिर देवी एकादशी सहित भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करें।
भगवान का पुष्प, धूप, दीप, चन्दन,अक्षत, फल, तुलसी आदि से पूजा करें।
पूजा के दौरान ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करें।
शाम के समय देवालय में दीपदान करें।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
पद्मपुराण में धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से पुण्यमयी एकादशी तिथि की उत्पत्ति के विषय पर प्रश्न किए जाने पर बताया कि सत्ययुग में मुर नामक भयंकर दानव ने देवराज इन्द्र को पराजित करके जब स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। तब समस्त देवी-देवता महादेव जी की शरण में पहुंचे। महादेव जी देवगणों को साथ लेकर क्षीरसागर गए। जहां शेषनाग आसन पर योग-निद्रालीन भगवान विष्णु को देखकर देवराज इन्द्र देव ने उनकी स्तुति की। देवताओं के अनुरोध पर श्रीहरि विष्णु ने उस अत्याचारी दैत्य पर आक्रमण कर दिया। सैकड़ों असुरों का संहार कर नारायण बदरिकाश्रम चले गए।
वहां वे बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा के भीतर निद्रा में लीन हो गए। दानव मुर ने भगवान विष्णु को परहास्त करने के उद्देश्य से जैसे ही उस गुफा में प्रवेश किया, वैसे ही श्रीहरि के शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार मात्र से दानव मुर को भस्म कर दिया। श्री नारायण ने जगने पर पूछा तो कन्या ने उन्हें सूचित किया कि आतातायी दैत्य का वध उसी ने किया है। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी नामक उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया। श्रीहरि के द्वारा अभीष्ट वरदान पाकर परम पुण्यप्रदा एकादशी बहुत प्रसन्न हुई।
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