Rohini Vrat 2024: आज है जैन समुदाय का ‘रोहिणी व्रत’, जानिए इसकी पूजा-विधि और महत्व

  • वर्ष में कम से कम 6 से 7 बार आता है व्रत
  • जैन समुदाय के लोग श्रद्धापूर्वक व्रत रखते हैं
  • महिलाएं सुहाग की दीर्धायु के लिए व्रत रखती हैं

Bhaskar Hindi
Update: 2024-08-27 06:14 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जैन समुदाय के लिए रोहिणी व्रत (Rohini Vrat) का विशेष महत्व है। जैन संप्रदाय की मान्यताओं के अनुसार, जब रोहिणी नक्षत्र का संयोग बनता है तब इस व्रत को रखा जाता है। यही वजह है कि इस व्रत को रोहिणी व्रत कहा जाता है। यह व्रत वर्ष में कम से कम 6 से 7 बार आता है। इस दिन लोग श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर अपने आराध्य देव की पूजा करते हैं।

5 वर्ष 5 माह की अवधि

अन्य व्रतों की तुलना में इसे एक निश्चित समय तक ही करना संभव है। व्रती स्वयं इसे करने के वक्त का निर्णय लेता है। व्रत अवधि पूरी होने पर इस व्रत का उद्यापन कर दिया जाता है। हालांकि इसके लिए 5 वर्ष 5 माह की अवधि श्रेष्ठ मानी गयी है। इसके पूर्ण होने पर दान करना फलकारी माना गया है। इसके पूजन में भगवान वासुपूज्य की आराधना की जाती हैं।

पूजन विधि

- इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पूजा करती हैं।

- इसके बाद पूरे घर और पूजा स्थल की साफ-सफाई की जाती है।

- फिर सूर्यदेव को जल अर्पित किया जाता है।

- पूजा के लिए वासुपूज्‍य भगवान की पांचरत्‍नए ताम्र या स्‍वर्ण प्रतिमा की स्‍थापना की जाती है।

- उनकी आराधना करके दो वस्‍त्रों, फूल, फल और नैवेध्य का भोग लगाएं।

- रोहिणी व्रत का पालन उदया तिथि में रोहिणी नक्षत्र के दिन से शुरू होकर अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक चलता है।

- जो लोग रोहिणी व्रत रखते हैं वे सूर्यास्त से पहले फलाहार करते हैं

- इस दिन गरीबों को दान देने का अत्यधिक महत्व है।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग- अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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