धीमी मौत मर रही है मंदाकिनी: 30 वर्ष में विलुप्त हो जाएगी चित्रकूट की पुण्य सलिला !
साइंटिफिक एनॉलिसिस से सामने आया सनसनीखेज सच
सतना। धर्मनगरी चित्रकूट में मोक्षदायिनी पुण्य सलिला मंदाकिनी धीमी मौत मर रही है। अगर, यही हाल रहा तो मध्यप्रदेश की 22 सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में शामिल मंदाकिनी गंगा आने वाले 30 वर्षों में विलुप्त हो जाएगी। मंदाकिनी के तकरीबन 31 वर्ष के साइंटिफिक एनॉलिसिस के आधाार पर महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख प्रो. घनश्याम गुप्ता ने इस आशय की चिंता जताई है। उन्होंने बताया कि किसी भी स्वस्थ्य नदी के जीवन की पड़ताल के 4 प्रमुख पैरामीटर होते हैं। नदी का जल प्रवाह, घुलित आक्सीजन (डीओ) , बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और न्यूट्राफिकेशन। प्रो. गुप्ता के मुताबिक घटता डीओ और बढ़ता बीओडी जहां मंदाकिनी में जानलेवा स्तर पर हैं, वहीं कभी कल-कल करती पतित पाविनी अब लगभग बूंद-बंूद बहने लगी है। बढ़ता न्यूट्राफिकेशन भी जल संकट से जूझ रही मंदाकिनी के तिल-तिल मार रहा है।
इस नदी की धीमी मौत को ऐसे समझें
१- वाटर फ्लो: ३० साल में १० गुना गिरा जल प्रवाह
प्रो. गुप्ता ने बताया कि वर्ष १९९३ में मंदाकिनी नदी का जलप्रवाह ३ हजार लीटर प्रति सेकंड था। जो मौजूदा समय में घट कर ३०० लीटर प्रति सेकंड पर पहुंच गया है। साफ है कि इन ३० वषो्रं के दौरान मंदाकिनी के जल प्रवाह में १० गुना गिरावट आई है। यही हाल रहा तो पक्की आशंका है कि आने वाले ३० वर्षों में यही जल प्रवाह गिर कर ३० लीटर प्रति सेकंड हो जाएगी? अगर, किसी नदी के जल का प्रवाह ५० लीटर प्रति सेकंड से नीचे चला जाता है तो उसे डेड रिवर (मरी हुई नदी) मान लिया जाता है। दुर्भाग्य से रामायण, रामचरित मानस और पुराणों में वर्णित त्रेतायुगीन मदांकिनी गंगा मृत्यु की उसी राह पर है। साइंटिफिक एनॉलिसिस बताता कि ३० वर्ष यह नदी नहीं मिलेगी।
2. डीओ: प्रति लीटर पर बची है सिर्फ 2 मिलीग्राम ऑक्सीजन
किसी भी स्वस्थ्य नदी का दूसरा बड़ा पैमाना घुलित आक्सीजन (डिजाल्वड ऑक्सीजन) की उपलब्धता होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय पैरामीटर में प्रति लीटर पर घुलित आक्सीजन की मात्रा 4 मिली ग्राम से कम नहीं होनी चाहिए। मगर, सती अनुसुइया आश्रम के पास अगर मंदाकिनी
के अपस्ट्रीम को छोड़ दें तो कहीं भी प्रति लीटर पर ऑक्सीजन की मात्रा २ मिली ग्राम से ऊपर नहीं है। प्रोफेसर घनश्याम गुप्ता बताते हैं कि जलीय जीवन इसी प्राण वायु (घुंलित आक्सीजन ) पर निर्भर होता है। अन्यथा जलीय संसार नष्ट हो जाता है। एक अन्य अध्ययन बताता है कि वर्ष 1994 से पहले मंदाकिनी में पाई जाने वाली मछलियों की ५ प्रजातियां पानी के अंदर दम घुटने से पहले की विलुप्त हो चुकी हैं। यह स्थिति किसी भी नदी की धीमी मौत (इंडेजर्ड) का सटीक लक्षण है।
2 .बीओडी : 1 लीटर से सीवेज से प्रदूषित हो रहा है १५० लीटर शुद्ध जल
ग्रामोदय के पर्यावरण एवं ऊर्जा विभाग के प्रमुख प्रो.घनश्याम गुप्ता की स्टडी से सनसनीखेज सच यह भी है कि मंदाकिनी के जल में जहां घुलित आक्सीजन की मात्रा तेजी से घट रही है वहीं बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि नदी में छोड़े जा रहे विभिन्न सीवेज (ंगंदे पानी) पर लगाम नहीं होने से मौजूदा समय में मंदाकिनी में बीओडी की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। किसी भी हालत में जल में बीओडी की मात्रा प्रति लीटर पर ५ मिलीग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। मगर, मौजूदा समय में चित्रकूट की मंदाकिनी में कहीं भी यह स्तर ३५-४० मिलीग्राम से कम नहीं है। मानवीय हस्तक्षेप वाले रामघाट और भरतघाट पर तो बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड तय मानक से १५० गुना ज्यादा है। साफ है कि नदीं में गिरने वाला एक लीटर सीवेज १५० लीटर शुद्ध जल को प्रदूषित कर रहा है।
3 . न्यूट्राफिकेशन : एक तो कम पानी उस पर वाष्पोत्सर्जन भी
भारी प्रदूषण के कारण मंदाकिनी नदी में न्यूट्रोफिकेशन बेलगाम है। प्रो. गुप्ता की स्टडी से यह तथ्य भी साफ है कि जल में तय मानकों के विरुद्ध घुलित आक्सीजन के घटने और बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड के बढऩे से प्रदूषित जल में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की मात्रा बढ़ जाती है। इससे एल्गी पनपती है। इसे एल्गल ब्लूम्स बोलते हैं। एल्गी वाष्पोत्सर्जन कर वाटर लॉस करती है। उन्होंने कहा कि एक तो मंदाकिनी पहले से ही गंभीर जलसंकट से जूझ रही है उस पर
वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया भी बढ़ गई चुकी है। एल्गल ब्लूम्स से नदी के खतरे यहीं खत्म नहीं होते हैं। एल्गी का जीवन लगभग एक साल होता है। इसके बाद मर कर वह अपने पीछे नदी में एक से डेढ़ फीट के बेड छोड़ जाती है। जाहिर है यह स्थिति नदी को उथला बनाती है। प्रो.धनश्याम गुप्ता बताते हैं कि किसी नदी की मौत के लिए बहाव मे कमी और कम गहराई जैसे दो कारण ही काफी होते हैं।