दत्तात्रेय जयंती: स्मरण मात्र से जीवन से कष्ट होंगे दूर, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

दत्तात्रेय जयंती: स्मरण मात्र से जीवन से कष्ट होंगे दूर, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

Bhaskar Hindi
Update: 2020-12-28 04:20 GMT
दत्तात्रेय जयंती: स्मरण मात्र से जीवन से कष्ट होंगे दूर, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। जो इस वर्ष 29 दिसम्बर मंगलवार को है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप हैं। साथ ही ईश्वर और गुरु दोनों के रूप में समाहित होने के चलते उन्हें "परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु"और "श्रीगुरुदेवदत्त"भी कहा जाता है। 

मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हीं के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। भगवान दत्तात्रेय, अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। उनका जन्म प्रदोष काल में हुआ। भगवान दत्तात्रेय को स्मृतगामी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि वह स्मरणमात्र से ही अपने भक्तों के पास पहुंच जाते हैं। 

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शुभ मुहूर्त 
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 29 दिसम्बर, सुबह 07 बजकर 54 मिनट से ( 2020) 
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 30 दिसम्बर, सुबह 8 बजकर 57 मिनट तक  

पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। 
- पूजा से पहले एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर उस पर साफ आसन बिछाएं।
- भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करें। 
- इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला आदि अर्पित करें।
- भगवान की धूप व दीप से विधिवत पूजा करें।
- अंत में आरती गाएं और फिर प्रसाद वितरण करें। 

शिक्षा और दीक्षा  
भगवान दत्तात्रेय जी ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली। दत्तात्रेय जी ने अन्य पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की थी। दत्तात्रेय जी कहते हैं कि जिससे जितना गुण मिला है उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है, इस प्रकार मेरे 24 गुरु हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी।

स्वरूप
पुराणों के अनुसार इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमयस्वरूप है। चित्र में इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है।

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मान्यता
मान्यता के अनुसार दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान की थी। यह भी मान्यता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने विद्याएं दीक्षा दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। दूसरी ओर मुनि सांकृति को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्यार्जुन को तन्त्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से ही प्राप्त हुआ। 

गुरु पाठ और जाप  
दत्तात्रेय जी का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इन पर दो ग्रंथ लिखे गए हैं "अवतार-चरित्र" और "गुरुचरित्र", जिन्हें वेद समान माना गया है। 
मार्गशीर्ष(अगहन) 7 से मार्गशीर्ष(अगहन) पूर्णिमा अर्थार्थ दत्त जयंती तक दत्त अनुयाई द्वारा गुरुचरित्र का पाठ किया जाता है। गुरुचरित्र में कुल 52 अध्याय में कुल 7491 पंक्तियां हैं। इसमें श्रीपाद, श्रीवल्लभ और श्रीनरसिंह सरस्वती की अद्भुत लीलाओं व चमत्कारों का वर्णन है।

 

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