षटतिला एकादशी: इस पूजा से मिलेगी श्री हरि की कृपा, जानें शुभ मुहूर्त
षटतिला एकादशी: इस पूजा से मिलेगी श्री हरि की कृपा, जानें शुभ मुहूर्त
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। माघ महीने के हर दिन को पवित्र माना जाता है, लेकिन एकादशियों का अपना विशेष महत्व है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी षटतिला एकादशी कहलाती है, जो कि इस बार 20 जनवरी दिन सोमवार को है। इस दिन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की आराधना विधिपूर्वक की जाती है। पूजा के समय काले तिल के प्रयोग का विशेष महत्व होता है। वहीं इस दिन काली गाय की पूजा करना भी शुभ माना गया है।
हालांकि सालभर में आने वाली एकादशी पर पूजा और व्रत से पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है। लेकिन इस एकादशी का महत्व अलग है, माघ माह की एकादशी का नाम षटतिला क्यों पड़ा और क्या है इसका व्रत का मुहूर्त, आइए जानते हैं...
षटतिला एकादशी व्रत मुहूर्त
तिथि प्रारंभ: 20 जनवरी दिन सोमवार तड़के 02:51 बजे
तिथि का समापन: 21 जनवरी दिन मंगलवार तड़के 02:05 बजे
व्रत का पारण: 21 जनवरी दिन मंगलवार सुबह 08:00 बजे से सुबह 09:21 बजे तक
पूजा विधि
किसी भी व्रत उपवास या दान-तर्पण आदि को करने से पहले मन का शुद्ध होना आवश्यक होता है। इसके साथ-साथ षटतिला एकादशी का व्रत अन्य एकादशी के उपवास से कुछ अलग प्रकार से रखा जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बनाये जाते हैं। फिर दशमी के दिन एक समय भोजन किया जाता है और प्रभु का स्मरण किया जाता है।
इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान श्री कृष्ण के नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधिवत पूजा कर अर्घ्य दी जाती है। रात्रि में भगवान का भजन-कीर्तन करें और 108 बार “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र से उपलों में हवन करें। स्नान, दान से लेकर आहार तक में तिलों का उपयोग करें।
इसे इसलिए कहा जाता है षटतिला एकादशी
माघ मास में शरद ऋतु अपने चरम पर होती है और मास के अंत के साथ ही सर्दियों के जाने की सुगबुगाहट भी होने लगती है। इस ऋतू में तिलों का व्यवहार बहुत बढ़ जाता है क्योंकि शीतऋतु में तिल का उपयोग करना बहुत ही लाभदायक होता है। इसलिये स्नान, दान, तर्पण, आहार आदि में तिलों का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि तिलों का छह प्रकार से उपयोग इस दिन किया जाता है जिसमें तिल से स्नान, तिल का उबटन, तिलोदक, तिल का हवन, तिल से बने व्यंजनों का भोजन और तिल का ही दान किया जाता है। तिल के छह प्रकार से इस्तेमाल करने के कारण ही इसे षटतिला कहा जाता है।