मेढौली के विस्थापितों का फूटा गुस्सा, बंद कर दी जयंत खदान

 मेढौली के विस्थापितों का फूटा गुस्सा, बंद कर दी जयंत खदान

Bhaskar Hindi
Update: 2020-11-17 13:19 GMT
 मेढौली के विस्थापितों का फूटा गुस्सा, बंद कर दी जयंत खदान

-घंटों चली बहस तो निरूत्तर हो गए महाप्रबंधक, खदान रोड बनी छावनी
-सैकड़ों विस्थापित परिवार सहित पहुंचे, मुआवजा-विस्थापन में लगाया अनियमितता का आरोप
डिजिटल डेस्क सिंगरौली (मोरवा)
। 10 साल से विस्थापन, 3 वर्षों से मुआवजा वितरण में आ रही दुश्वारियों का दंश झेल रहे मेढौली केे विस्थापितों ने सोमवार को जयंत खदान का कामकाज ठप करा दिया। सैकड़ों की संख्या में पूरे परिवार के साथ पहुंचे विस्थापितों ने समस्याओं का समाधान होने तक खदान बंद रखने की चेतावनी दे दी। खदान पर सैकड़ों विस्थापित सिंगरौली विधायक रामलल्लू वैश्य के साथ पहुंचे और खदान रोड पर ही दरी डालकर धरना दे दिया। हालात नाजुक देखते हुए जयंत परियोजना के महाप्रबंधक आरबी प्रसाद अपनी आर एंड आर टीम के साथ मेढौली के खदान क्षेत्र में पहुंचे। जहां पर विस्थापितों ने उनसे सवाल पर सवाल दागे विस्थापितों के सवालों पर महाप्रबंधक श्री प्रसाद बार बार निरूत्तर होते रहे। एनसीएल बोर्ड पर पास हुए नियमों अथवा किसी सवाल का जवाब जानकारी करके आने के बाद ही बता पाने की स्थिति जतायी। विस्थापितों का कहना था कि समस्यागत मुद्दों को लिखकर 20 दिन पहले 16 नवम्बर तक समाधान किये जाने की मांग की गई थी। यह भी कहा गया था कि यदि जयंत प्रबंधन समाधान करने में अक्षम रहा तो जयंत खदान को मेढौली के विस्थापितों के द्वारा बंद कर दिया जायेगा। घंटों तक बहस के बाद भी हल न निकलता देख जिला प्रशासन के प्रतिनिधि के रूप में पहुंची नायब तहसीलदार जान्हवी शुक्ला, हल्का पटवारी गोविंद चौरसिया और पुलिस प्रशासन से सीएसपी देवेश पाठक व मोरवा एसडीओपी राजीव पाठक के बीच विस्थापितों ने अपने तर्क रखे। 
अपनी एसओपी तैयार की
विस्थापितों को कहना था कि एनसीएल प्रबंधन के द्वारा सीबीएक्ट और लार एक्ट के प्रावधानों से हटकर अपनी एसओपी तैयार की जाती है। जिसमें विस्थापितों को नोटरी शपथ-पत्र देने के लिए बाध्य किया जाता है। उसमें ऐसे प्रावधान रखे गये हंै कि उन्हें मुआवजा लेने के साथ बतौर गारंटर एनसीएल का कर्मचारी लाना अनिवार्य होगा। साथ ही बिना किसी आपत्ति के मुआवजा लिया जायेगा और मुआवजे की 60 प्रतिशत राशि पहले और 40 प्रतिशत रकम तब दी जायेगी, जब विस्थापित अपना घर स्वयं अपने हाथों से गिराकर वीडियो बना कर लायेगा। 
बाध्यकारी नियम लागू कर रहे
विस्थापितों का कहना था कि विस्थापितों को स्वयं घर गिराने के बाद मुआवजा दिया जायेगा, ऐसा किसी भी नियम में नहीं लिखा हुआ है। इस प्रकार के बाध्यकारी नियम एनसीएल के द्वारा बनाए गये हैं जिसका इम्प्लीमेंटेेंशन जयंत परियोजना प्रबंधन जबरन कराना चाहती है जो किसी भी परिस्थिति में विस्थापितों के माकूल नही हैं। सायंकाल तक चले धरना प्रदर्शन के बीच एसडीएम सिंगरौली ऋषि पवार भी पहुंचे और वास्तुस्थिति की जानकारी ली। इस दौरान मेढौली के विस्थापित मंशाराम वैश्य, केवलनाथ वैश्य, मनोज प्रताप सिंह, आरपी सिंह, सतेन्द्र साहू, प्रयाग लाल बैश्य, राजेश्वर वैश्य, एससी बाजपेयी, अनिल द्विवेदी, कुंदन पांडेय, सरोज दुबे आदि मौजूद थे। 
सवालों में घिरे महाप्रबंधक
विस्थापितों के द्वारा ही नहीं बल्कि जिला प्रशासन के प्रतिनिधि के रूप में पहुंची नायब तहसीलदार जान्हवी शुक्ला ने भी महाप्र्रबंधक से विस्थापितों के द्वारा लिखित रूप से दिये गये सवालों का जवाब जानने की कोशिश की। एसडीओपी मोरवा राजीव पाठक ने भी विस्थापितों की समस्याओं का समाधान कर आंदोलन को समाप्त कराने के लिए आग्रह किया। लेकिन सवालों में घिरे महाप्रबंधक श्री प्रसाद ने किसी भी सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझा। विस्थापितों ने आक्रोशित होते हुए कहाकि एक बार फिर उन्हें हल्के में लिया गया और दिये गये मांग पत्र के जायज सवालों का जबाव न दिये जाने के कारण ही विस्थापितों में आक्रोश है।
गणना पत्रक बना मुश्किल
विस्थापित धरना प्रदर्शन करने के लिए पूरी तैयारी के साथ पहुंचे थे। उन्होंने मांग की कि जिस प्रकार रेलवे और दूसरी निजी कम्पनियां भू-अर्जन कर रही हैं, उनके द्वारा एक गणना पत्रक दिया जाता है। जिस पर उनकी भूमि मकान और परिसम्पतियों का मूल्य अलग अलग दर्शाया जाता है। जिसे विस्थापित का अवार्ड भी कहते हैं। जयंत परियोजना के द्वारा नहीं दिया जा रहा है। जिससे वे अपनी सम्पत्तियों के मूल्यांकन का आंकलन नहीं कर पा रहे हैं। महाप्रबंधक श्री प्रसाद का कहना था कि गणना पत्रक बनकर रखा हुआ है, कल ही वितरित करा दिया जायेगा। 
 

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