पापों से मुक्ति दिलाता है वरुथिनी एकादशी व्रत, जानें पूजा विधि

पापों से मुक्ति दिलाता है वरुथिनी एकादशी व्रत, जानें पूजा विधि

Bhaskar Hindi
Update: 2019-04-23 09:57 GMT
पापों से मुक्ति दिलाता है वरुथिनी एकादशी व्रत, जानें पूजा विधि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वरुथिनी एकादशी वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, जो आज मंगलवार को मनाई जा रही है। इस व्रत को करने से जातक को उसके सभी पापों कर्मों से मुक्ति मिलती है। इस दिन जुआ खेलना, नींद, पान, दातुन, परनिन्दा, क्षुद्रता, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा झूठ को त्यागने का विशेष माहात्म्य होता है। यह कुकर्म त्यागने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। इस एकादशी के व्रत को करने वाले को हविष्यान भोजन करना चाहिए तथा जातक के परिवार के जनों को रात्रि में ईश्वर भजनों से जागरण करना चाहिए।

भविष्योत्तर पुराण में भी कहा गया है :-
कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा। शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।।

अर्थात्:-
कांस्य पात्र, मांस तथा मसूर आदि का इस एकादशी पर ग्रहण नहीं करें। इस एकादशी को उपवास करें और इस दिन जुआ और घोरनिद्रा आदि का त्याग करें।

इस दिन शुभफल की प्राप्ति होती है :-
शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से दुखिया को सुख प्राप्त होता है तथा राजा के लिए स्वर्ग का द्वार खुलता है। सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख पाता है और अंत समय में बैकुंठ को जाता है। इस व्रत से व्यक्ति को हाथी के दान और भूमि के दान करने से भी अधिक शुभ फल की प्राप्ति होती है।

वरुथिनी एकादशी व्रत की महिमा :-
वरुथिनी एकादशी व्रत की महिमा का पता इसी बात से चलता है कि सभी दान में सबसे उत्तम तिलों का दान माना गया है और तिल दान से भी श्रेष्ठ स्वर्ण दान कहा गया है। स्वर्ण दान से भी अधिक शुभ फल इस एकादशी का व्रत को करने से मिलता है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा :-
एकबार प्राचीन काल में नर्मदा तट पर मांधाता नामक राजा राज करता था। वह राजा अत्यन्त ही दानशील और तपस्वी राजा था। एक दिन तपस्या करते समय वह जंगली भालू राजा मांधाता का पैर चबाने लगा। कुछ देर बाद भालू राजा को घसीटकर वन में ले गया। राजा घबराकर विष्णु भगवान से प्रार्थना करने लगा। भक्त की पुकार सुनकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से भालू का वधकर अपने भक्त की रक्षा की। 
 
भगवान विष्णु ने राजा मांधाता से कहा− हे वत्स् मथुरा में मेरी वाराह मूर्ति की पूजा वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर करो। उसके प्रभाव से तुम पुनः अपने पैरों को प्राप्त कर सकोगे। यह तुम्हारा पूर्व जन्म का अपराध था जो भालू के द्वारा मिला अब इस दोष को दूर करने के लिए वरुथिनी एकादशी का व्रत पूजा करो।

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