नए शिक्षण सत्र के साथ ही प्राइवेट स्कूलों की शुरु हो गई मनमानी

भदोही नए शिक्षण सत्र के साथ ही प्राइवेट स्कूलों की शुरु हो गई मनमानी

Bhaskar Hindi
Update: 2022-04-12 11:32 GMT
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डिजिटल डेस्क, भदोही। नए शिक्षण सत्र के साथ ही प्राइवेट स्कूलों की मनमानी शुरू हो गई है। जहां पर प्रवेश के नाम पर बच्चों के अभिभावकों से मनमाना रुपए वसूले जा रहे हैं। लेकिन इनके इस मनमाने वसूली पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं है। वहीं वजह है कि प्राइवेट स्कूल मालामाल हो जा रहे हैं।
देखा जाए तो प्राइवेट स्कूलों अब विद्यालय नहीं बल्कि माल बन गए हैं। जहां पर काफी-किताब, जूता-मोजा, सहित अन्य सामानों के साथ शिक्षा बेची जा रही है। अभिभावकों से विद्यालयों के द्वारा मनमानी फीस वसूली जा रही है। हालांकि अभिभावक इस पर अपनी आवाज को तो उठा रहे हैं। लेकिन उनकी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है। यही कारण है कि प्राइवेट स्कूलों के संचालक इसको अब व्यापार बना लिए हैं। लेकिन बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले।‌इसको देखते हुए अभिभावक भी अपने बच्चों को ऐसे प्राइवेट विद्यालयों में पढ़ाने को विवश हो रहे हैं।

सरकारी स्कूलों पर भारी पड़ते प्राइवेट स्कूल
शासन द्वारा सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को प्रतिमाह मोटी सैलेरी थी जाती है। जबकि प्राइवेट स्कूलों के अध्यापकों को मानदेय के नाम पर सिर्फ 5 से 10 हजार रुपया प्रतिमाह दिए जाते हैं। कुछ टीचरों को उससे थोड़ा सा अधिक मानदेय दिया जाता है। ऐसे अध्यापकों से अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्राइवेट स्कूलों में ओढ़ लगी हुई है। इन विद्यालयों में उन शिक्षकों के भी बच्चे पढ़ते हैं। जो सरकारी स्कूलों में नौकरी करते हुए प्रतिमाह मोटी रकम सैलरी के रुप में ले रहे हैं। जब वे अपने बच्चों का नाम सरकारी स्कूलों में नहीं लिखवा सके तो दूसरे के बच्चों को कैसे सरकारी विद्यालयों में दाखिला दिला पाएंगे।

सरकारी स्कूलों को प्राइवेट हाथों में है देने की जरूरत
सरकार अधिकांश विभागों को प्राइवेट सेक्टर के हवाले कर दे रही है। लेकिन शिक्षा विभाग को न जाने क्यों प्राइवेट हाथों में नहीं सौंपा जा रहा है। सरकार पहले ही अपेक्षा सरकारी विद्यालयों में काफी सहुलियत प्रदान कर रही है। विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को मोटी वेतन प्रतिमाह दिए जा रहे हैं। 
लेकिन इसके बावजूद भी सरकारी विद्यालयों की दशा बिगड़ती चली जा रही। जिस प्रकार से सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या नगण्य होती चली जा रही है। वह दिन दूर नहीं कि जब सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या एक दम खत्म हो जाएगा और यहां पर पढ़ाने वाले मास्टर बैठे-बैठे हर महीने तनख्वाह लेंगे।
 

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