शुक्र है! 12 वर्ष पहले की सडक़ दे रही साथ, नई सीसी 2 दो वर्ष में ही उधड़ी
कटनी शुक्र है! 12 वर्ष पहले की सडक़ दे रही साथ, नई सीसी 2 दो वर्ष में ही उधड़ी
डिजिटल डेस्क, कटनी। शहर के अंदर शासकीय खजाने की राशि को किस तरह से ठिकाना लगाया जा रहा है।इसकी बानगी माई नदी से लेकर जुहिला रपटा तक मुख्यमंत्री अधोसंरचना के तहत 8 करोड़ रुपए के कार्य से अंदाजा लगाया जा सकता है। नगर निगम के एसडीओ और केदार ने इस तरह से सडक़ चौड़ीकरण में कमीशन का मसाला लगाया कि एक वर्ष अंदर ही वाहनों के चलने से गिट्टियां निकल रही है। मजे की बात यह है कि करीब 4 किलोमीटर में 12 वर्ष पहले बनाई गई सीसी सडक़ तो राहगीरों के लिए आरामदायक है, लेकिन 5 करोड़ की नई सीसी सडक़ 2 वर्ष में ही उधड़ गई है। जिसके चलते नई सडक़ से बचते-बचाते हुए लोग पुरानी सडक़ों पर ही चलना पसंद कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस सडक़ के बदहाली की जानकारी ईई राकेश शर्मा और सहायक यंत्री सुनील सिंह को भी है। इसके बावजूद दोनों अफसर चुप्पी साधे हुए हैं।
एमपीआरडीसी ने पहले बनाई थी सडक़
कटनी-बरही-पनपथा मार्ग का निर्माण एमपीआरडीसी संभाग रीवा ने करीब 12 वर्ष पहले किया था। सीसी सडक़ का निर्माण कंपनी ने पहले माई नदी तक ही किया था। बाद में इस मार्ग के आगे रहने वाले लोगों ने आपत्ति जताई कि यह पूरा-पूरा का मार्ग ही बरही मार्ग कहलाता है। ऐसे में बीच में कार्य डऩा समझ से परे है। इसके बाद भी अधिकारी नियमों का हवाला देते हुए आगे तक सडक़ बनाने को तैयार नहीं रहे। जिसके बाद कुछ लोग न्यायालय का दरवाजा खटखटाए थे। जहां से उन्हें राहत मिली थी।
घायल हो रहे लोग, तय नहीं जिम्मेदारी
घटिया कार्य के चलते सडक़ पर चलने वाले लोग घायल हो रहे हैं। इसके बावजूद अभी तक नगर निगम के प्रशासक ने इस गुणवत्ताविहीन कार्य के लिए किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की है। छह माह पहले इसकी जानकारी ईई राकेश शर्मा को भी दी गई थी। जिन्होंने कहा था कि वे मौके पर जाकर सडक़ का निरीक्षण करेंगे, लेकिन छह माह के अंतराल में वे कार्यालय से चंद कदमों की दूरी का सफर तय नहीं कर सके हैं, जबकि नगर निगम ने इन्हें वाहन भी उपलब्ध कराया है।
कमीशन की कहानी पर एक नजर
मुख्यमंत्री अधोसंरचना के तहत 12 करोड़ रुपए के विकास कार्यों की बर्बादी लिखने की कहानी तत्कालीन जिम्मेदारों ने पूरी कर ली थी। आलम यह रहा कि एक तरफ ठेकेदार घटिया कार्य करता रहा। दूसरी तरफ नगर निगम के तत्कालीन अधिकारी सुनील सिंह अभयदान देते रहे। पहली बारिश में ही जुहिला रपटा के समीप नाली जमींदोज हो गई थी। इसके बावजूद किसी तरह से कसावट नहीं की गई। यह बात अलग रही कि बाद में ठेकेदार और सहायक यंत्री के बीच विवाद भी हुआ था। यह मामला नगर निगम के अंदर ही दबकर रह गया। बाद में सहायक यंत्री को यहां से अलग कर दिया गया था।