महाशिवरात्रि : 101 साल बाद बना अद्भुत संयोग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

महाशिवरात्रि : 101 साल बाद बना अद्भुत संयोग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

Bhaskar Hindi
Update: 2021-03-11 04:06 GMT
महाशिवरात्रि : 101 साल बाद बना अद्भुत संयोग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। जो कि इस वर्ष 11 मार्च यानी कि आज है। यह देवों के देव महादेव की कृपा प्राप्त करने का महापर्व है। वास्तव में महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन की रात का पर्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि की रात आध्यात्मिक शक्तियां जागृत होती हैं। महाशिवरात्रि के दिन शुभ काल के दौरान ही महादेव और पार्वती की पूजा करने से शुभफल प्राप्त होता है।

महाशिवरात्रि परम कल्याणकारी व्रत है जिसके विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल की प्राप्ति होती है। पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है। पूजन करने वाला मोक्ष को प्राप्त करने के योग्य बन जाता है। आइए जानते हैं पूजा का मुहूर्त और विधि...

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मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि 10 मार्च को दोपहर 2.40 मिनट से शुरू हुई, जो कि 11 मार्च को 2.40 बजे त्रयोदशी समाप्त होगी।
शिवालयों में त्रयोदशी का जलाभिषेक 11 मार्च सुबह 4.01 बजे से शुरू होकर पूरे दिन जारी रहेगा। 
वहीं चतुर्दशी का जलाभिषेक इसी दिन अर्थात 11 मार्च को अपराह्न तीन बजे से शुरू होकर शाम तक जारी रहेगा। 
महाशिवरात्रि का निशीथ काल, 11 मार्च, रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा।

विशेष संयोग
ज्योतिषविदों के मुताबिक आज महाशिवरात्रि के दिन 101 साल बाद एक विशेष संयोग बना है। इस दिन शिवयोग, सिद्धियोग और घनिष्ठा नक्षत्र का संयोग है। आज गुरुवार को त्रयोदशी और चतुर्दशी मिल रही हैं। महाशिवरात्रि पर ऐसा योग 101 साल बाद बना है।

शिव पूजा का महत्व
भगवान शिव की पूजा करते समय बिल्वपत्र, शहद, दूध, दही, शक्कर और गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति की सभी समस्याएं दूर होकर उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं।

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पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पावन रात्रि को भगवान शिव ने संरक्षण और विनाश का सृजन किया था। मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। 

पूजा विधि
शिवपुराण के अनुसार व्रती को प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो, मस्तक पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्ष माला धारण कर शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं नमस्कार करना चाहिए। इसके बाद उसे व्रत का संकल्प करना चाहिए।

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