रामायण और रामचरित मानस: मोरारी बापू महर्षि वाल्मीकि की रामायण और गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस को एक साथ लाए

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-05 13:23 GMT

वाल्मीकि नगर, बिहार, 5 जून, 2024:  राम चरित मानस की अपनी गहन व्याख्याओं के लिए दुनियाभर में जाने जाते प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु मोरारी बापू ने संघर्ष से भरी दुनिया में पुलों या "सेतु" के निर्माण के महत्व पर जोर दिया है। रामायण से समानताएं बताते हुए पूज्य बापू ने बताया कि, कैसे भगवान राम ने विभिन्न राजाओं, ऋषियों और यहां तक कि जातियों के बीच सेतु का काम किया है। इसी तरह, बापू की व्यास पीठ का उद्देश्य वाल्मीकि रामायण और गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस के बीच सेतु बनाना है। 

वाल्मीकि नगर में चल रहे अपने प्रवचन में पूज्य मोरारी बापू ने समझाया कि, "जिस तरह भगवान राम, राजा दशरथ और राजा जनक के बीच तथा ऋषि विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच एक सेतु था, उसी तरह मेरा प्रयास भी रामायण की विभिन्न कथाओं के बीच एक सेतु बनाना है।" अपनी 937वीं कथा के दौरान महर्षि वाल्मीकि की रामायण पर बोलने के लिए बापू का चयन इसी दिशा में एक प्रयास है।

दोनों रामायणों के बीच अंतर को संबोधित करते हुए बापू ने कहा कि, "कथाओं में कई अंतर हैं, किन्तु 'सत कोटि रामायण' ही है। विभिन्न युगों में असंख्य रामायण हैं, इसलिए अलग-अलग कथाएं स्वाभाविक हैं।" उन्होंने वाल्मीकि द्वारा रावण को वैदिक धर्म के रक्षक के रूप में चित्रित करने के उदाहरण दिए, जबकि तुलसी रामायण में रावण को अत्याचारी के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपने पिछले जन्म में राजा प्रतापभानु था। उन्होंने बताया कि, "ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि अलग-अलग युगों में एक ही भूमिका में अलग-अलग व्यक्तित्व हो सकते हैं।" 

मोरारी बापू ने सनातन धर्म के सार पर भी प्रकाश डाला और इसे "निरंतर नूतनता" यानी हमेशा नई ताजगी के रूप में वर्णित किया। उन्होंने अपनी मान्यता दोहराई कि, महर्षि वाल्मीकि ने गोस्वामी तुलसीदास के रूप में पुनर्जन्म लिया था, जिन्होंने अपने समय की सांस्कृतिक आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए रामचरित मानस लिखा था।

"मानस रामायण" नामक इस कथा का आयोजन, 1 से 9 जून, 2024 तक, भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित प्रसिद्ध वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के पास स्थित सुंदर वाल्मीकि नगर में आयोजित किया गया है। यह स्थान ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वाल्मीकि आश्रम के करीब है, जहां सीता ने अपने जुड़वां बेटों कुश और लव को जन्म दिया था और जहां उन्होंने अपनी सांसारिक लीला पूर्ण की थी। 

इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों के लिए निःशुल्क शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की गई है। इसका आयोजन बड़ौदा के परेन और मयूरी शाह द्वारा किया जा रहा है। इस कथा के लिए बापू द्वारा चुने गए मुख्य छंद हैं: नाना भांति राम अवतारा | रामायण सत कोटि अपारा || (राम के अनेक रूप हैं; रामायण असंख्य हैं।) -

(बालकाण्ड, दोहा 33)बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ। सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥ (मैं उन ऋषि के चरण कमलों को नमन करता हूँ जिन्होंने दोषों से रहित और दूषण की दर्शाती रामायण की रचना की।) - (सोरठा, बालकाण्ड, दोहा 14) 

वाल्मीकि नगर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जहां गंडक नदी पर एक बांध है, जो सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है। यहां पर्यटक, हिमालय की तलहटी के प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण का आनंद ले सकते हैं, जिसमें ऐतिहासिक वाल्मीकि आश्रम भी शामिल है, जहां रामायण के लेखक महर्षि वाल्मीकि ने कई वर्ष बिताए थे। आश्रम में ऋषि और सीता को समर्पित दो मंदिर भी हैं। इसके साथ ही वे स्थान भी हैं, जहां सीता ने कुश और लव को जन्म दिया और जहां उन्होंने धरती में प्रवेश किया। 

लगभग 544 वर्ग किलोमीटर में फैला वाल्मीकि नगर राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व, अनेक जंगली जानवरों और पक्षियों का घर है और शानदार हिमालय इस शांत जंगली भूमि के लिए पृष्ठभूमि प्रदान करता है।

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