किसी ने रंक से राजा बना दिया तो किसी ने दोस्त के लिए न्यौछावर कर दिए प्राण

दोस्ती हो तो ऐसी किसी ने रंक से राजा बना दिया तो किसी ने दोस्त के लिए न्यौछावर कर दिए प्राण

Bhaskar Hindi
Update: 2022-08-06 12:49 GMT
किसी ने रंक से राजा बना दिया तो किसी ने दोस्त के लिए न्यौछावर कर दिए प्राण

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मित्रता आज की नहीं बल्कि पौराणिक काल से चली आ रही है। जीवन में जितना जरूरी मित्र का होना है उससे भी ज्यादा जरुरी होता है एक अच्छे मित्र का होना। मित्र वो, जो कि हमेशा अपके साथ और आपके हितों के बारे मे सोचे। मित्र वो, जो आपकी  पीठ पीछे भी आपका रहे, मित्र वो, जो आपकी बुराइयों को खत्म करे, सही और गलत में आपको हमेशा सही रहा को दिखाए। 

हमें हमेशा ऐसा ही मित्र बनाना चाहीये, इसकी प्रेणना हमे पौंराणिक काल से चली आ रही मित्रता से लेनी चाहीये। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही मित्रों के बारे में, जिनकी दोस्ती के उदाहरण आज भी दिए जाते हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही दोस्ती के उदाहरण...

कृष्ण और सुदामा
आप सभी ने कृष्ण और सुदामा की दोस्ती के बारे में सुना होगा, वे दोनों बचपन के दोस्त थे और गुरुकुल में भी साथ ही रह कर शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद श्रीकृष्ण जी व्दारका के राजा बन गऐ। सुदामा का जीवन गरीबी में ही गुजरा और एक दिन सुदामा की पत्नी ने उनसे अपने मित्र के पास जा कर कुछ मदद का आग्रह करने को कहा। इसके बाद वह जाते हैं और श्रीकृष्ण से मिलते हैं। सुदामा को देख कर ही श्रीकृष्ण जी उनको गले से लगा लेते हैं और उनको अपने महल के अंदर ले कर जाते हैं और अपने राजसिंहासन पर बैठा कर उनके पैर धोतें हैं और उनका ऐसा स्वागत सतकार करते हैं। यह सब देख कर सभी हैरान हो जाते हैं कृष्ण की यह उदारता देख सुदामा उनसे कुछ ना मांग सके और वहां से वापस आ जाते हैं। लेकिन जब वे अपने घर की ओर जाते हैं तो देखते हैं कि श्रीकृष्ण की कृपा से वह पूर्णं रूप से धन.धान्य से सम्पन हो जाते हैं।

कर्णं और दुर्योधन
कर्णं और दुर्योधन की दोस्ती भी बहुत गहरी थी, इसका सबूत तो महाभारत युद्ध में है कि कर्ण बराबरी के हो सकें और युद्ध लड़ सकें इसलिए दुर्योधन ने अंग राज्य की स्थापना की और उसका राजा कर्णं को बनाया। कर्णं ने हमेशा से अपने दोस्त का साथ दिया और उनके साथ हमेशा खड़े रहे यहां तक कि उनकी ओर से युद्ध से शामिल हो कर वीरगती को भी प्राप्त हो गऐ सिर्फ अपनी दोस्त के लिए। 

श्रीराम और सुग्रीव
रामायण की कथा तो सभी ने सुनी और लगभग पढ़ी है। जब राम जी, माता सीता जी और लक्ष्मण जी 
के साथ 14 वर्ष वनवासके लिए जाते हैं, तब वन में सीता माता का अपहण लंकापति रावण द्वारा कर लिया जाता है। इसके बाद भगवान श्रीराम और छोटे भाई लक्ष्मण, माता सीता जी की तलाश करने लगते हैं तभी उनकी भेंट सुग्रीव से होती है और सुग्रीव सीता माता को ढूंढने के लिये अपनी वानर सेना को लगा देते हैं और सीता माता का पता लगा कर रावण से युध्द कर लंका पर विजय प्राप्त करते हैं। इस सभी मे सुग्रीव औरर उनकी वानर सैना ने राम जी के साथ मिल कर रावण के साथ युध्द किया।  

अर्जुन और श्रीकृष्ण
दोस्ती की मिशाल में अर्जुन और श्रीकृष्ण की मिशाल भी दी जाती है अर्जुन एक महान धनुर्धारी और वीर योध्दा थे। उनको पता था कि बिना कृष्ण की सहायता के वह यह युध्द कभी नही जीत सकेंगे। इसलिए उन्होंनें श्रीकृष्ण की इतनी बड़ी सेना को छोड़ कर बदले में श्रीकृष्ण को अपने साथ युद्ध के लिये लिया। कहा जाता है कि एक सच्चा मित्र अगर साथ में सही पथ.प्रर्दशक के रूप में हो तो आप कोई भी युध्द आसानी से जीत सकते हैं।

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