धमतरी : दुगली लघु वनोपज प्रसंस्करण केन्द्र से वनवासियों को हुनर के साथ मिला स्वरोजगार
धमतरी : दुगली लघु वनोपज प्रसंस्करण केन्द्र से वनवासियों को हुनर के साथ मिला स्वरोजगार
डिजिटल डेस्क, धमतरी। चार महिला स्व सहायता समूह लघु वनोपज प्रसंस्करण से जुड़ कर रही जीविकोपार्जन हरा-भरा वन जहां पर्यावरण संतुलन और जीव-जन्तुओं, पक्षियों के बसेरा के लिए जरूरी है। वहीं वनवासियों की जीवनशैली और दैनिक गतिविधियों, जीविकोपार्जन में अहम् भूमिका निभाता है। धमतरी जिला 52 प्रतिशत जंगलों से भरा है। सिहावा के श्रृंगी ऋषि पहाड़ से निकलकर प्रदेश की जीवनदायिनी महानदी धमतरी वनमण्डल को दो भागों में बांटती है। एक ओर उत्तरी भाग में अपेक्षाकृत कम जंगल हैं, वहीं दक्षिणी भाग जिसमें विकासखण्ड नगरी और मगरलोड है, घने जंगलों से भरा है। जिले के अधिकांश वनवासी इसी दक्षिणी भाग में बसे हुए हैं। जंगलों में मिलने वाले वनोपज वनवासियों की जिंदगी की पटरी को आगे बढ़ाने में मददगार होते हैं। लेकिन जंगलों का बेतरतीब दोहन ना हो और वनवासियों को जंगलों से इकट्ठा किए हुए वनोपज का उचित दाम मुहैय्या कराने के अलावा उन्हें जीविकोपार्जन की सहुलियत देने वर्ष 2004-05 में नगरी के दुगली में स्थापित किया गया, लघु वनोपज प्रसंस्करण केन्द्र। यहां वनवासियों से लघु वनोपज खरीदकर महिला स्व सहायता समूहों के जरिए उन वनोपजों का प्रसंस्करण किया जाता है। प्रसंस्करण केन्द्र प्रभारी बताते हैं कि यहां चार महिला स्व सहायता समूह क्रियाशील है। इन्हें हर मौसम में कोई ना कोई लघु वनोपज प्रसंस्करण का काम मिल जाता है। वन विभाग इन्हें संसाधन के साथ ही समय-समय पर नई तकनीकों का प्रशिक्षण और मशीन उपलब्ध कराता है। इसके बाद तैयार उत्पाद को स्थानीय स्तर पर अगर खरीददार तय दर पर लेने पहुंचे तो, उन्हें बेच दिया जाता है। साथ ही एन.एफ.डब्ल्यू.पी. मार्ट में तैयार उत्पाद बेचने के लिए भेज दिया जाता है। बताया गया है कि सितंबर से जनवरी तक यहां सतावर का पाउडर, जो कि महिलाओं, खासतौर पर शिशुवती माताओं के लिए पौष्टिकता से भरपूर होता है, उसे तैयार किया जाता है। लघु वनोपज आंवला से मीठा/ नमकीन कैण्डी, जूस, पाउडर बनाने का काम अक्टूबर से फरवरी तक समूह करता है। वहीं उपवास और गर्मी में शीतलता देने शरबत के तौर पर इस्तेमाल करने वाले तिखुर पाउडर भी समूह तिखुर कंद से बनाता है। यह काम दिसंबर से फरवरी तक चलता है। इसके साथ ही बैचांदी से चिप्स बनाने का काम दिसंबर से फरवरी तक समूह करता है, जो कि कृमिनाशक होने के साथ ही फलाहारी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यहां कार्यरत महिला समूह को मार्च से जून तक केक्ती से सूखा रेशा बनाने का काम भी मिलता है। इसके रेशे से रस्सी बनाकर पायदान, थैला इत्यादि बनाया जाता है और वन विभाग के उत्पादन क्षेत्रों में भी इसे बाड़ी के तौर पर लगाया जाता है। इसके अलावा जिले में लगभग 140 कमार परिवार गर्मी के दिनों में जंगल से 100 क्विंटल के आसपास शहद लाकर बेचते हैं। पहले यह कमार परिवार स्थानीय व्यापारियों को सस्ते दर में शहद बेच दिया करते थे, किन्तु इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होने के बाद कमार जनजाति के लोग इसे प्रसंस्करण केन्द्र में बेच उचित दाम पा रहे हैं और उन्हें शहद लेकर इधर उधर भटकने की जरूरत नहीं पड़ रही। इसके साथ ही माहुल पत्ते से दोना और पत्तल बनाने का काम कोभी समूह को मिल जाता है। हालांकि यह काम गर्मी के दिनों में खासकर मार्च-अप्रैल में होता है, किन्तु अगर वे बाकी समय भी खाली रहते हैं, तो दोना-पत्तल बनाने का काम कर लेते हैं। इसके अलावा हर्रा, बहेड़ा चूर्ण भी दुगली लघु वनोपज प्रसंस्करण केन्द्र में बनाया जाता है। यहां जिन चार महिला समूहों को प्रसंस्करण से रोजगार मिल रहा, उनमें जागृति बालिका स्व सहायता समूह, जय मां बम्लेश्वरी, जय मां संतोषी और जय मां लक्ष्मी स्व सहायता समूह हैं। प्रत्येक समूह में दस-दस सदस्य हैं। जागृति बालिका समूह की अध्यक्ष कुमारी ज्योति बताती हैं कि फिलहाल समूह आंवला प्रसंस्करण में लगा हुआ है। वन विभाग उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षण देकर अपडेट (अद्यतीकृत) करता रहता है। हाल ही में आई.आई.टी.कानपुर से समूह को ऑनलाईन प्रशिक्षण मिला है। इसके जरिए उन्हें लघु वनोपज की ग्रेडिंग, पैकिंग और मार्केटिंग के नुस्खे सिखाए गए हैं। इन दस सदस्यीय समूह में अधिकाशं बालिकाएं जुड़ी और स्वरोजगार के अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठा रही हैं। जागृति बालिका समूह की अध्यक्ष कुमारी ज्योति यह भी बताती हैं कि पहले निजी स्कूल में बतौर शिक्षिका काम करने पर उन्हें एक हजार रूपए मिलता था, किन्तु समूह से जुड़ने के बाद हर माह 3600 रूपए हर सदस्य काम करके कमा लेता है। इससे उनके परिवार को भी थोड़ी आर्थिक राहत मिल जाती है।