मंगला गौरी व्रत: अविवाहितों और सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्यशाली है ये व्रत

मंगला गौरी व्रत: अविवाहितों और सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्यशाली है ये व्रत

Bhaskar Hindi
Update: 2019-08-05 08:28 GMT
मंगला गौरी व्रत: अविवाहितों और सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्यशाली है ये व्रत

डिजिटल डेस्क। श्रावण मास अपने आप में खास है, यूं तो शिवभक्ति के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले इस महीने में सोमवार को व्रत और पूजन की जाती है। इसके अलावा भी इस माह कई सारे त्यौहार और व्रत आते हैं, जो लाभ प्रदान करने वाले होते हैं। इन्हीं में से एक है मंगला गौरी व्रत, जो कि सावन सोमवार के अगले दिन यानी कि मंगलवार को मनाया जाता है। कितना खास है ये व्रत और क्या है पूजा विधि आइए जानते हैं...

महत्व
शास्त्रों के अनुसार यह व्रत अविवाहितों के अलावा सुहागिन महिलाओं के लिए भी सौभाग्यशाली माना जाता है। इससे सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मंगला गौरी व्रत करने से विवाह में आ रही वाधा भी दूर हो जाती है। इसलिए इस दिन माता मंगला गौरी यानी पार्वती की पूजा करके मंगला गौरी की कथा सुनना चाहिए। ज्योतिषों के अनुसार सावन में मंगलवार को आने वाले सभी व्रत-उपवास मनुष्य के सुख-सौभाग्य में वृद्धि करते हैं। अपने पति व संतान की लंबी उम्र एवं सुखी जीवन की कामना के लिए महिलाएं खासतौर पर इस व्रत को करती हैं। सौभाग्य से जुड़े होने की वजह से नवविवाहित दुल्हनें भी इस व्रत को करती हैं।

ध्यान रखें ये बात
जिन युवतियों और महिलाओं की कुंडली में वैवाहिक जीवन में कमी होती है या शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो तो उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदाई है। अत: ऐसी महिलाओं को सोलह सोमवार के साथ-साथ मंगला गौरी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। ध्यान रखें एक बार यह व्रत प्रारंभ करने के बाद इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक किया जाता है। इसके बाद इस व्रत का विधि-विधान से उद्यापन कर देना चाहिए।

व्रत विधि

- इस व्रत के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें।

- नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा कोरे (नवीन) वस्त्र धारण कर व्रत करना चाहिए।

- इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है।

- मां मंगला गौरी (पार्वतीजी) का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें। फिर "मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये’ इस मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।

इस मंत्र का अर्थ
ऐसा माना जाता है कि, मैं अपने पति, पुत्र-पौत्रों, उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं। इसके बाद मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। फिर उस प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं, दीपक ऐसा हो, जिसमें सोलह बत्तियां लगाई जा सकें।

पूजा की विधि
मां की पूजा करने के बाद उनको (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चुड़ि‍यां और मिठाई चढ़ाई जाती है। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि होना चाहिए। पूजा के बाद मंगला गौरी की कथा सुननी चाहिए।

कथा
पुराने समय की बात है। एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी खूबसूरत थी और उनके पास बहुत सारी धन-दौलत थी। लेकिन उनको कोई संतान नहीं थी, इस वजह से पति-पत्नी दोनों ही हमेशा दुखी रहते थे। फिर ईश्वर की कृपा से उनको पुत्र प्राप्ति हुई, लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला हुआ था कि सोलह वर्ष की उम्र में सर्प दंश के कारण उसकी मौत हो जाएगी। ईश्वरीय संयोग से उसकी शादी सोलह वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई, जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती। इसी कारण धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की। 

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