आज महागौरी की आराधना से असंभव कार्य भी होंगे संभव, ये है शुभ मुहूर्त
आज महागौरी की आराधना से असंभव कार्य भी होंगे संभव, ये है शुभ मुहूर्त
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की उपासना की जाती है। अपने ज्ञात-अज्ञात पापों का नाश करने के लिए दुर्गाष्टमी या चैत्र महाष्टमी पर यह पूजा होती है। इस नवरात्रि में मां महागौरी की पूजन 13 अप्रैल यानी कि आज की जा रही है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है। नवरात्रि में अष्टमी तिथि के दिन मां महागौरी का पूजन विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। सुंदर, अति गौर वर्ण होने के कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है।
महागौरी की आराधना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं, ज्ञात-अज्ञात समस्त पापों का नाश होता है, सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उपासक की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस दिन बहुत अच्छा मुहूर्त भी है आइए जानते हैं इसका आप कैसे लाभ उठा सकते हैं।
दुर्गाष्टमी विशेष :-
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
दुर्गाष्टमी महागौरी की पूजा विधि :-
नवरात्रि के आठवें दिन कन्या पूजन और उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराने का अत्यंत महत्व है। सौभाग्य प्राप्ति और सुहाग की मंगल कामना लेकर मां को चुनरी भेंट करने का भी इस दिन विशेष महत्व है। मां की आराधना के लिए सर्वप्रथम देवी महागौरी का ध्यान करें। इस दिन शनिवार होने के कारण माता शनि के कष्टों से मुक्ति दिलाएंगी। जिस काम में भी हाथ डालोगे या नई शुरुआत करोगे मां के आशीर्वाद से वह काम अवश्य पूरा होगा।
चैत्र महाष्टमी के दिन कन्या पूजन का महत्व बढ़ जाता है। लक्ष्मी समान छोटी-छोटी कन्याएं बुद्धि ,धन और शनि के कष्टों से मुक्ति का वरदान देंगी। हर विवाद में विजयी होने का वरदान मिलेगा। महाष्टमी के व्रत की समाप्ति के साथ घर या बाहर की 3 या 5 या 9 कन्याओं का पूजन होगा। चैत्र नवरात्रि की महाष्टमी पर कन्याएं मां दुर्गा के रूप में बुद्धि, धन विजयी होने का वरदान देती हैं। इसलिए नवरात्रि में कन्याओं का पूजन या सम्मान किए बिना माता वरदान नहीं देती हैं।
इस प्रकार करें कन्याओं का पूजन...
सर्वप्रथम तो कन्याओं के चरण धोएं। कन्याओं को चने की सब्जी और पूड़ी खिलाना है। घी से आटे का चार मुखी दीपक बना लें। लाल कलावे की बत्ती बनाएं और फिर दीपक जलाएं। गुग्गल की धूप जला लें। पूजा की थाली में लाल सिंदूर, दही, दूर्वा, घास, चावल, रोली मौली रख लें। इस दिन सूजी(राव) का हलवा पांच मेवा, घी गुड आदि डालकर बना लें। काले चने भिगोकर उबालकर तेल से भूनकर रखें। आटे की पूड़ियां लें। माता स्वरुप कन्या को भेंट देने हेतु नया नीला वस्त्र या नीला रूमाल रख लें। कुछ रूपये की दक्षिणा भी रख लें।
अब कन्यायों के पुन: चरण धोकर आसान पर बिठाएं।
दीपक-ज्योति और धूप जलाएं और कन्या पूजन शुरू करें। जल छिड़ककर पवित्र करें, सिंदूर और अक्षत का तिलक लगाएं। बाईं कलाई में कलावा बांधे, लाल माला पहनाएं। शुद्धिकरण के लिए जल छिड़कें और जोर से बोलें दुर्गा माता के जयकारे लगाएं।
नारियल फोड़कर छोटे-छोटे टुकड़े करें। कन्याओं को हलवा, पूड़ी, चने, फल, नारियल का भोग लगाएं। कन्याओं को जल पिलाएं और पान, वस्त्र दक्षिणा दें। इस बार शनिवार की अष्टमी है। तो सभी कन्याओं को काजल और नीला हेयर बैंड या रिबिन अवश्य भेंट में प्रदान करें। कन्याओं को माता के रूप में प्रणाम करें।
हाथ जोड़कर इन दो मंत्रों का उच्चारण करें :-
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥1॥
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥2॥
इन मंत्रों के उच्चारण के बाद महागौरी देवी के विशेष मंत्रों का जाप करें और मां का ध्यान कर उनसे सुख, सौभाग्य हेतु प्रार्थना करें।
महागौरी के विशेष मंत्र :-
1- या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2- "सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
महागौरी स्तोत्र :-
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्। ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्। डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्। वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
माता महागौरी की कवच :-
ओंकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजं मां, हृदयो। क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो। कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥
माता महागौरी की ध्यान :-
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्। वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥ >
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्। कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