नंदा देवी : हिमालय पर ऐसे होती है शक्ति स्वरूपा की पूजा

नंदा देवी : हिमालय पर ऐसे होती है शक्ति स्वरूपा की पूजा

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-25 04:30 GMT
नंदा देवी : हिमालय पर ऐसे होती है शक्ति स्वरूपा की पूजा


डिजिटल डेस्क, उत्तराखंड। मां शक्ति के हर रूप की पूजा का महत्व है। अलग-अलग स्थानों पर मां के अलग-अलग अवतारों के बारे में जानने का अवसर मिलता है। प्रत्येक मंदिर का अपना अलग ही महत्व है। आज हम आपको उत्तराखंड अल्मोड़ा के कुमाऊं मंडल में स्थित नंदा देवी के बारे में बताने जा रहे हैं। यह स्थान काफी लोकप्रिय है। नंदा देवी मेला के अवसर पर यहां हजारों श्रद्धालु माता के दर्शनों व पूजन के लिए जुटते हैं। नंदा देवी की उपासना के प्रमाण प्राचीन काल से पाए गए हैं। इन्हें नौ दुर्गा में एक रूप बताया गया है। 


उपनिषद और पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है। पूरे हिमालय में सर्वाधिक पूज्यनीय देवी नंदा में लोगों की अत्यधिक आस्था है। स्थानीय निवासी इनके आशीर्वाद के बाद ही कोई भी कार्य प्रारंभ करते हैं।  राज जात यात्रा नंदा देवी के लिए ही की जाती है, जिसका दृश्य बेहद अलौकिक होता है।

 


नंदा देवी का भव्य मेला
नंदादेवी मेले का आयोजन भाद्र मास की अष्टमी को किया जाता है। इसे नंदा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पंचमी तिथि पर देवी की दो भव्य प्रतिमाएं बनायी जाती हैं। इसे उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी नंदादेवी के समान ही बनाते हैं। पूरे उत्सव, त्योहार के दौरान अलग-अलग दिन परंपरागत तरीके से विधि के अनुसार पूजन का आयोजन होता है। इनका पूजन तांत्रिक विधि से भी किया जाता है।

 


 

नंदा देवी को बनाया कुल देवी

इस स्थान के संबंध में बताया जाता है कि अल्मोड़ा जिले के मल्ला महल में 1670 में कुमाऊं के चंद वंशीय शासक राजा बहादुर चंद ने बधाणगढ़ के किले से नंदादेवी की सोने की प्रतिमा यहां लाकर स्थापित की थी और उन्हें अपनी कुल देवी के रूप में पूजना प्रारंभ किया। इसके बाद 1816 में अंग्रेजी शासन के दौरान तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने मंदिर बनाकर इनकी स्थापना की। धीरे-धीरे मंदिर का महत्व बढ़ता गया। चंद वंश के शासक इन्हें कुल देवी के रूप में पूजते रहे और धीरे-धीरे मां के चमत्कारों ने इस स्थान की ख्याति बढ़ा दी। यह स्थान हिमालय के बेहद अद्भुत स्थानों में से एक है। 

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