साल में आधा सैकड़ा महिलाएं तोड़ देती हैं दम, विशेषज्ञों की कमी भी वजह
डिजिटल डेस्क,सिवनी। आज सुरक्षित मातृत्व दिवस है। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस हर साल 11 अप्रैल को मनाया जाता है। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस, व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जिसे गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की उचित देखभाल और प्रसव संबंधी जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल मनाया जाता है। हर साल व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया के सदस्य द्वारा सुरक्षित मातृत्व दिवस के लिए एक राष्ट्रव्यापी विषय का चयन किया जाता हैं और जिसके अनुरूप सदस्य पूरे देश में बड़े पैमाने पर गतिविधियां और अभियान चलाते हैं।
लक्ष्य जागरूकता बढ़ाना होता है ताकि गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव बाद महिलाओं को अधिकतम स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित की जाए ताकि प्रसव के दौरान या बच्चे को जन्म देने के कारण किसी भी महिला की मौत न हो। सिवनी जिले की बात करें तो जिले में हर साल लगभग छह सौ शिशु और लगभग 50 माताएं दम तोड़ देती है। भले शासन-प्रशासन गर्भ धारण से लेकर शिशु जन्म और आगे तक मातृ-शिशु सुविधाएं देने की बात करता है, लेकिन ये आंकड़े वाकई चौंकाते हैं। इसका प्रमुख कारण विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी, डिलेवरी पाइंट का अभाव, खून की कमी आदि हैं। जिले के बीते तीन साल के आंकड़ों पर गौर करें तो 2019-20 में कुल 48 माताओं की मृत्यु हुई थी। वहीं इसके अगले साल 43 माताओं की मौत हो गई थी। बीते साल 53 माताओं की मौत हुई थी।
विशेषज्ञों और जानकारी का अभाव प्रमुख कारण
जिले में स्वास्थ्य विभाग में महिला और शिशु रोग विशेषज्ञों की कमी भी मौतों का कारण हैं। केवलारी विकासखंड के लगभग दो सैकड़ा गांवों के लिए एक भी महिला रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। यही स्थिति जिले के दूसरे विकासखंडों की है। जिले में लगभग 35 डिलेवरी पाइंट हैं लेकिन इनकी अव्यवस्था भी किसी से छिपी नहीं है। गर्भावस्था के शुरुआती तीन महीने में ही माता का नाम आंगनबाड़ी में पंजीकृत हो जाना चाहिए लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता है। जिसके कारण उनकी देखरेख, फोलिक एसिड आदि की दवा समय पर नहीं दी जाती जिसके कारण खून की कमी जैसी समस्याएं सामने आती हैं। इसके अलावा हाईरिस्क प्रसव वाली महिलाओं में ब्लड प्रेशर, अधिक उम्र में गर्भधारण जैसी समस्याएं प्रमुख रूप से सामने आती हैं।
खाली हैं काफी पद
जिले में केवलारी में स्त्री रोग, शिशु रोग विशेषज्ञ का एक-एक पद स्वीकृत है, लेकिन दोनों ही खाली हैं। यही स्थिति बरघाट, घंसौर की है। धनौरा, छपारा, कुरई, गोपालगंज सीएचसी में भी स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं है। ऐसे में इन सेंटरों में स्थिति बिगडऩे पर जिला अस्पताल रैफर किया जाता है। आने जाने में काफी समय बर्बाद होता है और मरीज की स्थिति और खराब हो जाती है।
इनका कहना है,
जिला अस्पताल में चिकित्सकों की कमी है। उपलब्ध संसाधनों से जो बेहतर हो सकता है करने का प्रयास किया जाता है।
- विनोद नावकर, सिविल सर्जन जिला अस्पताल, सिवनी
Created On :   11 April 2023 2:49 PM IST