जयंती: आदिकवि ने की थी रामायण की रचना, इस काम बाद मिली वाल्मीकि की उपाधि
जयंती: आदिकवि ने की थी रामायण की रचना, इस काम बाद मिली वाल्मीकि की उपाधि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आदिकवि कहे जाने वाले रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की जयंती शरद पूर्णिमा को मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार, आश्विन माह में शरद पूर्णिमा के दिन महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ। महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषि हैं। उन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि को कई भाषाओं का ज्ञान था और वो एक कवि के रूप में भी जाने जाते हैं।
इस साल वाल्मीकि जयंती 31 अक्टूबर को मनाई जा रही है। बता दें कि वाल्मीकि महर्षि को रामायण के रचियता के तौर पर भी जाना जाता है। विश्व का पहला महाकाव्य रामायण लिखकर उन्होंने आदि कवि होने का गौरव पाया। रामायण प्रथम महाकाव्य है जो भगवान श्रीराम के जीवन की प्रमुख घटनाओं को काव्य के रूप में सुनाता है।
शरद पूर्णिमा पर इस विधि से करें पूजा, रखें इन बातों का ख्याल
इसलिए कहलाए वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण लिखी थी। इसको प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। सामान्य तौर पर महर्षि वाल्मिकि के जन्म को लेकर अलग-अलग राय हैं। लेकिन बताया जाता है कि इनका जन्म महर्षि कश्यप और देवी अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षिणी के घर में हुआ था
किवदंती के अनुसार महर्षि वाल्मीकि ने एक स्थान पर बैठकर घोर तपस्या की। तब उनके शरीर पर मिट्टी की बांबी बन गई। लेकिन वो ध्यान में इतने मग्न थे कि उनका बांबी पर कोई ध्यान नहीं गया। बाद में ध्यान पूरी हुई तो उन्होंने बांबी साफ की। बांबी के घर को वाल्मीकि कहा जाता है। बताया जाता है कि इस घटना के बाद उन्हें वाल्मीकि नाम से बुलाया जाने लगा
मंगलवार को करें ये 5 उपाय, परेशानी होंगी दूर जीवन में आएगी खुशहाली
रत्नाकार था नाम
महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि, रत्नाकर नाम से जाने जाते थे। नारद मुनि ने उन्हें राम नाम जपने की सलाह दी, जब श्रीराम ने सीता का त्याग कर दिया तब महर्षि वाल्मीकि ने ही इनको आश्रय दिया। उनके आश्रम में ही माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया। जब श्रीराम से अश्वमेध यज्ञ किया तो लव कुश ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में यज्ञ के घोड़े को बांध लिया। सीता जी ने अपने वनवास का अंतिम काल महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही व्यतीत किया।