जानिए रामायण के रचनाकर के जीवन से जुड़ी खास बातें
महर्षि वाल्मीकि जयंती जानिए रामायण के रचनाकर के जीवन से जुड़ी खास बातें
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के महापुरुष महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती हर वर्ष आश्विन मास की शरद पूर्णिमा को मनाइ जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, इस साल यह जयंती 09 अक्टूबर, रविवार को पड़ रही है। हिन्दु धर्म में वाल्मीकि जयंती का बहुत महत्व है क्यों कि वाल्मीकि जी का संपूर्ण जीवन काल कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करता है।
वाल्मीकि जयंती पूरे भारत वर्ष में धूम-धम से मनाइ जाती है इस दिन लोग रामायण का पाठ करते हैं और भंडारा भी आयोजित करवाते हैं। उत्तर भारत में यह दिन बहुत महत्व रखता है। आइए जानते हैं वाल्मीकि जी के जीवन से जुड़ी कुछ बातों के बारे में...
वाल्मीकि जी का वास्तविक नाम
आपको जानकर हैरानी होगी कि वाल्मीकि जी का वास्तविक नाम रत्नाकर था। महर्षि से पहले डाकु थे, क्यों कि उनका पालन पोषण उनके असली माता-पिता ने नहीं किया था। बचपन में उनको एक भील ने चुरा लिया था। भीलों का कार्य लोगों से लूट.पाट करके परिवार का भरण-पोषण करना होता था। भीलों के साथ होने के कारण वो भी एक डाकू बन रत्नाकर डाकू के नाम से जाने गऐ।
नारद मुनी जी ने बदली जीवन की दिशा
एक बार नारद मुनि जी उसी जंगल से गुजर रहे थे जहाँ पर डाकू रत्नाकर लूट-पाट किया करते थे। नारद मुनि जी को रत्नाकर ने पकड़ लिया तथा उनसे उनका सामान लूटने लगा, तभी नारद जी ने रत्नाकर से पूछा, तुम इतना घ्रणित अपराध क्यों करते हो? तब रत्नाकर बोला कि मैं अपने परिवार को पालने के लिया ऐसा करता हूँ। नारद जी रत्नाकर से पूछते हैं कि जिस परिवार के लिए तुम ऐसा ध्रणित कार्य करते हो वह इस कार्य में तुम्हारा साथ देगा। रत्नाकर बोला हां देगा वह मेरा परिवार है। नारद जी बोले की जाओ अपने परिवार की मंशा जानकर आओ। रत्नाकर अपने परिवार के पास गया और सबसे पूछने लगा। उसके घ्रणित कार्यों में साथ देने के लिए कोई भी तैयार ना हुआ। दुखी होकर रत्नाकर फिर नारद मुनी के पास आऐ और अपने अपराधों के लिए छमा मांगी और अपने पाप से मुक्ती का रास्ता पूछा तब नारद जी ने उन्हें राम राम के नाम का जप करने को कहा।
कैसे पड़ा वाल्मीकि नाम और कहां से मिली रामायण लिखने की प्रेरणा
ऋषि वाल्मीकि ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए और अपने पापों की क्षमा याचना करने के लिए कठोर तप किया। लेकिन उनसे एक भूल हो गई वे राम नाम जपने की बजाए (मरा, मरा) जप रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम का गलत नाम जपने के कारण इनकी काया बहुत बेकार हो गई व इनके ऊपर दीमकों ने अपनी बांबी (वाल्मिक) बना ली, शायद जो पापों उन्होंने किए थे उसकी ही सजा थी ये। रत्नाकर की कठोर तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें रामायण महाकाव्य लिखने की प्रेरणा व सामर्थ्य प्रदान किया और उनका नाम वाल्मीकि रखा।
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