वैशाख अमावस्या पर ऐसे करें अपने पितरों को मोक्ष प्रदान
वैशाख अमावस्या पर ऐसे करें अपने पितरों को मोक्ष प्रदान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमावस्या धर्म-कर्म, स्नान-दान, तर्पण आदि के लिए बहुत ही शुभ मानी जाती है। इस बार वैशाख अमावस्या की तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 4 मई 2019 को शनिवार के दिन है। शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या बहुत ही सौभाग्यशाली फल देने वाली शनि अमावस्या कहलाती है। ग्रह दोष विशेषकर काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए अमावस्या तिथि पर ही ज्योतिषीय उपाय भी किए जाते हैं।
मान्यता है कि इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था इस कारण वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। दक्षिण भारत में तो अमावस्यांत पंचांग का अनुसरण करने वाले वैशाख अमावस्या को शनि जयंती के रूप में भी मनाते हैं। आइए जानते हैं वैशाख अमावस्या की व्रत कथा व इसके महत्व के बारे में...
वैशाख अमावस्या पूजा विधि :-
वैशाख अमावस्या पर ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। नित्यकर्म से निवृत होकर पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान करना चाहिए। गंगा, यमुना आदि नदियों में स्नान करने का बहुत महत्व बताया जाता है। इस दिन पवित्र सरोवरों (तालाब) में भी स्नान किया जा सकता है। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते जल में तिल प्रवाहित करें। पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करें। इस दिन शनि जयंती या शनि अमावश्य के रूप में भी मनाई जाती है इसलिए शनिदेव की तेल, तिल और दीप आदि जलाकर पूजा करनी चाहिए। शनि चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं या फिर शनि मंत्रों का जाप कर सकते हैं। अपने सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा भी अवश्य देनी चाहिए।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कथा
धर्मवर्ण नाम का एक ब्राह्मण हुआ करता था। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति का था। व्रत-उपवास करता रहता, ऋषि-मुनियों का आदर करता व उनसे ज्ञान ग्रहण करता। एक बार उसने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। अन्य युगों में जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता था उससे कहीं अधिक पुण्य फल इस घोर कलियुग में भगवान का नाम सुमिरन करने से मिल जाता है। धर्मवर्ण ने इसे आत्मसात कर लिया और सांसारिकता से विरक्त होकर सन्यास लेकर भ्रमण करने लगा।
एक दिन भ्रमण करते-करते वह पितृलोक जा पंहुचा। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी दसा धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई है क्योंकि अब उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन का आरम्भ करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें शांति प्राप्त सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। इसके बाद धर्मवर्ण अपने सांसारिक जीवन में लौट आया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति प्रदान कर उन्हें शांति प्रदान की।