प्रशासन ने नहीं सुनी तो आदिवासियों ने 3 दिन में सूखे तालाब से निकाल लिया पानी
प्रशासन ने नहीं सुनी तो आदिवासियों ने 3 दिन में सूखे तालाब से निकाल लिया पानी
डिजिटल डेस्क, सतना। समूचा जिला जलसंकट से जूझ रहा है। हेण्डपम्प हवा उगलने लगे तो कुंए, तालाब, झरने सूख गए। पानी की एक-एक बूंद के लिए जद्दोजहद हो रही है। भीषण पेयजल संकट के बीच यह कहानी है आदिवासी बाहुल्य मझगवां के किशुनपुर गांव में रहने वाले आदिवासियों के जिद और जूनून की। जब जल आपूर्ति कराने में प्रशासन ने असमर्थता जाहिर की तो 51 आदिवासियों ने 3 दिन में एक सूखे तालाब से अपने लिए पानी का इंतजाम कर लिया। किशुनपुर अकेला गांव नहीं है जहां आदिवासियों ने अपने लिए पानी का खुद इंतजाम किया हो बल्कि झिरिया घाट और पुतरी चुआ में भी गांववालों ने पानी की स्वयं व्यवस्था की।
मझगवां के 10 गांवों में भीषण जलसंकट
जलस्तर रसातल में जाने के बाद मझगवां विकासखण्ड के 10 गांवों में भीषण जलसंकट पैदा हो गया। पानी न होने से यहां का जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया। आदिवासी गांवों किशुनपुर, बनहरी, झिरियाघाट, पुतरिचुआ, पटनी, पड़ो, किरहाई पोखरी, बरहा मवान, गहिरा गड़ीघाट, रामनगर खोखला जैसे गांवों में पेयजल संकट ने मानो गंभीर रूप धारण कर लिया है। आदिवासी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। ऐसी स्थिति में गांव के लोग दूरदराज के गांवों में जाकर बैलगाड़ी और साइकिलों में प्लास्टिक के डिब्बों को रखकर पानी लाने के लिए 3 से 4 किलोमीटर दूर पहाड़ के नीचे झरनों या अन्य किसी जल श्रोतों तक जाना पड़ता है। इन गांवों में नल-जल योजना भी निष्प्रभावी रही। ग्राम पंचायतों के जरिए टैंकरों में मिलने वाला पानी भी इस दफा बंद है।
हर घर से 1 सदस्य, 3 दिन का वक्त
प्राकृतिक जलस्त्रोतों को साफ करने के लिए कई आदिवासी सामने आए मगर वो इतने सक्षम नहीं थे कि अपनी दम पर इस काम को अंजाम तक पहुंचा सके। इसके लिए आदिवासी अधिकार मंच ने बीड़ा उठाया। पेयजल संकट से निपटने के लिए परम्परागत रूप से बने तालाब, कुण्ड व कुओं की खुदाई और सफाई का कार्य करने की रणनीति बनाई गई। और इस कार्य को करने के लिए गांव के हर घर से 1 सदस्य से 3 दिन का श्रमदान कराया गया। आदिवासियों को मोटिवेट करने में आनंद, शिव कैलाश, रामाश्रय, अवनीश, महिमा, पूजा, रमेश ने मुख्य भूमिका निभाई।
कमर तक भर गया पानी
अभियान की शुरुआत किशुनपुर से 1 जून को की गई। 51 आदिवासियों ने 3 दिनों में सूखे तालाब के बीचों-बीच 20 फीट चौड़ा, 20 फीट लम्बा और 10 फीट गहरा गड्ढा खोदकर पानी निकाल लिया। वर्तमान समय में इसमें कमर तक पानी भर गया। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। झिरिया घाट के लोगों ने झिरियाघाट तालाब में गड्ढा खोदना शुरू कर दिया जबकि पुतरीचुआ में खेरमाई कुण्ड को 12 लोगों ने 3 दिन तक कचरा निकालते रहे। मेहनत का फल पानी के एवज में मिला। पटनी गांव के 40 लोगों ने ड्राई हो चुके 25 गहरे कुएं का कचरा निकालकर उसे भी पानीदार बना दिया।