रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में नाट्य शास्त्र पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी का समापन

नाट्यशास्त्र का विश्व कलाओं पर प्रभाव रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में नाट्य शास्त्र पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी का समापन

Bhaskar Hindi
Update: 2022-09-02 13:43 GMT
रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में नाट्य शास्त्र पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी का समापन

डिजिटल डेस्क, भोपाल।  विश्व रंग 2022 के अंतर्गत रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में ‘नाट्यशास्त्र का विश्व कलाओं पर प्रभाव’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न हुई। इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का संयोजन विश्वविद्यालय के संस्कृत प्राच्य भाषा शिक्षण एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र द्वारा सफलतापूर्वक किया गया। समापन सत्र में अध्यक्ष के रूप में आरएनटीयू के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे, बतौर मुख्य अतिथि संस्कृत साहित्य के अध्येता तथा पूर्व कुलाधिपति डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी, विशिष्ट अतिथि डॉ. भूमिकेश्वर जी विशेष रूप से उपस्थित थे। 

समापन सत्र में मंच का संचालन विश्वविद्यालय के श्री अरुणेश शुक्ल और धन्यवाद ज्ञापन डॉ संजय दुबे ने दिया।

इस संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रातः बतौर वक्ता सारस्वत अतिथि डॉ. आलोक चटर्जी (भोपाल), आत्मीय सानिध्य प्रो. अरुण जैन (बनारस), वक्ता श्री शिवदत्त पांडे (नई दिल्ली) और अध्यक्ष के रुप में प्रो. सनन्दन त्रिपाठी (भोपाल) विशेष रुप से उपस्थित थे। संगोष्ठी के द्वितीय दिवस के शुभारंभ अवसर पर "दक्षिण एशियाई देशों में" विषय पर विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा किए। इस अवसर पर मंच संचालन डॉ संजय दुबे और धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय की प्रो. डॉ उषा वैद्य ने दिया।

द्वितीय दिवस पर दोपहर में एक ही समय में दो अलग-अलग सत्रों में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रथम सत्र में भारतीय रंगमंच विषय और सत्र बी में नाट्यशास्त्र और संगीत विषय पर वक्ताओं ने अपने बहुमूल्य विचार रखे।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ संगीता गुंदेचा ने की वहीं विशिष्ट अतिथि डॉ. आनन्द पांडेय, सारस्वत अतिथि डॉ. देवेन्द्र पाठक, वक्ता डॉ. शुभ्रा वर्मा, श्रीमती स्मिता नायर, श्रीमती श्राबोनी साहा, श्री फैज़न सिद्धीकी, श्री कुलदीप कुमार, डॉ दीपक कुमार थे। इस सत्र में वक्ताओं ने बताया कि‘भारतीय रंगमंच’ भारत की तरह ही विविध छवियों का मिश्रण है जिसमें बहुत सारी रंग परंपराएं मिल कर भारतीय रंगमंच का स्वरूप बनाती है। इसमेंस्थानगत, समयगत, शैलीगत, कथ्यगत विविधता है तो आंतरिक एकता का सूत्र भी है। इस सत्र में मंच का संचालन श्री लक्ष्य अरोरा और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रुचि मिश्रा तिवारी ने किया। वहीं द्वितीय सत्र की अध्यक्षता श्री अविजीत सोलंकी ने की वहीं मुख्य अतिथि डॉ. नवनिहाल गौतम, विशिष्ट अतिथि डॉ. संजय द्विवेदी, सारस्वत अतिथि डॉ. ऋषभ भारद्वाज, वक्ता के रूप में डॉ. विजय यादव, श्री तरुण जलोटा, श्रीमती पूजा पांडे, श्रीमती मधु चतुर्वेदी और श्री हरीश मिश्र थे। इस सत्र में वक्ताओं ने बताया कि नाटक और संगीत का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिसकी चर्चा नाट्यशास्त्र में ना की गयी हो। इसलिए नाट्यशास्त्र का संदर्भ दिए बगैर इन विषयों में कोई भी बात पूरी नहीं होती। नाटकों में गीत और संगीत की स्थिति क्या है और कैसी होनी चाहिए, इसकी बहुत विशद् चर्चा भरत ने अपने नाट्यशास्त्र में की है। संगीत विषय पर नाट्यशास्त्र के छः अध्याय केंद्रित हैं। इसके अलावा अन्य अध्यायों में भी संदर्भानुसार गीत एवं संगीत की चर्चा की गयी है। मंच का संचालन श्री श्याम कुमार और धन्यवाद ज्ञापन श्री गब्बर सिंह एनएसएस के कार्यक्रम अधिकारी आरएनटीयू ने किया। इस दौरान 20 से अधिक शोध पत्र भी प्रस्तुत किए गए।

