आनंद विभाग की पहल : बच्चे सिखेंगे ये पांच संस्कार कहेंगे 'थैंक्यू और सॉरी'

आनंद विभाग की पहल : बच्चे सिखेंगे ये पांच संस्कार कहेंगे 'थैंक्यू और सॉरी'

Bhaskar Hindi
Update: 2018-03-05 05:55 GMT
आनंद विभाग की पहल : बच्चे सिखेंगे ये पांच संस्कार कहेंगे 'थैंक्यू और सॉरी'

डिजिटल डेस्क, भोपाल।  सरकारी स्कूलों के बच्चों को गुड मार्निंग-गुड ईवनिंग के बजाय "जय हिंद" कहने का फरमान हाल ही में जारी किया गया था। इसकी शुरुआत स्कूल शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह ने सतना जिले से की है। हालांकि अब तक इस पर कोई अमल नहीं हो पाया। ऐसे में मध्यप्रदेश के स्कूली बच्चों को सरकार पढ़ाई के साथ-साथ विनम्रता से "थैंक्यू" और "सॉरी" कहने का सलीका भी सिखाएगी। जिसके लिए आनंद विभाग ने पायलट प्रोजेक्ट के लिए भोपाल जिले के 25 स्कूलों का चयन किया है। प्रोजेक्ट के तहत बच्चों को दूसरों में अच्छाई ढूंढने के साथ अपने भीतर क्षमा और कृतज्ञता का भाव बढ़ाने के टिप्स भी बच्चों को जाएंगे। 

 

 

पूरे प्रदेश में लागू करने की योजना

फिलहाल तो आनंद विभाग ने पायलट प्रोजेक्ट के लिए भोपाल जिले के 25 स्कूलों का चयन किया है। स्कूलों में नौवीं और ग्यारहवीं के बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ विनम्रता से "थैंक्यू" और "सॉरी" कहने का सलीका सिखाएगी।  इसके बाद पायलट प्रोजेक्ट के नतीजों के आधार पर इसे पूरे प्रदेश में लागू करने की योजना बनाई जा रही है। राज्य आनंद संस्थान ने आनंद सभा के तहत जिन स्कूल शिक्षकों को यह जवाबदारी सौंपी है। 

 

 

संस्कारों से बच्चों का तनाव होगा दूर

इन संस्कारों के तहत बच्चों को दूसरों में अच्छाई ढूंढना, क्षमा की शक्ति बढ़ाना, दूसरों की मदद का भाव रखना, कृतज्ञता का भाव विकसित करना और संकल्प की शक्ति बढ़ाना सिखाया जाएगा। राज्य आनंद संस्थान के निदेशक प्रवीण कुमार गंगराडे कहते हैं कि बच्चों के मन से तनाव-डिप्रेशन दूर करने के मॉड्यूल्स विकसित किए गए हैं। अच्छे संस्कार और शिष्टाचार उन्हें श्रेष्ठ नागरिक बनने में मददगार होंगे।

 

 

"आनंद सभा" का पीरियड अनिवार्य होगा 

पायलट प्रोजेक्ट के नतीजों के आधार सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो प्रदेश के 50 हजार से अधिक शासकीय-निजी स्कूलों में सप्ताह का एक दिन "आनंद सभा" का पीरियड अनिवार्य कर दिया जाएगा। खेल-खेल के जरिए बच्चों के मन में बड़प्पन के ये संस्कार डालने के लिए आनंद विभाग ने कुछ "माड्यूल्स" विकसित किए हैं। शिक्षकों को तीन दिन की ट्रेनिंग देने के बाद इसका स्कूलों में प्रयोग भी किया गया। 

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