घरों में नहीं जले चूल्हे, द्वार पर बैठकर अपनों की राह तकते रहे परिजन

घरों में नहीं जले चूल्हे, द्वार पर बैठकर अपनों की राह तकते रहे परिजन

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-27 16:36 GMT
घरों में नहीं जले चूल्हे, द्वार पर बैठकर अपनों की राह तकते रहे परिजन


डिजिटल डेस्क कटनी। देवास रोड पर दताना गांव के समीप शनिवार सुबह चार बजे ट्राले  व जीप में भिड़ंत से कटनी के पांच मजदूरों की मौत पर बरही और बड़वारा के चारो गांव के अधिकांश घरों में चूल्हे नहीं जले। जगह-जगह ग्रामीण इस अनहोनी की चर्चा करते हुए आंखो से आंसू बहाते हुए यही कह रहे थे कि भगवान ऐसा दिन किसी को न दिखाए। बड़वारा तहसील के रमपुरी में तो मृतक के माता-पिता इस घटना से अंजान रहे। सड़क दुर्घटना की जानकारी लगने पर कभी द्वार में बैठकर तो कभी घर के अंदर आंगन में अपने जिगर के टुकड़े का इंतजार करते रहे। लुरमी में तो राजेश विश्वकर्मा के चारों बच्चे अपने पापा के लौटने का इंतजार उसी तरह से करते रहे। जिस तरह से सामान्य दिनों में करते थे। उबरा में तो मजदूरों की मौत से तो चारों तरफ सन्नाटा पसरा रहा। अनहोनी की जानकारी लगने पर परिजन अपने भाग्य को कोसते हुए माथा पीटते रहे।
रविवार देर शाम जैसे ही अपनों का शव एम्बुलेंस में पहुंचा। ग्रामीण दौड़कर एम्बुलेंस के पास पहुंचे। द्वार पर एम्बुलेंस के सायरन की आवाज सुनते ही परिजन रोते-बिलखते वाहन के पास पहुंचे। अपनों का शव उतरते देख परिजन बेहोश होकर गिर पड़े। अयोध्या से लौटते ही पूछा कहां है सोमचंद खिरहनी गांव से सबसे अधिक मजदूर गए हुए थे। दोपहर एक बजे जैसे ही अयोध्या से मृतक सोमचंद के बाबा कृपाली पहुंचे। गेट पर पहुंचते ही सबसे पहले सोमचंद को पूछे। आसपास की महिलाओं ने ढांढ़स बंधाते हुए कहा कि उनके सोमचंद को कुछ नहीं हुआ है। वह वाहन से लौट रहा है। घर के अंदर मां को रिश्तेदार ढाढ़स बंधा रहे थे तो पुराने घर में मृतक के पिता भी भगवान को याद करते हुए बस यही मिन्नतें मांग रहे थे कि एक बार उनके दोनो बेटे सुरक्षित घर लौट आंए। इसके बाद वे दोबारा बाहर नहीं भेजेंगे।
ससुर के बाद पति का भी उठा सिर से साया-
लुरमी गांव में महिला अंजू बाई के पास तो वह कंधा भी नहीं रहा। जो उसके चारों बच्चे का बोझ उठा सका। करीब दो वर्ष पहले ससुर नत्थुलाल अपने परिवार को अलविदा कह चुके थे। सिर्फ पति राजेश विश्वकर्मा का ही सहारा रहा। भगवान ने उस सहारे को भी छीन लिया। चार बच्चों में से एक बच्ची तो मामा के घर गई थी। तीन बच्चे अपने पापा के लौटने का इंतजार कर रहे थे। प्रिंस विश्वकर्मा,आशीष और बेटी संगम यहां पर घर में आने-जाने वालों को देख रहे थे। जैसे ही कोई वाहन रास्ते से गुजरता बच्चे उसकी आवज सुनकर विचलित हो जाते।
गेट में बैठकर सभी को देखते रहे पिता-
उबरा गांव में तो गमों का पहाड़ टूट पड़ा। यहां पर दो-दो युवक हादसे में परिजनों को अलविदा कह दिए। मृतक गगन विश्ववकर्मा के पिता गोंविंद गेट में बैठकर आने-जाने वालों को देख रहे थे। जवान बेटे की मौत से सदमें में पिता के मुंह से बोली नहीं निकल पा रही थी। ग्रामीण और रिश्तेदार बैठकर पिता को ढाढ़स बंधाने का जरुर काम करते रहे। इसके बावजूद गम ऐसा रहा कि  एक तरफ  पिता को ढाढ़स बंधाते तो दूसरी तरफ रिश्तेदार अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे। जनपद सदस्य तीरथ प्रसाद पटेल भी यहां पर मौजूद रहकर वाहन के आने की जानकारी देते रहे।
गर्भवती पत्नी के लिए बनवा रहा था कार्ड-
दो माह बाद घर में नया मेहमान आने वाला रहा। दादा-दादी के साथ माता-पिता ने जो सपना संजोया था। इस हादसे में उबरा निवासी विमल चक्रवर्ती की मौत से यह सपना टूट गया। पिता जोधा चक्रवर्ती ने आंखों में आंसू लेकर रोते-रोते कहा कि उनके बेटे को क्या पता रहा कि जिस नन्हें मेहमान की आने की तैयारी करते हुए संनिर्माण कर्मकार मंडल के तहत बेटा कार्ड बनवा रहा है। एक-दूसरे का मुंह वे नहीं देख सकेंगे।

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