नाट्य मंचन
नाट्यसार भगवदज्जुकम्

भरतमुनि के नाट्यशास्त्रीय रंग विधान पर केन्द्रित इस नाट्य प्रस्तुति में लोकधर्मी एवं नाट्यधर्मी के अन्तः सम्बन्ध को पिरोने की कोशिश की है। साथ ही आंगिक, वाचिक सात्विक और आहार्य अभिनय के माध्यम से लगभग 7वीं शताब्दी में श्री बोधायन द्वारा रचे गये इस प्रथम प्रहसन को प्रस्तुति हेतु सरल एवं सुबोध भाषाशैली के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है। हम भरतमुनि की संस्कृत नाट्यशास्त्रीय रंग परम्परा को जन-जन तक पहुँचाने तथा देवभाषा संस्कृत के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु दृढ़ संकल्पित हैं। प्रहसन का सार इस प्रकार है -

एक परिव्राजक और उनका शिष्य शाण्डिल्य योगविद्या सम्बन्धित चर्चा करते हुए उद्यान में प्रवेश करते हैं। यम पुरुष सर्प बनकर पुष्पावचय करती हुई बसन्तसेना गणिका के प्राणों का हरण कर लेता है। बसन्तसेना की चेटी शोक संतप्त गणिका की माता को यह समाचार सुनाने जाती है । बसन्तसेना के प्रेम में पागल शाण्डिल्य का विलाप क्रन्दन सुन परिव्राजक योगविद्या से बसन्तसेना के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है। फलतः बसन्तसेना जीवित होकर परिव्राजक के समान व्यवहार करने लगती है। बसन्तसेना की माँ इसे विष का प्रभाव समझती है। उधर भ्रमवश वसन्तसेना नाम की दूसरी स्त्री के प्राण हरने के कारण यमपुरुष को यमराज की फटकार सुननी पड़ती है। वह यमपुरुष लौटकर निर्जीव बसन्तसेना के शरीर को चलता फिरता देख भ्रांत हो जाता है और मृत पड़े - परिव्राजक के शरीर में बसन्तसेना के प्राण डालकर चला जाता है। अब परिव्राजक बसन्तसेना की तरह व्यवहार करने लगता है। अन्त में यम की सहायता से दोनों आत्मायें अपने - अपने शरीर में चली जाती हैं। प्रहसन का सुखान्त होता है।

मंच पर
सूत्रधार व गुरु- प्रो सिद्धार्थ सिंह
विदूष्क व शिष्य- तरुण जलोटा
वसन्तसेना - स्मिता नायर
परिभ्रितिका- श्राबोनी साहा
यमदूत- लक्ष्य अरोड़ा
वैद्य - फैज़ान
माता- डॉ शुभ्रा वर्मा
रामिलक- कुलदीप कुमार, 
जर्जर स्थापित- कुलदीप,श्राबोनी साहा, स्मिता नायर, लक्ष्य अरोड़ा, तरुण जलोटा, फैजान, प्रो. सिद्धार्थ सिंह
बुद्ध भिक्षुक - कुलदीप, श्राबोनी साहा, स्मिता नायर, लक्ष्य अरोड़ा, तरुण जलोटा, फैजान, प्रो. सिद्धार्थ सिंह

मंच परे
मंच प्रबंधक - डॉ. संजय दुबे व विक्रान्त भट्ट 
मंच प्रबंधक सहायक - प्रो. अरुण जैन व डॉ. विजय यादव
मंच सामग्री - प्रो. सिद्धार्थ सिंह व शरद मिश्रा
मंच सामग्री सहायक - तरुण जलोटा व शिवदत्त पांडे
वेशभूषा - स्मिता नायर व श्राबोनी साहा
सहायक - कुलदीप व फैज़ान सिद्धीकी
मुख सज्जा -लक्ष्य अरोड़ा व समूह

मंच व प्रकाश परिकल्पना  श्याम कुमार
ताल संयोजन - मनोज पाटीदार
सह-निर्देशक - श्याम कुमार
संगीत व निर्देशन डॉ. देवेन्द्र पाठक
प्रस्तुति - संस्कृत, प्राच्य भाषा शिक्षण एवं भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र 
सहयोग - टैगोर नाटय विद्यालय और मानविकी एवं उदार कला संकाय 

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