Shahdol News: गैस लीक मामले में ओपीएम प्रबंधन के खिलाफ न्यायालय में दायर हुआ परिवाद
- ओपीएम प्रबंधन पर जवाबदेही तय करने की तैयारी में एमपीपीसीबी
- एएलपी भोपाल गैस त्रासदी 1984 की घटना के बाद आया।
- निर्देशों के पालन में विफल रहने पर एक वर्ष और छह माह तक सजा का प्रावधान है।
Shahdol News: ओरियंट पेपर मिल (ओपीएम) की सोडा फैक्ट्री यूनिट में 21 सितंबर की शाम 7.30 बजे हानिकारक गैस रिसाव मामले में एमपीपीसीबी (मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) शहडोल के क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा अनूपपुर जिला न्यायालय में परिवाद दायर किया है। एयर पाल्यूशन एक्ट 1981 की धारा 37 के तहत दर्ज परिवाद में ओपीएम प्रबंधन पर खतरनाक पदार्थ को स्टोर करने के बाद आमजनों को नुकसान से बचाने में लापरवाही का आरोप है।
उल्लेखनीय है कि 21 सितंबर को ओपीएम के सोडा फैक्ट्री से हानिकारक क्लोरीन गैस रिसाव के बाद सौडा फैक्ट्री के बाहर रहने वाले बरगवां वार्ड क्रमांक तीन के 50 से ज्यादा लोगों को सांस लेने में तकलीफ और आंखों के जलन के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया। अनूपपुर कलेक्टर हर्षल पंचोली के निर्देश पर प्लांट बंद करवाया गया। जांच के लिए कमेटी गठित की। परिवाद को लेकर ओपीएम के सीनियर मैनेजर रवि शर्मा का कहना है कि इस बारे में जानकारी नहीं है। एमपीपीसीबी से जानकारी लेकर ही कुछ बता पाएंगे।
धारा 37 में यह प्रावधान
धारा 37 धारा 21 या धारा 22 के उपबंधों या धारा 31ए के अधीन जारी निदेशों का अनुपालन करने में विफलता पर लागू होता है। इसमें निर्देशों के पालन में विफल रहने पर एक वर्ष और छह माह तक सजा का प्रावधान है। यह 6 वर्ष तक हो सकती है। इसके साथ ही आर्थिक दंड का भी प्रावधान है।
एएलपी के तहत परिवाद
पीसीबी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभिनय शुक्ला ने बताया कि ओपीएम के खिलाफ अबस्ल्यूट लाइबेल्टी प्रिसिंपल (एएलपी) यानी पूर्ण दायित्व सिद्धांत के तहत परिवाद दायर किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली ने ‘ओलियम गैस रिसाव मामले’ में निर्णय दिया कि भारत जैसे विकासशील देश में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये ‘सख्त दायित्व का सिद्धांत’ (एसएलपी) अपर्याप्त है और इसके स्थान पर एएलपी लागू किया जाना चाहिये।
एएलपी भोपाल गैस त्रासदी 1984 की घटना के बाद आया। जिसमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती भविष्य में ऐसी घटनाओं के लिये कॉर्पोरेट इकाइयों को जिम्मेदार ठहराना चाहते थे। एएलपी के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय यह तय करना चाहता था कि भविष्य में ऐसी दुर्घटना होने पर कॉर्पोरेट को किसी प्रकार की छूट प्रदान न की जाए तथा इन इकाइयों से आवश्यक क्षतिपूर्ति राशि अवश्य वसूल की जाए।