एक माह के मासूम को थर्ड जेंडर बता खुद से दूर कर गए माता-पिता
एक माह के मासूम को थर्ड जेंडर बता खुद से दूर कर गए माता-पिता
डिजिटल डेस्क, कटनी। मासूम ने मां की गोंद में बमुश्किल एक माह बिताए थे कि उसे मां-बाप ने ही खुद से दूर कर दिया। क्योंकि उनकी निगाह में मासूम न तो लड़का है न लड़की। लिहाजा, तहजीब की राजधानी लखनऊ से चार सौ किमी. दूर मध्यप्रदेश के कटनी में किन्नरों को मंगलवार को सौंप गए। दुनियादारी से अनजान मासूम किन्नर की गोंद में पड़ा है, लेकिन उसकी सांसें मां की खुशबू को ढूंढ रही हैं, जिसके पेट में वह नौ माह पला था। फिर एक माह तक किलकारियां भरते और मुस्कुराते हुए बीते थे। किन्नर समाज का अंग नहीं है इस सोच और कुप्रथा को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। आखिर किसी मासूम को किन्नर बता कर क्या उसे मां-बाप उसके अधिकारों से वंचित कर सकते हैं।
यह बच्चे के साथ क्रूरता है
किन्नरों को समाज की मुख्य धारा से सरकार जोड़ रही है। ताकि, वह खुद को अलग न मानें। इसके लिए उन्हें वोट के अधिकार के साथ जेंडर लिखने का भी स्पेस दिया गया है। इसकी वजह है कि आज थर्ड जेंडर कोई समस्या नहीं रह गई है। क्योंकि मेडिकल साइंस इतना डेवलप हो चुकी है कि संभव होने पर उसका लिंग सही किया जा सकता है। जन्मजात दोष के लिए किसी बच्चे को समाज से अलग करना कानूनन भी जुर्म है। यह कहना है शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ.समीर चौधरी का। किसी बच्चे में यदि थर्ड जेंडर के लक्षण दिखते हैं, तो उसका इलाज हो सकता है।
अधिनियम में हर बच्चा एक समान
कानून गर्भ में पल रहे शिशु के साथ नवजात को भी अधिकार दिए हुए है। किसी बच्चे को किन्नर कहकर खुद माता-पिता भी मां की ममता से उसे वंचित नहीं कर सकते हैं। महिला सशक्तिकरण अधिकारी सुश्री वनश्री कुर्वेती का कहना है कि किशोर न्याय अधिनियम में ऐसा कोई वर्गीकरण नहीं है कि किसी बच्चे में थर्ड जेंडर के लक्षण हैं, तो उसे मां-बाप किन्नर समाज को सौंप कर खुद से दूर कर दें। हालांकि, ऐसे मामलों में कार्रवाई का अधिकार पुलिस को है। जहां तक महिला बाल विकास की योजनाओं का सवाल है तो वह सभी बच्चों पर एक समान लागू होती हैं। सामाजिक न्याय विभाग के प्रभारी उप संचालक दीपक सिंह के अनुसार किशोर न्याय (बालकों संरक्षण अधिनियम) 2000 में नाबालिग बच्चों के संरक्षण के लिए विस्तृत दिशा निर्देश दिए गए हैं। इस अधिनियम में थर्ड जेंडर किशोर के लिए क्या प्रावधान है यह अधिनियम को विस्तार से अध्ययन करने के बाद ही बताया जा सकता है।
कानून में स्पष्ट प्रावधान नहीं
अधिवक्ता ओमकार गौतम के अनुसार किन्नरों को बच्चा प्रदान करने कोई स्पष्ट विधिक प्रावधान नहीं होने से मामला पेंचीदा हो जाता है। सामान्य बच्चों के दत्तक ग्रहण संबंधी स्पष्ट प्रावधान है और इसके लिए एसडीएम सक्षम प्राधिकारी है। सबसे बड़ी पेंचीदगी यह है कि कौन इस बात की पुष्टि करेगा कि बच्चा किन्नर है? यदि है तो महिला किन्नर है या पुरुष किन्नर है? अभी वैधानिक रूप से किन्नरों को केवल अन्य की श्रेणी में रखा गया है।
इनका कहना है-
यह मामले आपके माध्यम से संज्ञान में आया है, अभी मैं मुख्यालय से बाहर हूं बुधवार को इसे दिखवाता हूं।- ललित कुमार शाक्यवार पुलिस अधीक्षक कटनी