जिला परिषद चुनाव : हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
जिला परिषद चुनाव : हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य निर्वाचन आयोग ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में अर्जी दायर कर नागपुर जिला परिषद चुनाव कराने के आदेश जारी करने की प्रार्थना की है। आयोग ने अर्जी में हाईकाेर्ट को बताया है कि नागपुर जिला परिषद का पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा हुए दो साल बीत चुके हैं। अब आयोग ने भी मतदाता लिस्ट आदि अपडेट कर ली है। ऐसे में कोर्ट को चुनावों पर से अपना स्थगन आदेश हटा लेना चाहिए। इस अर्जी पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सुनवाई हुई, जिसमें निर्वाचन आयोग का पक्ष सुनकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह में जवाब मांगा है।
यह है मामला
दरअसल चुनाव आयोग ने अप्रैल 2018 में ही जिला परिषद चुनाव कराने का निर्णय लिया था, लेकिन राज्य सरकार का आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक होने के कारण चुनावों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। उस वक्त सरकार ने कोर्ट को जानकारी दी थी कि महाराष्ट्र जिला परिषद व पंचायत समिति अधिनियम में सुधार की जरूरत है, इसलिए प्रस्ताव कैबिनेट के सामने लंबित है। कोर्ट ने इसके बाद चुनावों पर स्थगन लगा कर तीन माह में अधिनियम को सुधारने पर फैसला करने को कहा था। इसके बाद 26 और 30 मार्च को चुनाव आयोग ने अध्यादेश जारी कर चुनाव के लिए वार्ड रचना कार्यक्रम जारी किया था। इस अध्यादेश को दोबारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने तब वार्ड रचना का काम तो जारी रहने दिया, लेकिन बगैर अनुमति चुनाव नहीं कराने की ताकीद भी दी। अब चुनाव आयोग ने दोबारा हाईकोर्ट में अर्जी दायर की है। चुनाव आयोग की ओर से एड.जेमिनी कासट और याचिकाकर्ता की ओर से एड. मुकेश समर्थ और एड. रफीक अकबानी कामकाज देख रहे हैं।
बेझनबाग अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट का 'स्टेट्स को'
शहर के बहुचर्चित बेझनबाग सोसायटी के अतिक्रमण को गिराने के मामले पर देश की सर्वोच्च अदालत ने ‘स्टेट्स को’ के आदेश जारी किए हैं। राज्य सरकार द्वारा नागपुर खंडपीठ के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर कोर्ट ने प्रतिवादी मधुकर पाटील व अन्य को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। अपनी याचिका में राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया है कि उन्होंने इस अतिक्रमण को नियमित करने का निर्णय लिया है। ऐसे में नागपुर खंडपीठ का आदेश खारिज किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के बाद क्षेत्र के 350 निर्माणकार्यों पर बुलडोजर चलना फिलहाल टल गया है।
ऐसा है पूरा प्रकरण
उल्लेखनीय है कि बीते फरवरी में नागपुर खंडपीठ ने बेझनबाग का अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे। इसके खिलाफ 22 परिवारों ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी, लेकिन याचिका खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अतिक्रमण को नियमित करने से इनकार कर दिया था। एम्प्रेस मिल के कामगारों को सस्ती दर में घर उपलब्ध कराने के लिए बेझनबाग प्रगतिशील गृहनिर्माण सहकारी संस्था स्थापित की गई थी। वर्ष 1977 में राज्य सरकार ने संस्थान को चार लाख रुपए में 80.09 एकड़ जमीन दी। समय के साथ कई अपात्र लोगों ने भी यहां भूखंड हासिल कर लिए। सोसायटी के मूल प्रारूप में 200 सार्वजनिक उपयोग के भूखंड थे। 77 भूखंडों पर संस्था ने प्लॉट बनाकर बेच दिए। 25 भूखंडों पर पक्के मकान भी बना लिए गए। 6 मई 2016 को कोर्ट ने सार्वजनिक उपयोग के भूखंडों से अतिक्रमण हटाकर उनका अधिकार मनपा को देने का आदेश राज्य सरकार को दिया, लेकिन हाईकोर्ट के इस आदेश का पालन नहीं हुआ। इसके बाद याचिकाकर्ता मधुकर पाटील ने हाईकोर्ट में यह अवमानना याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने अतिक्रमण गिराने के आदेश जारी किए थे।