मन चंगा तो कठौती में गंगा, जानें इस उक्ति को कहने वाले संत शिरोमणि रविदास जी के बारे में
रविदास जयंती 2023 मन चंगा तो कठौती में गंगा, जानें इस उक्ति को कहने वाले संत शिरोमणि रविदास जी के बारे में
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मन चंगा तो कठौती में गंगा, यह वाक्य तो आपने सुना ही होगा। इस वाक्य को संत शिरोमणि रविदास जी के द्वारा कहा गया है। संत रविदास को रैदास और गुरू रविदास के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें सिर्फ संत गुरू नहीं बल्कि एक कवि के रूप में भी जाना जाता है। इनके बारे में कथा प्रचलित है कि खुद गंगा मां इनकी सत्यता और निष्ठा को साबित करने के लिए एक कठौती में प्रकट हो गईं थीं। इस वर्ष गुरू रविदास जयंती 05 फरवरी, रविवार को मनाई जा रही है।
हिंदू धर्म के अनुसार कोई भी जीव जात-पांत से बड़ा या छोटा नहीं होता। अपितु मन, वचन और कर्म से बड़े या छोटे होते हैं। संत शिरोमणि रविदास जात से तो मोची थे, लेकिन मन, कर्म और वचन से संत थे। विद्वान इन्हें मीराबाई का गुरू भी मानते हैं। आइए जानते हैं संत रविवदास के बारे में...
बेहद गरीब परिवार से थे रविदास
गुरू संत रविदास का जन्म 1388 काशी में चर्मकार परिवार में हुआ था। वे स्वयं भी यही काम किया करते थे, किंतु वे बचपन से ही अद्भुत विचारों से परिपूर्ण थे। ऐसा बताया जाता है कि संत रविदास बेहद गरीब परिवार से थे, किंतु उनके हृदय में ईश्वर के प्रति अनन्य आस्था थी। बताया जाता है कि गुरू रैदास ने साधु संतों की संगति से ज्ञान प्राप्त किया था। जिसे उन्होंने बाद में जन-जन तक फैलाया।
उन्होंने कभी भी अपने पैतृक कार्य से मुंह नहीं मोड़ा। अपने परिवार का पोषण करने के लिए वे जूते बनाने का काम करते थे। एक बार एक ब्राम्हण गंगा मां के दर्शनों के लिए जा रहा था। उन्हें इसका पता चला, गरीबी के कारण वे जा नही सकते थे, किंतु उन्होंने अपनी मेहनत से कमाया हुआ एक सिक्का माता के पास भेजा और कहा, ये मेरी ओर से मां गंगा को भेंट कर देना, जिसे लेने वे साक्षात प्रकट हो गई थीं।
वचन रखने के लिए किया ये काम
संत रविदास जी से जब एक बार किसी ने गंगा स्नान करने को कहा तो उन्होंने कहा- कि नहीं, मुझे आज ही किसी को जूते बनाकर देना है। यदि नहीं दे पाया तो वचन भंग हो जाएगा। रविदास के इस तरह के उच्च आदर्श और उनकी वाणी, भक्ति एवं अलौकिक शक्तियों से प्रभावित होकर अनेक राजा-रानियों, साधुओं तथा विद्वज्जनों ने उनको सम्मान दिया है। वे मीरा बाई के गुरु भी थे।
उनकी इस साधुता को देखकर संत कबीर ने कहा था- कि साधु में रविदास संत हैं, सुपात्र ऋषि सो मानियां। रविदास राम और कृष्ण भक्त परंपरा के कवि और संत माने जाते हैं। उनके प्रसिद्ध दोहे आज भी समाज में प्रचलित हैं जिन पर कई धुनों में भजन भी बनाए गए हैं। जैसे, प्रभुजी तुम चंदन हम पानी- इस प्रसिद्ध भजन को सभी जानते हैं।
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