आज है मत्स्य जयन्ती, जानें क्यों लिया था भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार
आज है मत्स्य जयन्ती, जानें क्यों लिया था भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मत्स्य जयन्ती चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है, जो इस बार 8 अप्रैल 2019 को पड़ रही है।इस दिन मत्स्य अवतार में विष्णुजी की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान नारायण ने मध्याह्नोत्तर बेला में पुष्पभद्रा तट पर मत्स्य रूप धारण कर विश्व कल्याण किया था। इस पुण्य तिथि पर प्रातःकाल में नित्यकर्मों को पूर्ण कर भगवान मत्स्य के व्रत का संकल्प लेकर पुरुषसूक्त या वेदोक्त मंत्रों से मत्स्य रूप में भगवान विष्णुजी का पूजन कर उनके प्रकट कथा का श्रवण (सुनकर) फिर विष्णु मंत्रों का जप करता है, तब निश्चित ही उस जातक का जीवन आलोकित व संपूर्ण ज्ञान-विज्ञान से संयुक्त हो जाता है।
मत्स्य अवतार की पौराणिक कथा :-
कल्पांत के पूर्व एक बार ब्रह्मा जी के पास से वेदों को एक बहुत बड़े दैत्य ने छल से चुरा लिया। तब चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला होता चला गया। तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य का रूप धारण कर उस दैत्य का वध किया और वेदों की रक्षा की।
राजा को मिली ये मछली
कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था। राजा का नाम सत्यव्रत था। सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। उसने स्नान करने के पश्चात् जब तर्पण के लिए अंजलि में जल लिया, तो अंजलि में जल के साथ एक छोटी-सी मछली भी आ गई। जैसे ही सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ना चाहा, मछली बोली, "राजन! जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए।" सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी।
उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडल में डाल लिया। एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडल उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। इसी तरह राजा जिस भी पात्र में उस मछली को रखते वही छोटा हो जाता और मछली का आकार बढ़ता जाता। तब सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर और फिर उसके बाद समुद्र में डाल किया। इसके बाद भी आकार लगातार बढ़ रहा था।
आत्मतत्त्व का ज्ञान
सचमुच, वह भगवान श्रीहरि ही थे। मत्स्य रूपधारी श्रीहरि ने उत्तर दिया, "राजन! एक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जगत् में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है। मैंने हयग्रीव को मारने के लिए ही मत्स्य का रूप धारण किया है। आज से सातवें दिन सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जल के अतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा। आपके पास एक नाव पहुंचेगी, आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्तऋषियों के साथ नाव पर बैठ जाइएगा। मैं उसी समय आपको पुनः दिखाई पड़ूंगा और आपको आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूंगा।
प्रलय के समय दिखाई दिए भगवान
प्रलय के दौरान ऐसा समय आया भी जब सहसा मत्स्यरूपी भगवान विष्णु प्रलय के सागर में दिखाई पड़े। सत्यव्रत और सप्तर्षिगण मतस्य रूपी भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे, "हे प्रभो! आप ही सृष्टि के आदि हैं, आप ही पालक है और आप ही रक्षक ही हैं। दया कर हमें अपनी शरण में लीजिए, हमारी रक्षा कीजिए।" तब सत्यव्रत और सप्तऋषियों की प्रार्थना पर मत्स्यरूपी भगवान विष्णु प्रसन्न हो उठे और उन्होंने अपने वचन के अनुसार सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया और बताया, "सभी प्राणियों में मैं ही निवास करता हूं।
कोई ऊंचा नीचा नहीं
न कोई ऊंचा है, न नीचा। सभी प्राणी एक समान हैं। जगत नश्वर है। नश्वर जगत में मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ भी नहीं है। जो प्राणी मुझे सबमें देखता है और ऐसा करते हुए अपना जीवन व्यतीत करता है, वह अंत में मुझमें ही मिल जाता है।" मत्स्य रूपी भगवान विष्णु से इस प्रकार का आत्मज्ञान प्राप्तकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीवंत रहते हुए ही जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो गए। प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने उस दैत्य को मारकर, उससे वेद छीन लिए। तब भगवान विष्णुजी ने ब्रह्मा जी को पुनः वेद दे दिए।