केन्द्रों के राष्ट्रीय सम्मेलन का दूसरा दिन गीत और गजल की शुहानी शाम के रहा नाम
वनमाली सृजन केन्द्रों के राष्ट्रीय सम्मेलन का दूसरा दिन गीत और गजल की शुहानी शाम के रहा नाम
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मंगलवार को मिसरोद स्थित स्कोप कैम्पस के सभागार की शाम व्यंग्य रचना पाठ और गीत-गजलों से गुलजार रही। यह आयोजन रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजन वनमाली सृजन केंद्र के राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन हुआ। इसमें सबसे पहले व्यंग्य पाठ का आयोजन हुआ। हुआ। इसकी अध्यक्षता पद्मश्री ज्ञान चतुर्वेदी ने की है। इस अवसर पर संतोष चौबे जी ने कहा कि इस कैम्पस में साहित्य एवं कला के कार्यक्रमों की शुरुआत है। उन्होंने विश्वरंग को लेकर और वनमाली सृजन पीठ और सृजन केंद्रों के विस्तार को लेकर भी बात की। व्यंग्यकार शांतिलाल जैन ने अपनी रचना पाठ में अधिकारी और कर्मचारी के बीच के फासले को अपने रचना पाठ में रेखांकित किया। साधना बलबटे जी ने अपनी व्यंग्य रचना में मृत्यु के बाद की स्थिति को प्रस्तुत किया। वहीं, घनश्याम मैथिल “अमृत” ने अपने व्यंग्यपाठ में गोबर के ऊपर व्यंग्य सुनाया और कार्यक्रम का संचालन भी किया। इस अवसर पर अन्य सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार कैलाश मंडलेकर (खंडवा), गोकुल सोनी, मलय जैन, कुमार सुरेश एवं विजी श्रीवास्तव द्वारा भी व्यंग्य पाठ किया जाएगा।
मलय जैन के व्यंग्य का एक हिस्सा है-
रेल किसी रेल की तरह आती है
रेल तो आपने देखी होगी। रेल रोको आंदोलन भी देखा होगा। रेल के भीतर बैठे बैठे आंदोलन वालों को कोसा भी होगा कि स्सालों को कोई काम नहीं। ज़रा कुछ हुआ और लेट गए पटरियों पर। रोकने लग गए रेल।
लेकिन भाई साहब , क्या आपने एक कार्यकर्ता की नजर से कभी सोचा ? कभी महसूस किया कितना कठिन होता है रेल रोकना।
कार्यकर्ता से पूछिए रेल रोकने में किस रेलम पेल से जूझना पड़ता है।
आप कहेंगे , उसमें क्या है ? प्लेटफार्म पर जाओ और रोक लो रेल। मगर भइया , आप प्लेटफार्म पर जाकर रेल नहीं रोक सकते। वहां तो रेल वैसे ही रुकी रहती है।
गीत और गजल रचना पाठ
वरिष्ठ कवि एवं वनमाली सृजन पीठ, दिल्ली के अध्यक्ष लीलाधर मंडलोई के मुख्य आतिथ्य एवं वरिष्ठ गीतकार डॉ. राम वल्लभ आचार्य की अध्यक्षता में देश के महत्वपूर्ण गीतकार एवं ग़ज़लकार महेश कटारे "सुगम", महेश अग्रवाल, इकबाल मसूद, ऋषि श्रृंगारी, ममता बाजपेयी, किशन तिवारी, अशोक निर्मल, अनु सपन, रमेश नंद, विजय तिवारी,बद्र वास्ती, मोहन सगोरिया, मनोज जैन "मधुर", भावेश दिलशाद, बलराम धाकड़ के गीतों और ग़ज़लों से गुलजार रही राष्ट्रीय सम्मेलन की सुहानी शाम।
इस दौरान विजय तिवारी ने अपने शेर में कहा कि –
खेल खिलोने लेजा बाबू तेरा मुन्ना खेलेगा
तेरा मुन्ना खेलेगा तो मेरा मुन्ना खालेगा
उन्होंने अगले शेर में कहा–
छाँव देके भी झुका होना
पेड़ से कोई सिखे बड़ा होना
रमेश नंद ने दर्द को कुछ यूँ बयां किया–
पिड़ाएँ जितनी भी मिली अकेले ही सहता रहा हूँ
सुबह हँसने के लिए रात भर रोता रहा हूँ
तुमने कल रात भी खाना यूं ही बरबाद किया
मजदूर की थाली में खाना कम है।
युवा गजलकार बलराम धाकड़ के शेर है।
हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद।
चींटियां उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद।।
वक्त की शतरंज पर क़िस्मत का एक मुहरा हूं मैं।
ज़िंदगी इतना भी खुश मत हो, अभी ज़िंदा हूं मैं।।
मैं खुदा की हाज़िरी में भी न बदलूंगा बयान,
तुझको हाज़िर और नाजिर जानकर कहता हूं मैं।।