लाॅक डाउन : जरूरतमंदों की मदद के लिए मील पत्थर साबित हो रहा गुरू का लंगर
लाॅक डाउन : जरूरतमंदों की मदद के लिए मील पत्थर साबित हो रहा गुरू का लंगर
डिजिटल डेस्क, इटारसी। एक तरफ जहां दुनिया कोरोना जैसे गंभीर संक्रमण के खिलाफ एक जुट होकर लड़ाई लड़ रही है। जहां दुनियाभर में खालसा एड सेवा की मिसाल बन गया है, वहीं प्रदेश के सबसे बड़े जंक्शन में सचखंड लंगर सेवा समिति जरूरतमंदों की मदद में मील पत्थर साबित हो रही है। खास बात है कि संस्था से जुड़े युवाओं ने कोई पहली बार मदद का हाथ नहीं बढ़ाया, बल्कि इससे पहले भी जब होशंगाबाद जिले में बाढ़ जैसी स्थिति बनी, यां कोई आपदा आई, युवा तुरंत लंगर लेकर पहुंचे। सेवा समिति ट्रेन में लंगर की सेवा करती है, लेकिन लॉकडाउन के कारण अब यही भोजन सीधा जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा रहा है।
समिति के वरिष्ठ सदस्य जुझार सिंह का कहना है कि लंगर सभी लोगों के लिए होता है, चाहे वे सिख हो या नहीं। सिख धर्म की प्रमुख शिक्षा में "वंड छको" शब्द का खासा महत्व है। जिसका अर्थ है, मिल बांट कर खाओ। लंगर इसी का व्यवहारिक स्वरूप है। जोगिंदर सिंह, राजन सिंह, सुरजीत सिंह लोहिया, बलजीत सिंह सलूजा, शुभम राजपाल, गोगी सेठी, दयाल सिंह, पप्पू अरोड़ा, सुरिंदर सिंह, राज, राहुल काकड़े, उसमेघ सिंह, प्रभजोत सिंह,
रविंदर सिंह और साथी सेवा भावना के साथ जुटे हैं।
लंगर की सेवा के लिए आटा गूंथने की मशीन ली गई। लंगर बनाने के लिए बड़े बर्तन और चूल्हा, जिसके लिए स्थानीय सहियोगियों और रिश्तेदारों ने भी मदद की थी। शुरु में गंगानगर नांदेड़ सचखंड एक्सप्रैस स्पेशल चलती थी, जब हजारों यात्रियों के लिए खाना बनकर जाता था। इसके बाद जब-जब नांदेड़ साहब दर्शन के लिए स्पेशल ट्रेन चलती तो दाल, सब्जी, चावल, रोटी तैयार कर युवा स्टेशन पर पहुंच जाते।
युवा सदस्य कमलदीप सिंह ने बताया कि लंगर की शुरुआत गुरु नानक पात्शाह ने की थी, मकसद एक ही था कोई भूखा ना रहे, पात्शाह ने उस वक्त 20 रुपए खर्च कर भूखों का पेट भरा था। जिसके ब्याज मात्र से ही आज दुनियाभर के सिख लंगर का इतना बड़ा खर्च उठा रहे हैं। कमलदीप सिंह ने अपील की है कि जरूरी न हो तो घर से बाहर न निकलें, अपना ख्याल रखें।
संस्था के जत्थेदार और सेवक सुखजिन्दर सिंह बिन्द्रा ने बताया कि लंगर बनाने में हर माह सवा लाख से ज्यादा का खर्च आता है, कई बार आर्थिक तंगी भी महसूस हुई, इस दौरान जेवर तक बेच दिए, लेकिन लंगर में किसी तरह की कोई कमी नहीं आने दी। बिन्द्रा ने कहा कि लंगर सेवा उनके लिए एक संकल्प है, जो गुरु दशमेश पिता के आशिर्वाद से प्राप्त हुआ है और वो वाहेगुरु से मिली सेवा तन-मन-धन से करना चाहते हैं, हालांकि इस काम में स्थानीय सिख बंधुओं का भी साथ मिलता रहा है।
सुखजिन्दर सिंह बिन्द्रा ने बताया कि लंगर की सेवा शुरु हुए, 13 बरस से ज्यादा का वक्त बीत गया। इस दौरान कई तरह की अड़चने और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सुखजिन्दर सिंह की गैरमौजूदगी में कई बार उनका परिवार सेवा में जुट जाता। धीरे-धीरे लोग साथ जुटने शुरु हुए और कारवां बनता गया। आज समिति में 50 से ज्यादा युवा शामिल हैं, जो कांधे से कांधा मिलाकर सेवा कर रहे हैं।
लंगर के अलावा युवा लगातार सामाजिक जाग्रती के लिए आहवान करते रहे हैं। जब भी जरूरत पड़ी बुराइयों के खिलाफ आवाज बुलंद करते। इस बार ये कोरोना के खिलाफ लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग की अपील कर रहे हैं। ताकि कोरोना नामक मुसीबत से देश और समाज को मुक्त किया जा सके।
समिति के सदस्य लाॅकडाउन में शहर के जरूरतमंद परिवाराें के घर-घर जाकर भाेजन के पैकेट दे रहे हैं। इसमें राेटी-सब्जी के साथ पुलाव शामिल है। झुग्गी बस्ती, मालवीयगंज, रेल्वे स्टेशन इलाके में सैंकड़ों लोगों को खाने के पैकेट बांटे जा रहे हैं। लगभग 1600 लोगों को हर रोज खाना खिलाया जा रहा है।