तुलसीदास जयंती 2023: कठिन परिस्थितियों से घिरा था तुलसीदास जी का जीवन, ऐसे हुई थी रामचरितमानस, हनुमान चालीसा की रचना

  • तुलसीदास ने रामभक्ति धारा को प्रवाहित किया
  • तुलसीदास के बचपन का नाम रोमबोला था

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-23 08:24 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह जयंती 23 अगस्त यानि कि आज मनाई जा रही है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपना पूरा जीवन श्रीराम की भक्ति और साधना में व्यतीत किया। उन्होंने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया बल्कि सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास भी किया।

तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। बता दें कि, गोस्वामी तुलसीदास ने हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस, हनुमान चालीसा सहित कवितावली, दोहावली, हनुमान बाहुक, पार्वती मंगल, रामलला नहछू आदि कई रचनाएं भी की हैं। उनकी इस जयंती पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी खास बातें...

कुछ ऐसा रहा जीवन

तुलसीदास का जन्म संवत 1956 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्तमूल नक्षत्र में हुआ था। उनके पिता का नाम आतमा रामदुबे व माता का नाम हुलसी था। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास जन्म के समय रोए नहीं थे, बल्कि उनके मुंह से राम शब्द निकला था। लेकिन उनके माता-पिता इस बात से परेशान थे कि उनके पुत्र के मुख में बचपन से ही 32 दांत थे। इसको लेकर माता हुलसी को अनिष्ट की शंका भी हुई, जिससे वे उन्हें दासी के साथ ससुराल भेज आईं।

इसके कुछ समय माता की मृत्यु और पिता द्वारा अमंगलकारी समझकर त्याग दिए जाने के बाद पांच वर्ष की अवस्था तक तुलसी दासी चुनियां पर निर्भर रहे। हालांकि कुछ समय बाद वह भी चल बसीं और तुलसी जी अनाथ हो गए थे। इसके बाद संतश्री नरहयान्नद जी ने इनका पालन-पोषण किया।

...और रामबोला से बन गए तुलसीदास

ऐसा कहा जाता है कि, उनके गुरू ने तुलीसीदास जी का नाम रामबोला रखा और अयोध्या आकर उनकी शिक्षा-दीक्षा कराई। कहा जाता है कि बालक रामबोला बचपन से ही बुद्धिमान थे। गुरुकुल में उनको हर पाठ बड़ी आसानी से याद हो जाता था। यहां से बालक रामबोला काशी चले गए। उन्होंने काशी में 15 वर्ष तक वेद-वेदांग का अध्ययन किया। तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी शहर में बिताया। वाराणसी में गंगा नदी पर प्रसिद्ध तुलसी घाट का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।

इस घटना के बाद सिर्फ राम के हो गए तुलसीदास

पुराणों के अनुसार, तुलसीदास विवाह के बाद पत्नी के प्रेम में डूब गए। एक बार जब वे अपनी पत्नी के घर में प्रवेश के लिए दीवार फांदने का प्रयास कर रहे थे, उस समय उन्हें खिड़की से लटकी हुई रस्सी दिखाई दी और उसे ही पकड़कर वे लटक गए और दीवार फांद गए। लेकि जिसे तुलसीदासजी ने रस्सी समझ लिया था वह एक सांप था जिसकी जानकारी उन्हें बाद में हुई। उनके ऐसा करने पर पत्नी काफी क्रोधित हुईंं।

उन्होंने गुस्से में कहा कि, मेरी हाड़-मास की देह से इतना प्रेम करने की बजाय आपने इतना प्रेम राम-नाम से किया होता तो जीवन सुधर जाता। पत्नी ने क्रोध में जो बात कही, उसने रामबोला को तुलसीदास बना दिया। बताते हैं कि संवत 1628 में शिव जी उनके स्वप्न में आए और उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो। तुलसी उनकी आज्ञा मानकर अयोध्या आ गए। संवत 1631 में तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना शुरू की और दो वर्ष सात महीने 26 दिन में ग्रंथ की रचना पूरी हो गई। इस रचना के साथ अमर हो गए।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग- अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

Tags:    

Similar News