शहडोल: श्रीराम के वन गमन मार्ग पर शहडोल के पांच स्थान कहलाएंगे ‘रचनात्मक पथ’
- इन स्थानों पर विकसित होंगे दर्शनीय स्थल
- इंटरप्रिटेशन सेंटर, वनवास के शिल्प, इंडोर व आउटडोर थियेटर
- स्थान को विकसित करने के लिए कलेक्टर सहित अन्य अधिकारी पहुंचे
डिजिटल डेस्क,शहडोल। भगवान श्रीराम ने वनवास के समय सबसे ज्यादा समय मध्यप्रदेश में बिताया। भगवान श्रीराम के वनवास मार्ग पर जो भी स्थान हैं उन्हें प्रदेश सरकार द्वारा रचनात्मक पथ के रूप में विकसित किया जाएगा।
इसमें शहडोल संभाग के 5 स्थान शामिल हैं, जहां आने वाले समय में अध्यात्मिक अनुभूति के साथ दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी है। इन स्थानों पर इंटरप्रिटेशन सेंटर के साथ ही वनवास के समय बिताए गए पलों की शिल्प व चित्र और इंडोर और आउटडोर थियेटर सहित अन्य काम होंगे।
उमरिया के मार्कण्डेय आश्रम, रामजानकी मंदिर व दशरथ घाट का होगा उद्धार-
पौराणिक मान्यता के अनुसार चित्रकूट से सतना जिले से होते हुए भगवान श्रीराम सबसे पहले मार्कण्डेय आश्रम पहुंचे थे। यह वर्तमान में मानपुर विकासखण्ड के दरबार गांव मेें पड़ता है। बृहद ब्रह्म पुराण में श्रोण भद्र के माहात्म्य वर्णन में भगवान श्रीराम ने माता सीता और लक्ष्मण जी की उपस्थिति में मार्कण्डेय आश्रम संगम जो वर्तमान में छोटी महानदी के दक्षिणी भाग में स्थित है में अपने बैकुंठवासी पिता महाराज दशरथ का पिण्डदान किया था।
पांडुलिपि की फोटो एवं श्रोणभद्र हरिरुप पुस्तक आज भी उपलब्ध है। यहां भगवान राम ने रूककर तपस्या की थी। मार्कण्डेय आश्रम के बाद भगवान राम ने बांधवगढ़ के लिए प्रस्थान किया। किवदंती है कि उन्होंने यहां एक चौमासा व्यतीत किया।
आज भी पर्वत में माता सीता जी की रसोई है। यह किला उन्होंने अपने अनुज लक्ष्मण को सौंप दिया था। इसी के चलते इसका नाम बांधवगढ़ पड़ गया। बांधव+गढ़ बांधव का आशय भाई, गढ़ अर्थात किला, इस तरह बांधव का किला बांधवगढ़ कहलाया।
बांधवगढ़ के बाद भगवान राम ने सोन नदी और जोहिला नदी के संगम में बैकुंठवासी पिता दशरथ के नाम से श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण किया था, इसलिए यह दशरथ घाट कहलाता है। बिजौरी गांव के समीप इस स्थान पर आज भी आसपास के आदिवासी श्रद्धाभाव से यहां पिंडदान करते हैं। मकर संक्रांति पर यहां मेला भरता है। भगवान कार्तिकेय की मूर्ति है।
दशरथ घाट के बाद शहडोल पहुंंचे श्रीराम, स्थान सीतामढ़ी के नाम से प्रसिद्ध-
प्रभु श्रीराम दशरथ घाट के बाद माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ शहडोल के जंगल पहुंचे। इस स्थान को वर्तमान में सीतामढ़ी नाम से जाना जाता है। जयसिंहनगर के गंधिया के समीप इस स्थान को अब रचनात्मक पथ के रुप में विकसित किया जाएगा।
कलेक्टर वंदना वैद्य ने बताया कि पर्यटन विभाग से इस बारे में रिपोर्ट मांगी गई है। स्थानीय लोगों से भी सुझाव लिए जा रहे हैं कि सीतामढ़ी को कैसे आध्यात्मिक स्थल के रूप में तैयार किया जाए।
अनूपपुर के खोडरी में सीतामढ़ी मंदिर- कोतमा तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत खोडऱी स्थित पवित्र स्थल सीतामढ़ी को लेकर मान्यता है कि मंदिर में भगवान राम के जन्मकाल त्रेतायुग से है, जहां भगवान श्रीराम के चरण कमल के निशान व स्वयंभू शिव लिंग मौजूद हैं।
भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान शहडोल स्थित सीतामढ़ी से अनूपपुर जिले के कोतमा तहसील स्थित सीतामढ़ी आए फिर यहां से वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य की ओर चले गए। इस स्थान को विकसित करने के लिए कलेक्टर सहित अन्य अधिकारी पहुंचे।
स्थानीय लोगों ने बाउंड्रीवाल, विद्युत संबंधी समस्या व पहुंचमार्ग ठीक करने की बात कही।