गणेश चतुर्थी : इस दिन नहीं करना चाहिए चंद्रदर्शन, जानें कारण
गणेश चतुर्थी : इस दिन नहीं करना चाहिए चंद्रदर्शन, जानें कारण
डिजिटल डेस्क। रिद्धि-सिद्धि प्रदाता श्रीगणेशजी का शुभ आगमन यानी कि गणेशोत्सव का शुभारंभ 2 सितंबर को हो रहा है। श्री गणेशजी का जन्म भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ। वहीं, चतुर्थी तिथि गणेशजी को विशेष प्रिय है, बता दें कि हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन गणेशजी का व्रत रखकर, विशेष पूजन किया जाता है तथा रात्रि में चंद्र उदय के बाद अर्घ्य आदि देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।
सीधे अर्थों में समझें तो चतुर्थी तिथि को चंद्रमा का विशेष महत्व होता है। परंतु जिस तिथि को गणेशजी का जन्म हुआ है, उसी तिथि को ही चंद्र दर्शन का निषेध है। पंडित सुदर्शन शर्मा शास्त्री के अनुसार यह बात कुछ लोगों को अजीब लगती है, लेकिन इसके पीछे एक रोचक और पौराणिक कथा है, जिस स्यमन्तक मणि का आख्यान कहते हैं। इस दिन क्यों होता है चंद्रमा निषेध, आइए जानते हैं...
ये है कथा
स्कंध पुराण के अनुसार द्वापरयुग में द्वारकापुरी में सताजित नाम के यदुवंशी राजा थे। भगवान सूर्य के परम भक्त थे, इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य भगवान ने उन्हें स्यमन्तक मणि दी थी। स्यमन्तक मणि की कांति हजारों सूर्यों के समान प्रकाशमान थी। इस मणि से प्रतिदिन 8 भार सोना मिलता था, इससे राष्ट में विपत्ती नहीं आती थी। एक बार महाराज उग्रसेन की सभा में सत्राजित ये मणि पहन कर गए। कृष्णजी ने उनसे मणि देने का आग्रह किया और सत्राजित ने इंकार कर दिया। कुछ दिन बाद सत्राजित का भाई प्रसेन मणि पहन कर शिकार खेलने गया और वन में ही किसी सिंह ने उसे मार डाला। सिंह को जाम्बवंत ने मारा और वह मणि अपनी पुत्री जाम्बवती को दे दी।
इधर प्रसेन जब शिकार से वापिस नहीं लौटा तब लोग काना फूसी करने लगे कि हो सकता है कि कृष्ण ने ही मणि के लालच में प्रसेन का वध किया होगा। इस प्रकार कृष्ण पर कलंक लगा, अपने ऊपर लगे इस कलंक को मिटाने के लिए श्रीकृष्ण, सत्राजित के कुछ लोगों को साथ ले प्रसेन की खोज में निकले। प्रसेन का शव दिखलाई दिया साथ ही सिंह के पंजो के निशान भी। निशान का पिछा किया, एक बड़ी लंबी गहरी गुफा में वो चिन्ह जाते दिखलाई दिए। गुफा में भीतर सिंह भी मरा दिखाई दिया। समीप जांबवती झूला झूल रही थी तथा जाम्बवंत सोये थे, जांबवती ने गोविंद को सारा वृत्तांत बताया और उन्हें मणि लेकर लौट जाने के लिए कहा।
श्रीकृष्ण ने पांचजय शंख ध्वनि की, जिससे जाम्बवंत उठे, युध्द किया। 21 दिन तक युध्द चलता रहा, अंत में जाम्बवंत पहचान गए और स्यमन्तक मणि और अपनी पुत्री जाम्बवती कृष्ण को अर्पित की। वापिस लौटे व सत्राजित को मणि लौटा दी। सत्राजित बहुत लज्जित हुए और अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह कृष्ण के साथ किया। इस घटना के बाद कन्हैया ने नारदजी से प्रश्न किया कि मुझ पर चोरी का कलंक, झूठा कलंक क्यों लगा। नारदजी ने कहा कि प्रभु आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी का चंद्र देख लिया इसलिए आपको कलंक लगा।
एक बार ब्रम्हाजी ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी का व्रत किया। गणेशजी प्रकट हुए, ब्रम्हाजी ने वर मांगा कि सृष्टि करने में मुझे मोह न हो जाय। एवमस्तु कह कर गणेशजी जाने लगे। उनके विकट रूप को देखकर चंद्रमा ने उपहास किया, जिससे गणेशजी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि तुमने मेरा उपहास किया, तुम्हें अपनी सुंदरता पर गर्व है। आज से कोई भी तुम्हारा मुंह नहीं देखेगा। जिससे चंद्रमा लज्जित होकर मान-सरोवर की कुमुदिनियो में छिप गए। चंद्रप्रकाश के अभाव में संपूर्ण ब्रम्हांड में बड़ा कष्ट हो रहा था। इसलिए ब्रम्हाजी की आज्ञा से सब देवो ने गणेशजी का व्रत किया।
गणेशजी प्रसन्न होकर कहने लगे कि ‘‘अब चंदमा निःश्राप हो जाएगा, परंतु वर्ष में एक दिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो इसके दर्शन करेगा उसपर चोरी आदि का झूठा लांछन, कलंक अवश्य ही लगेगा और जो व्यक्ति सदैव उसके पूर्व की द्वितीया का चंद्र का दर्शन करेगा उसको लांछन नहीं लगेगा। इसलिए भादप्रद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रदर्शन का निषेध है।
चंद्रदर्शन होने पर प्रायश्चित विधान
व्रतराज ग्रंथ के अनुसार यदि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रदर्शन करने पर कलंक लगता है। यदि चंद्र दर्शन हो जाए तब श्रीमद् भागवत के दशम स्कंन्ध के 57 वें अध्याय का पाठ या श्रवण करें या श्रीकृष्ण स्ममन्तक मणि का पता लगाने निकले और जाम्बवंत जी की गुफा में जाम्बवती को देखा तब जाम्बवंती ने यह बात कही।
सिंहः प्रसेनमधीत्सिंहो जाम्बवता हतः ! सुकुमारक मा रोदीस्तव येष स्यमन्तकः !!
जिसका अर्थ हैं कि ‘‘सिंह ने प्रसेन को मारा, सिंह को जाम्बवंत को मार दिया, हे सुकुमारक ! रो मत, चिंता मत करों , यह स्यमन्तक मणि तुम्हारा ही हैं और इससे भी बढ़िया उपाय यह हैं कि मासादौ पूर्वमेव त्वां ये पश्यति सदा जनाः ! भद्रा द्वितीया यां शुक्लपक्षस्य तेषां दोषो न जायते !!
यानि भाद्रपद शुक्ल द्वितीया के चंद्र का दर्शन यदि पहले कर लिया जाये तब चतुर्थी के चंद्र के दर्शन का दोष नहीं लगता .
इस प्रकार से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से जुड़ी चंद्रदर्शन निषेध और स्यमन्तक मणि की कथा है, जो इस कथा को श्रवण करता है या पढ़ता है उसे भी चंद्र दर्शन का दोष नहीं लगता।
साभार: पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला