यूनिवर्सिटी में बड़ी खामियां, यूजीसी की लिस्ट में ही नहीं उस पाठ्यक्रम को जोड़ा

यूनिवर्सिटी में बड़ी खामियां, यूजीसी की लिस्ट में ही नहीं उस पाठ्यक्रम को जोड़ा

Bhaskar Hindi
Update: 2019-06-14 08:22 GMT
यूनिवर्सिटी में बड़ी खामियां, यूजीसी की लिस्ट में ही नहीं उस पाठ्यक्रम को जोड़ा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित पोस्ट ग्रेजुएट इन मास कम्युनिकेशन पाठ्यक्रम में एक बड़ी त्रुटि सामने आई है। नागपुर विश्वविद्यालय इस पाठ्यक्रम को एम.ए इन मास कम्युनिकेशन के नाम से चलाता है, जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की लिस्ट में ऐसा कोई पाठ्यक्रम ही नहीं है। यूजीसी ने पहले ही साफ कर रखा है कि, जो पाठ्यक्रम उनकी सूची में नहीं है, वे अवैध माने जाएंगे। साथ ही पत्रकारिता और मास कम्युनिकेशन अलग-अलग फैकल्टी से हैं, उन्हें आर्ट्स और सोशल साइंस के साथ क्लब नहीं किया जा सकता। एआईसीटीई की वर्ष 2019-20 की गाइडलाइन के मुताबिक मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन मैनेजमेंट फैकल्टी के तहत आता है।  यूनिवर्सिटी में फिर से इस तरह की खामियां सामने आने स्टूडेंट्स के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है।

पीएचडी रिसर्च की अनुमति नकारी जा रही  

उल्लेखनीय है कि यह पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले कॉलेजों को एआईसीटीई की मान्यता जरूरी है। इसके अलावा नागपुर यूनिवर्सिटी विद्यार्थियों की डिग्री में मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन और सेमिस्टर की मार्कशीट पर एमए इन मास कम्युनिकेशन लिखता है, जिससे यह संभ्रम और अधिक बढ़ रहा है। हाल यही में मास कम्युनिकेशन के कुछ शिक्षकों के ध्यान में यह बात आई है। शिक्षकों का दावा है कि, उनके कई स्टूडेंट्स को नागपुर यूनिवर्सिटी की इस डिग्री के आधार पर पीएचडी रिसर्च की अनुमति नकारी जा रही है।

यूनिवर्सिटी की स्थिति स्पष्ट नहीं

यूनिवर्सिटी  से प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से इस पाठ्यक्रम का नाम मास्टर इन जर्नलिज्म था, जिसे बाद में बदल कर मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन किया गया। वर्ष 2017 में नया यूनिवसिटी अधिनियम आने के बाद यूनिवर्सिटी ने इस पाठ्यक्रम को मास्टर ऑफ आर्ट्स इन मास कम्युनिकेशन नाम देकर इंटरडिसिप्लिनरी फैकल्टी में डाल दिया गया। ऐसे में यूनिवर्सिटी ने डिग्री और उसके नाम के संभ्रम को लेकर अभी तक कोई स्थिति स्पष्ट नहीं की है। जल्द ही इस पर निर्णय नहीं लिया गया, तो पाठ्यक्रम के सैकड़ों स्टूडेंट्स का भविष्य संकट में पड़ सकता है।

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