जमींन में सोने मजबूर आदिवासी महिला की सर्पदंश से मौत

मोहन्द्रा जमींन में सोने मजबूर आदिवासी महिला की सर्पदंश से मौत

Bhaskar Hindi
Update: 2022-07-06 11:22 GMT
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डिजिटल डेस्क, मोहन्द्रा। गरीब आदिवासी समाज के हालातों को सुधारने के लिये सरकारों द्वारा बड़ी-बड़ी योजनाओं को तैयार कर उनके जीवन के स्तर के ऊँचा उठाने के लिये दावे किये जा रहे है परंतु जो सरकारी दावे है जमींनी वास्तविकता से काफी दूर है। रोटी,कपड़ा मकान शिक्षा जैसी व्यवस्थाओं को लेकर यह समाज के दयनीय दौर से गुजर रहा है। गरीबी की वजह से आदिवासी समाज कितना मजबूर है इसका घटनाक्रम मोहन्द्रा कस्बा स्थित संजय नगर कालोनी में गत दिवस तब सामने आया जहां पर एक आदिवासी महिला की सांप काटने से मौत हो गई। आदिवासी गरीब महिला फूल कुंवर पति सुरेंद्र आदिवासी उम्र 28 वर्ष के घर में लेटने के लिए चारपाई तक की व्यवस्था नहीं थी जिसकी वजह से वह हर दिन जमीन पर लेटने के लिए मजबूर थी ओर इसी मजबूरी में जह वह रात में जमीन पर लेटी थी तो सर्प ने उसे काट लिया और असमय मौत हो गई। इसके बाद मोहन्द्रा कस्बा स्थित संजय नगर कालोनी में आदिवासी जिस दयनीय जिंदगी से जूझ रहे हैं उसकी चिंतनीय तस्वीर देखी जा सकती है। जानकारी के अनुसार गांव के बाहरी छोर में ३५ वर्ष पूर्व तत्कालीन सरपंच कैलाश अग्रवाल द्वारा बस्ती को बसाया गया था जहां पर आज भी बुनियादी सुविधायें नहीं हैं। घर के बिल्कुल करीब हार, खेत का नाला लगा हुआ है। जिसके चलते बरसात के मौसम में कीडे-मकोडे तथा विषधर जीव-जंतुओं की मौजूदगी यहां पर हमेशा देखी जाती है। इसके बावजूद गरीब आदिवासी परिवारों की बुनियादी जरूरतों और सुरक्षा को लेकर जिम्मेदारों द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। गरीब परिवारों की स्थिति यह है कि चारपाई तक कई लोगों के पास नहीं हैं ऐसे में खुले एवं गंदे क्षेत्र से आने वाले जीव-जंतु उनकी जिंदगी के लिए खतरा बने हुए हैं। इस समाचार पत्र द्वारा बस्ती पहुंचकर कुछ आदिवासियों की दयनीय स्थिति देखी गई जोकि शासन-प्रशासन की योजनाओं और व्यवस्थाओं पर बडा सवाल खडा कर रही है। मंगलवार सुबह सांप काटने से मृतिका फूलकुंवर की सास फूलाबाई आदिवासी ने जमीन में सोने को अपनी मजबूरी बताया। उसने बताया कि लाइट नहीं थी तो बहू  दरवाजे खोल कर घर की देहरी में सो गई वही यह घटना हो गई।  
आदिवासी बेवा महिला की नहीं लगी पेंशन बच्चे स्कूल से दूर

मोहल्ले में रहने वाली विमला बाई आदिवासी के पति की मौत बीमारी के बाद करीब 2 माह पहले हो गई थी। विमला बाई ने बताया स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण पति को नियमित मजदूरी नहीं मिलती थी वह कभी कभार काम करती है कभी लकडय़िां बेंचकर अपना गुजारा कर रही है। तीन बच्चे हैं तीनों स्कूल नहीं जाते क्योंकि स्कूल की फीस भरने के लिए रूपए नहीं हैं। तीनों बच्चों का आधार कार्ड नहीं बना है इसलिए उनका प्रवेश नहीं हो पा रहा है। पति की मौत के बाद आदिवासी विधवा को कोई सरकारी सहायता नहीं मिली दो माह बाद भी महिला विधवा पेंशन से वंचित है। विमला बाई के पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड भी नहीं है। 
अधूरा प्रधानमंत्री आवास घर में सोने के लिए नहीं चारपाई 

ग्राम पंचायत मोहन्द्रा में पंच रह चुकी कमलाबाई आदिवासी की कुटीर स्वीकृत हुई थी। 115000 रुपये अभी मिले है कुछ घर के भी खर्च हुए फिर भी कमरे की छपाई व फर्श अधूरा है। घर में सोने के लिए चारपाई नहीं है कमलाबाई की बेटी हुक्कू बाई आदिवासी ने बताया कि भगवान भरोसे सोते हैं। साफ -सफाई रखते हैं जिससे कीड़े मकोड़े नहीं आए। उसने कहा कि मेरे बगल में सांप काटने की घटना हुई तो अब डर लगता है। 
नीचे ईंट लगाकर फर्शी पत्थर को बनाई सोने के लिए जगह 
कंती आदिवासी ने इस समाचार पत्र से बात करते हुए कहा कि उनके घर पलंग नहीं है। कल की घटना के बाद पूरे मोहल्ले के लोग डरे हुए हैं। इसलिए फर्शी पत्थर के नीचे ईंटे लगाकर उसे थोड़ा ऊपर किया और उसी में सो रहे हैं। कंती बाई ने बताया कि मोहल्ले में ज्यादातर लोग जमीन में सोते हैं क्योंकि चारपाई खरीदने के लिए रूपए ही नहीं है।

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